
- वफादारी नहीं, जिताऊ को ही टिकट
भोपाल/विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में इस बार विधानसभा चुनाव युद्ध की तरह लड़ा जा रहा है। इसलिए भाजपा ने टिकट वितरण का ऐसा फॉर्मूला बनाया है ,जिससे दावेदारों की नींद उड़ी हुई है। इस बार पार्टी ने तय किया है कि न नेतागिरी चलेगी, न वफादारी। इस बार केवल जिताऊ को ही टिकट दिया जाएगा। टिकट के इस फॉर्मूले ने सिंधिया समर्थकों को पसोपेस में डाल दिया है। गौरतलब है की पार्टी ने जो पहली सूची जारी की है ,उसमें सिंधिया समर्थक रणवीर जाटव को टिकट ने देकर इसका संकेत दे दिया है। भाजपा की दूसरी सूची जल्द आने वाली है। ऐसे में टिकट के दावेदारों की चिंताएं बढ़ गई हैं। खासकर सिंधिया समर्थकों की दावेदारी ने पेंच फंसा दिया है। जिन सीटों पर समर्थक टिकट मांग रहे हैं, वहां पुराने भाजपा नेता सक्रिय हैं। इधर पार्टी को भी जिताऊ चेहरे की तलाश है। मप्र की सियासत में केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंथिया का बड़ा कद है , जिसके भरोसे वर्ष 2020 में भाजपा ने उस कांग्रेस से सत्ता छीनी थी, जिसने वर्ष 2018 में अपना 15 साल का सूखा खत्म कर सूबे की सत्ता हासिल की थी, तब सिंधिया समर्थक निर्वाचित जनप्रतिनिधियों के अलावा सैकड़ों समर्थकों ने भाजपा का दामन थाम लिया था, किन्तु तीन साल बाद जब अगले चुनाव होने हैं, तो उससे पहले इन समर्थकों की घर वापसी ने सिंधिया के जादू पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं। पिछले कुछ माह में उनके 5 बड़े वफादार अब कांग्रेस का दामन थाम चुके हैं। इतना ही नहीं भिंड के गोहद से रणवीर जाटव का टिकट कटने के बाद समर्थको ने जिस तरह से खून से खत निकलकर अपनी विवशता को दर्शाया था, उससे यह लगने लगा है कि आने वाले समय में सिंधिया के कुछ और वफादार उनका साथ छोड़ सकते हैं।
दूसरी सूची भी चौंकाएगी
गौरतलब है की कांग्रेस में उपेक्षा के कारण बड़ी संख्या में सिंधिया समर्थक भाजपा में शामिल हुए थे। भाजपा ने उन्हें पूरा मान-सम्मान भी दिया है। लेकिन टिकट वितरण में पार्टी किसी भी तरह की छूट देने को तैयार नहीं है। सूत्रों की मानें तो हारी हुई सीट पर प्रत्याशी तय करने बैठे भाजपा के निर्णयकर्ताओं को अपनी अनुशंसा सहित जिस सूची को दिल्ली भेजा है, उसमें कई सिंधिया समर्थकों के नाम गायब बताए जा रहे हैं। इनमें से चंबल-ग्वालियर अंचल की वे सीटें शामिल हैं, जहां पिछला उपचुनाव सिंधिया समर्थक हार गए थे। दतिया जिले की डबरा विधानसभा क्षेत्र से उपचुनाव हारने वाली इमरती देवी का टिकट तय माना जा रहा है, किन्तु पिछले कुछ दिनों में उन्हें लेकर जिस तरह की कंट्रोवर्सी सामने आई है, उससे संघ और पार्टी का शीर्ष नेतृत्व नाराज बताया जा रहा है। ऐसे में उन पर खतरा हो सकता है। हालांकि वहां भाजपा के पास इमरती देवी जैसा प्रभावी दूसरा चेहरा नहीं होना उन्हें बचा सकता है।
हारने वालों की दावेदारी कमजोर
भाजपा सूत्रों का मानना है कि प्रदेश में हुए उपचुनाव में जिन नेताओं को हार का सामना करना पड़ा है उनकी दावेदारी कमजोर है। गौरतलब है कि उपचुनाव में भाजपा ने सिंधिया समर्थकों को टिकट देकर मैदान में उतारा था। तब इन समर्थकों के लिए भाजपा के पुराने नेताओं ने अपनी कुर्बानी दी थी। इनमें से कई ऐसे नेता हैं, जिन्होंने भाजपा को अपने-अपने क्षेत्रों में खड़ा किया था, किन्तु सरकार को बहुमत में लाने के लिए इन नेताओं ने तब चुप्पी साथ ली थी, किन्तु अब ऐसी स्थिति नहीं है। उपचुनाव में सिंधिया समर्थक 6 नेताओं को हार का सामना करना पड़ा था। जिससे उनकी दावेदारी कमजोर पड़ी है और पार्टी का पूरा फोकस जिताऊ उम्मीदवार पर आकर टिक गया है। ऐसे में इन समर्थकों के साथ-साथ इस चुनाव में टिकट की आस लगाएं बैठे नेताओं की भी उम्मीदों पर पानी फिर सकता है।
सिंधिया समर्थकों की घर वापसी ने बढ़ाई चिंता
ऐसा माना जाता है कि राजनीति में कुछ भी स्थाई नहीं होता है। इसी कहावत को चरितार्थ कर रहा है मप्र में होने वाला विधानसभा चुनाव, जिसमें कई पुराने कांग्रेसी नेता और कार्यकर्ता अब फिर से अपनी पुरानी पार्टी में जगह तलाश कर रहे हैं। इसमें सबसे ज्यादा चर्चा उन नेताओं की है जो 2020 में कांग्रेस छोडक़र सिंधिया के साथ भाजपा में गए थे। चर्चा इसलिए हो रही है, क्योंकि सिंधिया के साथ गए कुछ नेताओं ने अब कांग्रेस में वापसी कर ली है। इसकी वजह है सिंधिया के साथ कांग्रेस छोडक़र भाजपा में गए नेताओं को अपना राजनीतिक भविष्य खतरे में नजर आ रहा था। सूत्रों की मानें तो जिस तरह से पिछले कुछ समय से सिंधिया के करीबी लोगों की कांग्रेस में घर वापसी हो रही है, उसने सिंधिया सहित उनके करीबियों को चिंता में डाल दिया है। बताया गया है कि सिंधिया ने अपने समर्थकों की पैरवी भी की है। हालांकि उन्होंने बीते दिनों खुलकर कह दिया था कि टिकट वितरण में न तेरा न मेरा, सब भाजपा का हिस्सा है। जानकार मान रहे है कि भाजपा पहली सूची में तकरीबन 50 से ज्यादा नाम घोषित करने वाली थी, किन्तु सिंधिया समर्थकों के टिकट को लेकर नेताओं द्वारा खुलकर मंथन नहीं हो पाने की वजह से 39 नामों को सार्वजनिक किया गया था।