मप्र में हर माह हो जाती है तीन बाघों की मौत, बढ़ रहा है दर्जा छीनने का खतरा

बाघों की मौत

भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र देश का ऐसा राज्य है, जिसे  टाइगर स्टेट के रुप में भी पहचाना जाता है। उसे यह दर्जा बाघों की संख्या की वजह से अधिकृत रुप से मिला हुआ है, लेकिन बीते एक साल से जिस तरह से देखरेख के अभाव में हर माह उनकी मौत हो रही है, उससे अब यह दर्जा छीनने का खतरा भी बढ़ता जा रहा है। मप्र में उनकी मौतों का आंकड़ा देखें तो बीते 11 माह में ही 35 बाघों की मौत हो चुकी है। इन मरने वाले बाघों में नेशनल पार्क में रहने वाले बाघ भी शामिल हैं, जिसकी वजह से माना जाने लगा है कि अब तो उनके आवास के रुप में नेशनल पार्क भी सुरक्षित नहीं रह गए हैं।  यह डरावने आंकड़े नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथारिटी (एनटीसीए) द्वारा बाघों की मौत को लेकर जारी किए गए हैं। इसमें बताया गया है कि जनवरी 2021 से अब तक देशभर 107 बाघों की मौत दर्ज हुई हें, जिनमें अकेले एक तिहाई से अधिक मौतें मध्यप्रदेश की हैं। उल्लेखनीय है कि मप्र को टाईगर स्टेट का दर्जा बामुश्किल से तीन साल पहले हुई गणना के आधार पर मिला है। इसमें भी सिर्फ मप्र में कर्नाटक की तुलना में दो बाघ अधिक पाए गए थे। अगर एनटीसीए के आंकड़े देखें तो पता चलता है कि मध्य प्रदेश में कर्नाटक की तुलना में एक साल से भी कम समय में 20 से अधिक बाघों की मौत हुई है। इस अवधि में कर्नाटक में 15 बाघों की मौत दर्ज की गई, जबकि मध्यप्रदेश का आंकड़ा 35 पहुंच गया। आश्चर्यजनक बात यह है कि वन व नेशनल पार्क से लेकर टाइगर रिजर्व तक का प्रबंधन मौत की वजह की तह तक नहीं पहुंच पा रहा है।
हीरा के शिकार से आयी नाकामी सामने
 पन्ना नेशनल पार्क के सबसे अधिक लोकप्रिय बाघ हीरा की सतना के जंगल में हुए शिकार ने वन विभाग की नाकामी की पोल खोल दी है। सेटेलाइट कालर आइडी से लैस होने के बाद भी वन अमला उसकी लोकेशन तक नहीं पहुंच सका। पन्ना नेशनल पार्क की ओर से लगातार दिए जा रहे अपडेट के 18 दिन बाद तक वन अमला लोकेशन के आसपास सुरक्षा घेरा तक नहीं बना पाया, जिसकी वजह से उसकी हत्या कर शिकारी उसका सिर काट ले गए । यही नहीं उसके फेंके गए कॉलर आइडी तक पहुंचने में अमले ने एक पखवाड़े का समय लगा दिया।
अब तक नहीं हुआ एसटीएफ का गठन
नेशनल टाइगर फोर्स (एसटीएफ)के लिए केंद्र सरकार राशि देती है इसके बाद भी प्रदेश में इसका गठन नहीं किया गया। कोर्ट द्वारा कहा गया था कि जब तक स्पेशल टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स का गठन नहीं होता है तब तक वैकल्पिक तौर पर पुलिस की सहायता ली जा सकती है। प्रदेश में पुलिस की भी सहायता नहीं ली जा रही है। प्रदेश में वन्यप्राणी अपराधों के मामले में जांच का स्तर बहुत ही लचर है इसी प्रकार सजा कोर्ट से सजा दिलाने के मामले में भी प्रदेश फिसड्डी है। इसी कारण से प्रदेश में बाघों के शिकार के मामले बढ़ रहे हैं। प्रदेश में बाघों के रहवास को भी सुरक्षित नहीं बनाया जा रहा है, हीरा का शिकार इसका उदाहरण है।

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