सभी सार्वजनिक उपक्रमों से तीन साल की बैलेंस सीट तलब

सार्वजनिक उपक्रमों
  • वित्त विभाग ने दो दिन में पेश करने को कहा ….

    भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। आर्थिक तंगी से परेशान सरकारी खजाने पर बोझ बन रहे प्रदेश के निगम-मंडलों, प्राधिकरणों, बोर्ड, परिषद और कंपनियों पर अब वित्त विभाग अपना शिकंजा कसने जा रहा है। इसके लिए अब वित्त विभाग ने प्रदेश के सभी अर्ध सरकारी उपक्रमों से उनके तीन साल का हिसाब किताब दो दिन के अंदर देने को कहा है। इसके लिए उनकी तीन साल की बैलेंस सीट मांगी गई है। इसके अलावा उपक्रमों से उनकी फिक्स डिपाजिट, लाभ, हानि का हिसाब भी अलग से तलब किया गया है। इस पत्र से प्रदेश के सभी निगम मंडलों प्राधिकरणों के अलावा अन्य सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में हड़कंप की स्थिति बन गई है। गौरतलब है कि प्रदेश के 35 विभागों के तहत अभी 90 सरकारी उपक्रम कार्यरत हैं। उल्लेखनीय यह है कि सूबे के अधिकांश  निगम-मंडल और सरकारी उपक्रम कई सालों से बेहद घाटे में चल रहे हैं। हालात यह है कि इनका अधिकांश बजट कर्मचारियों के वेतन -भत्तों में ही खर्च हो रहा है। यह पत्र सभी विभागों के अतिरिक्त मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव और सचिवों को वित्त विभाग द्वारा छह जून को लिखा गया है। इसमें भारत के नियंत्रक महालेखाकार का हवाला देते हुए लिखा गया है कि महालेखाकार का वर्ष 2017 को समाप्त हुए वर्ष के  प्रतिवेदन में राज्य की वित्त कंडिका क्रमांक-144 में अनुशंसा की गई है कि राज्य सरकार को विभिन्न इकाइयों में अपने निवेशों एवं अग्रिम कर्जों को इस प्रकार युक्तिसंगत बनाना चाहिए कि निवेश एवं प्रतिलाभ कम से कम सरकार की उधारी लागत से साम्य रखे पत्र में कहा गया है कि उपरोक्त परिपेक्ष्य में निगम-मंडल के पिछले तीन वर्ष के आडिट किए हुए लेखे, लाभ-हानि, बैलेन्स सीट की जानकारी तथा उनके द्वारा संधारित बैंक खातों जिसमें चालू बचत खाता, सावधि जमा खाता और अन्य वित्तीय खातों की पूरी जानकारी मांगी गई है। निगम-मंडलों, सरकारी उपक्रमों से कहा गया है कि वे 31 मई 2022 तक की पूरी स्थिति दो दिवस के अंदर वित्त विभाग को दें।
    किस विभाग के तहत कौन से उपक्रम
    राज्य सरकार के 35 विभागों के अधीन इस समय 90 सरकारी उपक्रम संचालित हो रहे हैं। इनमें सहकारिता विभाग के अंतर्गत अपेक्स बैंक समेत सात, नगरीय निकाय एवं आवास विभाग के तहत तीन, औद्योगिक नीति एवं निवेश प्रोत्साहन विभाग के तहत दो, मछुआ कल्याण विभाग के तहत एक, चिकित्सा शिक्षा, स्कूल शिक्षा, तकनीकी शिक्षा के तहत तीन – तीन निगम, मंडल बोर्ड परिषद,धार्मिक एवं धर्मस्व विभाग के तहत दो, वन विभाग के तहत पांच, पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के तहत छह, पर्यावरण विभाग के तहत तीन संस्कृति विभाग के तहत एक शामिल हैं। जिन प्रमुख कंपनियों की जानकारी मांगी गई है, उसमें प्रदेश की पावर जनरेटिंग कंपनियां, प्रोविडेंट इन्वेस्टमेंट लिमिटेड कंपनियां भी शामिल हैं। इसके अलावा माटी कला बोर्ड, खादी, ग्रामोद्योग बोर्ड समेत अन्य बोर्ड और सभी निगम मंडल शामिल हैं।
    कर्ज लिमिट वृद्धि है वजह  
    वित्त विभाग के सूत्रों की माने तो इस पूरी कवायद की वजह है सरकार द्वारा अपने कर्ज की लिमिट में वृद्धि करना। वह इन सरकारी उपक्रमों की अंश और क्रियाशील पूंजी, बैंक एफडी आदि को दर्शाकर अपनी पूंजी को बढ़ा हुआ दिखा सकती है, ताकि उसे बाजार से और अधिक कर्ज मिल सके।
    यह भी बताने को कहा
    पत्र में उपक्रमों से संबंधित कई तरह की जानकारियां मांगी गई हैं। इसके लिए वित्त विभाग द्वारा एक परिशिष्ट भी विभागों को भेजा है, जिसमें छह बिंदुओं से जुड़ी जानकारी मांगी गई है। वित्त विभाग पूछा है कि उपक्रम का प्रायोजन क्या है, किस प्रकार के काम करता है, उनकी लागत क्या है, जनहित की दृष्टि से निरन्तर चलाए जाने की प्रासंगिकता क्या है। इसके अलावा शासन से प्राप्त अनुदान, स्थापना वर्ष से अब तक की अंश पूंजी, कुल ऋण, पिछले तीन सालों में शासन को दिए गए लाभांश और अगर घाटा है, तो अब तक के कुल घाटे का ब्यौरा भी दें। यही नहीं वित्त विभाग ने केन्द्र और राज्य सरकार से समय -समय पर प्राप्त हुई पूरी राशि का भी पूरा ब्यौरा मांगा है। यही नहीं उपक्रमों को अपने बैंक खातों के पूरे डिटेल बैंक के नाम आईएफसी कोड के साथ भी देने को कहा गया है।

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