
- कांग्रेस में टिकट वितरण का एक ही फार्मूला
भोपाल/विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में भाजपा ने 39 प्रत्याशियों की पहली सूची जारी कर टिकट वितरण की प्रक्रिया में भले ही बाजी मार ली है, लेकिन कांग्रेस इससे तनिक भी घबराई नजर नहीं आ रही है। पार्टी टिकट वितरण में किसी भी प्रकार की जल्दबाजी या कोताही नहीं करना चाहती है। वहीं पार्टी के रणनीतिकारों ने साफ कर दिया है कि कांग्रेस में टिकट वितरण का एक ही फार्मूला है, जिस दावेदार की जमीन मजबूत है, उसी का टिकट दिया जाएगा। इस बात का संदेश कल से पीसीसी में हुई स्क्रीनिंग कमेटी और प्रदेश चुनाव समिति की बैठक में एक बार फिर से दिया गया।
गौरतलब है की कांग्रेस में 230 विधानसभा सीटों के लिए 4,000 से अधिक दावेदार हैं। ऐसे में पार्टी के सामने बड़ी चुनौती है। इस चुनौती से पार पाने के लिए पार्टी ने कई सर्वे कराकर दावेदारों की मैदानी स्थिति का आकलन कर लिया है। अब कल से शुरू हुई स्क्रीनिंग कमेटी और प्रदेश चुनाव समिति की बैठक में इन नामों पर विचार विमर्श किया जा रहा है। पहले दिन जिलाध्यक्ष और जिला प्रभारियों की बैठक हुई। सभी जिलाध्यक्ष बंद लिफाफे में हर सीट पर तीन-तीन नामों का पैनल लेकर पहुंचे। हर एक संभाग को एक-एक घंटे का समय दिया गया है। विधानसभा के दावेदारों की पैनल लिस्ट रणदीप सुरजेवाला और जितेंद्र सिंह को सौंपी जा रही है। दोनों नेता जमीनी रिपोर्ट लेंगे।
15 तक पहली सूची की तैयारी
कांग्रेस की स्क्रीनिंग कमेटी और प्रदेश चुनाव समिति की मैराथन बैठकें लगातार 5 सितंबर तक चलने वाली है। कांग्रेस 15 सितंबर तक 100 विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े कर देगी। पार्टी ने टिकट वितरण के लिए किसी भी फॉर्मूले पर अमल करने से परहेज किया है। केवल जीतने वाले को ही टिकट यही फार्मूला कांग्रेस के टिकट वितरण का आधार है। स्क्रीनिंग कमेटी के पास प्रदेश की प्रत्येक विधानसभा सीटों के लिए औसतन पांच उम्मीदवारों के पैनल आए हैं। स्क्रीनिंग कमेटी के अध्यक्ष भंवर जितेंद्र सिंह और प्रदेश के चुनाव प्रभारी रणदीप सिंह सुरजेवाला के साथ ही कमलनाथ एक-एक सीट पर बेहद सूक्ष्मता से विश्लेषण कर रहे हैं। जिला अध्यक्ष, जिला प्रभारियों के अलावा कमलनाथ के निरंतर चलने वाले सर्वेक्षणों और राहुल गांधी की पेशेवर टीम के फीडबैक के बाद तीन उम्मीदवारों का अंतिम पैनल स्क्रीनिंग कमेटी बनाने वाली है।
इसी पैनल के आधार पर केंद्रीय चुनाव समिति अंतिम फैसला करेगी। टिकट वितरण की प्रक्रिया 11 सितंबर के बाद दिल्ली शिफ्ट हो जाएगी। केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक के पूर्व एक बार फिर दिल्ली में प्रदेश स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक होगी। सूत्रों का कहना है कि कमलनाथ ने इस तरह से चुनावी व्यूह रचना तैयार की है कि टिकट साधन संपन्न उम्मीदवारों को मिलने में आसानी रहे। पार्टी खासतौर पर इस बात पर जोर दे रही है कि, चुनाव का खर्चा उठाने में कौन सा प्रत्याशी दमदार है। सूत्रों का कहना है कि आर्थिक संसाधनों के मामले में कांग्रेस पूरी तरह से कमलनाथ पर निर्भर है। प्रदेश कांग्रेस कमेटी का खर्चा कमलनाथ अपने स्तर पर उठाते हैं। इस संबंध में किसी भी प्रकार की धन उगाही अन्य स्रोतों से नहीं हो रही है।
ग्रास रूट लेवल पर लिया जाएगा फीडबैक
