
भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। भले ही सरकार द्वार भ्रष्टाचार मिटाने को लेकर कितने ही दावे किए जाएं , लेकिन जब ऐसे मामलों में कार्रवाई की बात आती है तो सरकार व शासन भ्रष्टाचारियों के साथ पूरी तरह से खड़ी नजर आती है। इसका ताजा उदाहरण है भ्रष्ट नेताओं व अफसरों की जांच करने से पहले प्रदेश की दोनों प्रमुख जांच एजेंसियों लोकायुक्त पुलिस संगठन और राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो के लिए अब विभाग प्रमुखों से अनुमति लेना अनिवार्य कर दिया जाना।
केंद्र सरकार की ओर से जारी किए गए इस आदेश को मध्यप्रदेश सरकार ने भी लागू कर दिया है। सरकार ने इस संबंध में आदेश जारी कर कहा कि जनप्रतिनिधियों, न्यायधीशों, अधिकारियों और कर्मचारियों के भ्रष्टाचार से जुड़ी शिकायतों में कार्रवाई के लिए लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू जैसी एजेंसियों को अब उनके विभाग प्रमुखों से अनुमति लेना होगी। अगर अनुमति नहीं मिलती है, तो उनकी जांच नहीं की जाएगी। उल्लेखनीय है कि मध्यप्रदेश सरकार ने इस संबंध में 26 दिसंबर 2020 को आदेश जारी किया था। इसके लिए राज्य सरकार ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 17 में 17(ए) जोड़कर इस कानून को लागू कर दिया था, जिसके बाद लोकायुक्त संगठन ने इस मुद्दे पर नाराजगी जाहिर करते हुए संबधित विभाग के प्रमुख सचिव तक को तलब कर लिया था। इसके बाद 26 जुलाई 2021 को राज्य सरकार ने अपना आदेश वापस ले लिया था। अब केंद्र सरकार की गाइड लाइन का हवाला देकर राज्य सरकार ने फिर नया आदेश जारी कर दिया है। इस आदेश में जनप्रतिनिधियों, अफसरों और कर्मचारियों के भ्रष्टाचार से जुड़ी जांच में शर्त जोड़ी गई है। बिना विभाग प्रमुखों की अनुमति वे अब जांच तो ठीक पूछताछ के लिए भी संबधित को नहीं बुला सकेगें। उल्लेखनीय है कि मप्र में पहले से ही यह व्यवस्था है कि भ्रष्टाचारियों के खिलाफ जांच पूरी होने के बाद चालान पेश करने के लिए संबधित विभाग या फिर सरकार से अनुमति लेनी होती है।
इस वजह से अब भी प्रदेश में ऐसे सैकड़ों मामलों में चालान पेश नहीं हो पा रहे हैं जिनकी जांच दोनों ही एजेंसियों द्वारा लंबे समय पहले पूरी की जा चुकी है। दरअसल जिन भ्रष्टाचारियों के मामलों में चालान पेश करने की अनुमति नहीं दी जा रही है उनका सरकार व प्रशासन में बड़ा रसूख माना जाता है। खास बात यह है कि ऐसे मामलों में अनुमति को लेकर लोकयुक्त पुलिस संगठन द्वारा तो कई बार स्मरण पत्र भी लिखे गए और नराजगी तक जाहिर की जा चुकी है। सरकार द्वारा ऐसे मामलों में चालान की अनुमति न दिए जाने की वजह से जांच एजेंसिंयो की मेहनत तक बेकार चली जाती है।