
भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में पंचायत चुनाव की घोषणा होने के साथ ही कांग्रेस व भाजपा के सामने जय आदिवासी युवा शक्ति संगठन (जयस) चुनौती बनकर खड़ा हो गया है। इन चुनावों में प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य जिलों में जयस ने भी अपने उम्मीदवार उतारने की घोषणा की हुई है। इसकी वजह से इन दोनों ही दलों के रणनीतिकारों को लगातार माथा पच्ची करनी पड़ रही है। इसकी वजह से कहा जा रहा है कि दोनों ही दल मतदान से पहले ही इस बात से आशंकित हैं कि कहीं उनके अपने आदिवासी वोट बैंक में बिखराव न हो जाए। इसकी वजह है बीता पंचायत चुनाव। उस समय जयस ने संगठन के शुरूआती दिनों में ही मालवा-निमाड़ अंचल के धार, झाबुआ, आलीराजपुर, बड़वानी, खरगोन और रतलाम सहित कुछ अन्य जिलों में प्रत्याशी मैदान में उतारे थे, जिनमें बड़ी संख्या में उन्हें जीत भी मिली थी। उस समय जीते हुए जयस समर्थित उम्मीदवारों की संख्या करीब 150 बताई गई थी।
यह सभी सरपंच पद के लिए जीते थे। इस बार भी मालवा-निमाड़ सहित अन्य आदिवासी बहुल जिलों में जयस ने अपने लोगों को चुनाव लड़ाने की तैयारी की हुई है। दरअसल मालवा-निमाड़ अंचल के आदिवासी बहुल क्षेत्रों में जयस कई सालों से सक्रिय है। यही वजह है कि प्रदेश में जनाधार बढ़ाने की कवायद भाजपा द्वारा आदिवासियों के बीच की जा रही है। इसी के तहत भाजपा जबलपुर में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की मौजूदगी में शंकर शाह- रघुनाथ शाह की स्मृति में आयोजन कर चुकी है। इसके बाद भोपाल जनजातीय गौरव दिवस पर महासम्मेलन किया गया, जिलों में गौरव यात्राएं निकाली गई। पातालपानी में टंट्या भील के शहादत दिवस पर सरकार ने बड़ा आयोजन कर कई घोषणाएं भी की। इसके पहले हबीबगंज स्टेशन का नाम कमलापति रेलवे स्टेशन किया जा चुका है। इंदौर में टंट्या भील चौराहा बन गया। पातालपानी रेलवे स्टेशन का नाम भी बदलने की कवायद की जा रही है। उधर, कांग्रेस भी इस बारे में पैठ बढ़ाने के लिए जबलपुर सहित दो जगह आदिवासी सम्मेलन कर चुकी है।
जयस कर रहा विस चुनाव के लिए तैयारी
दरअसल जयस द्वारा पंचायत चुनावों के बहाने विधानसभा चुनाव 2023 के लिए तैयारी की जा रही है। यही वजह है कि इन दिनों भाजपा और कांग्रेस में जयस को लेकर चिंताएं बढ़ी हुईं हैं।
दरअसल प्रदेश में अजजा वर्ग के लिए आरक्षित 47 सीटें हैं इनके अलावा करीब दो दर्जन से अधिक अन्य सीटों पर आदिवासी मतदाता निर्णायक भूमिका में भी हैं। इन 47 सीटों में से भाजपा के पास अभी 17 और कांग्रेस के पास 30 सीटें हैं। हाल ही में हुए उपचुनाव में जोबट सीट जीतने से उत्साहित भाजपा अब आगामी विस चुनाव की दृष्टि से इस वर्ग में अपना जनाधार बढ़ाने में लग गई है।
जयस की नजर 80 विस सीटों के इलाके पर
आदिवासी संगठन की नजर प्रदेश की उन 80 विधानसभा की सीटों वाले इलाकों पर हैं, जिन पर आदिवासी हार-जीत पर प्रभाव डालता है। यही वजह है कि इस दल द्वारा इन सीटों वाले इलाकों में पंच से लेकर जिला पंचायत तक के पदों के लिए प्रत्याशी उतारे जाने की तैयारी की जा रही है। इनमें खास बात ये कि इनमें सिर्फ आदिवासी ही नहीं, बल्कि सामान्य और ओबीसी वर्ग के नेताओं को भी टिकट दिया जाएगा। दरअसल जयस का फोकस खासकर उन जगहों पर पर है, जहां आदिवासी मतदाताओं की संख्या बहुतायत में है। जयस इन चुनावों के माध्यम से अपना प्रभाव आदिवासी इलाकों में बढ़ाने की रणनीति पर काम कर रही है। बीते विधानसभा चुनाव के समय जयस के संरक्षक डॉ. हीरालाल अलावा ने कांग्रेस में शामिल होकर मनावर सीट से चुनाव लड़ा और जीते भी। इसकी वजह से भाजपा को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा। इसकी वजह है कि जहां-जहां जयस का प्रभाव था, वहां भाजपा को कम वोट मिले। इसकी वजह से ही भाजपा को मालवांचल से 22 आदिवासी सीटों में 12 का नुकसान हुआ था, जबकि कांग्रेस बहुत अधिक फायदा हुआ था। जयस अब अगले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर इन चुनावों की मदद से अपनी राजनैतिक पकड़ मजबूत करना चाहती है, जिससे की वह अगले विस चुनाव में खुद की दम पर ताल ठोक सके। उल्लेखनीय है कि जयस पहले सामाजिक संगठन के रूप में काम किया करता था, लेकिन बाद में वह राजनैतिक दल बन गया।