स्क्रीनिंग कमेटी के अध्यक्ष भंवर जितेंद्र सिंह ने साफ कर दिया है कि टिकट के लिए उम्मीदवारों का ग्रास रूट लेवल पर फीडबैक लिया जाएगा। हमारी कोशिश होगी कि जल्द ही प्रत्याशियों की लिस्ट जारी की जाए। सितंबर के दूसरे हफ्ते तक उम्मीदवारों की सूची आने की उम्मीद कर सकते हैं। कांग्रेस इस बार टिकट वितरण में जो प्रक्रिया अपना रही है , वह भाजपा के मुकाबले में अधिक गहराई लिए हुए तथा मजबूत है। कमलनाथ टिकट वितरण के जरिए आधी लड़ाई जीतने की रणनीति पर कम कर रहे हैं। इसी रणनीति के आधार पर उन्होंने 2018 में भाजपा के किले को फतह किया था। नगर निगम चुनाव में भी उन्होंने मेयर के प्रत्याशी में इसी तरह की रणनीति अपनाई। नतीजा यह रहा कि आज प्रदेश में कांग्रेस के पांच मेयर काम कर रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि कमलनाथ ने स्क्रीनिंग कमेटी के समक्ष जो नाम दिए हैं,वही नाम राहुल गांधी की पेशेवर पॉलिटिकल रिसर्च टीम की तरफ से भी आए हैं। यह टीम कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश में सफलतापूर्वक काम कर चुकी है। आईटी एक्सपर्ट सुनील कानूगोलू इस टीम के इंचार्ज हैं। यह टीम राहुल गांधी के प्रति जिम्मेदार है और उन्हीं को सीधे रिपोर्ट करती है। भंवर जितेंद्र सिंह और रणदीप सिंह सुरजेवाला भी राहुल गांधी के सबसे नजदीकी नेताओं में से एक हैं। रणदीप सिंह सुरजेवाला कर्नाटक में भी चुनाव के इंचार्ज थे। कमलनाथ के बाद सबसे ज्यादा सवाल जवाब रणदीप सिंह सुरजेवाला ही कर रहे थे। उनके सवालों से जिला प्रभारी और जिला अध्यक्ष परेशान भी देखे गए।
इस बार कांग्रेस अधिक एकजुट
मप्र कांग्रेस की सबसे बड़ी समस्या रही है कि यहां के नेता और कार्यकर्ता खेमों में बंटे हुए हैं। लेकिन इस बार मप्र कांग्रेस हर बार की अपेक्षा अधिक एकजुट नजर आ रही है। कर्नाटक, राजस्थान और छत्तीसगढ़ की तुलना में यहां नेतृत्व को लेकर कोई विभाजन नहीं है। दिग्विजय सिंह कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनाने के लिए लगातार मैदान में जमावट कर रहे हैं। उनके गुट के दो बड़े नेता अरुण यादव और अजय सिंह ने भी कमलनाथ को मुख्यमंत्री पद का दावेदार मान लिया है। जाहिर है प्रदेश में कांग्रेस अधिक एकजुटता के साथ काम कर रही है। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा की सफलता और कर्नाटक की जीत ने प्रदेश में कांग्रेस को नई संजीवनी दी है। इसीलिए कमलनाथ ने मिशन 2023 को टॉप गियर में डाल दिया है। हाल ही में उन्होंने मालवा के नीमच, बुंदेलखंड क्षेत्र के टीकमगढ़ और महाकौशल के जबलपुर का दौरा किया था। दौरों से भोपाल लौटते ही वे बैंठकों में लग जाते हैं। इन बैठकों में वे अलग-अलग संभाग के जिला प्रभारियों और जिला अध्यक्षों से चर्चा कर रहे हैं। मुख्य रूप से कमलनाथ का जोर कार्यकर्ताओं को सक्रिय करने और मतदान केंद्र की व्यवस्था मजबूत करने को लेकर है।
करो या मरो वाला चुनाव
कांग्रेस और कमलनाथ के लिए 2023 का विधानसभा चुनाव करो या मरो वाला है। इस चुनाव से तय होगा कि उनकी राजनीतिक पारी और कितना लंबी खींचेगी। यदि मध्य प्रदेश में सरकार नहीं बन सकी तो कमलनाथ का राजनीतिक सूर्य दक्षिणायन की दिशा में प्रस्थान कर देगा। यही वजह की कमलनाथ ने अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया है। खर्च के मामले में कांग्रेस भाजपा के मुकाबले अधिक पीछे नहीं रहने वाली है। चुनाव प्रभारी और स्क्रीनिंग कमेटी के अध्यक्ष के रूप में राहुल गांधी ने भले ही प्रदेश में अपने मोहरें बैठा दिये हों, लेकिन कमलनाथ इतने वरिष्ठ और कद्दावर नेता हैं कि रणदीप सिंह सुरजेवाला उन्हें डिक्टेट करने की स्थिति में नहीं हैं। मैनेजमेंट के मामले में भी कमलनाथ कांग्रेस में सभी पर भारी पड़ते हैं। इस कारण से टिकट वितरण में कमलनाथ का फीडबैक ही सबसे महत्वपूर्ण साबित हो रहा है। कमलनाथ के बाद सबसे बड़ी भूमिका दिग्विजय सिंह की रहने वाली है। दिग्विजय सिंह ने ऐलान किया है कि वे चुनाव तक वे प्रदेश में ही सक्रिय रहेंगे। दिग्विजय सिंह की सक्रियता जहां कार्यकर्ताओं में जोश भरने का काम करती है। दिग्विजय सिंह अपनी राजनीति के कारण फिलहाल कमलनाथ के लिए पूरी ताकत के साथ खड़े हैं। उन्होंने पार्टी के भीतर के कमलनाथ के विरोध को लगभग समाप्त कर दिया है।