
भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा प्रत्याशियों की सूची जारी होते ही प्रदेश के कई माननीयों की धड़कने तेज हो गई हैं। इसकी वजह है गुजरात का वह फार्मूला जिसकी वजह से कई मंत्रियों से लेकर विधायकों व पूर्व मुख्यमंत्री तक को इस बार टिकट से वंचित कर दिया गया। यह फार्मूला मप्र में भी लागू होना तय माना जा रहा है। दरअसल इस फार्मूला को लागू कर पार्टी अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा की सरकार एक बार फिर से बनाने की तैयारी मे है। माना जा रहा है कि प्रदेश में गुजरात की तुलना में अधिक माननीयों के टिकट काटे जाएंगे।
गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा ने जहांं करीब 25 फीसदी विधायकों के टिकट पर कैंची चलाई है तो वहीं मप्र में इसका आंकड़ा पचास फीसदी तक जाने की संभावना अभी से जताई जा रही है। इसके संकेत प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा ने तभी दे दिए थे, जब उनके द्वारा बूढ़ी भाजपा युवाओं का मनोनयन किया गया था। यही वजह है कि माना जा रहा है कि इस बार पचास से अधिक टिकट काटे जाएंगे। इसकी अपनी वजहें भी हैं। दरअसल प्रदेश में बीते आम विधानसभा चुनाव में भाजपा को सत्ता से बाहर होना पड़ा था। इसके बाद सत्ता में वापसी के लिए पार्टी को 15 माह तक इंतजार करना पड़ा था। अगर भाजपा के मंत्री चुनाव में नहीं हारते तो भाजपा की सत्ता में वापसी तय थी , लेकिन इन मंत्रियों की कार्यशैली ऐसी रही थी की खुद तो हारे ही आसपास की सीट हारने की वजह भी वे बने। मौजूदा सरकार में कई मंत्री ऐसे हैं जो हरल्ले मंत्रियों की राह पर चल रहे हैं। पार्टी और सरकार के पास जो फीडबैक अब तक आया है उसमें ऐसे ही एक दर्जन मंत्रियों के नाम आ चुके हैं ,जो अभी चुनाव हो जाएं तो उनकी जीत कठिन मानी जा रही है। दरअसल उनकी कार्यशैली से न तो कार्यकर्ता और न ही जनता ही खुश है। इसका प्रभाव आसपास के इलाकों पर भी पड़ता हुआ दिख रहा है। कहा तो यह भी जा रहा है कि कई मंत्री तो अपने ही कार्यकर्ताओं के तक काम नहीं करते हैं। इसी तरह से अन्य माननीय भी अपने इलाकों में पूरे लाव लश्कर के साथ निकलते तो हैं, लेकिन वे कार्यकर्ताओं व जनता के बीच जाने के लिए नहीं बल्कि कुछ खास लोगों के पास जाने के लिए। रही सही कसर पंचायत चुनावों ने पूरी कर दी। पंचायत चुनावों में कई माननीयों ने खुद के परिजनों को ही तबज्जो दी, जिसकी वजह से उनके इलाके में जातिगत समकीकरण तो पूरी तरह बिगड़ ही गए सथ ही कार्यकर्ताओं में भी नाराजगी जमकर फैल चुकी है। इसकी वजह से उनको लेकर जमकर एंटी इन्कंबेंसी देखी जा रही है। इसे दूर करने के लिए ही गुजरात के फार्मूला को मप्र में लागू होने की बड़ी वजह मानी जा रही है। इसलिए मप्र में खासतौर पर ऐसे विधायकों को ज्यादा चिंता सताने लगी है जिन्हें पूर्व में सत्ता-संगठन की ओर से अपने क्षेत्र को संभालने की समझाइश कई बार दी जा चुकी है।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी पूर्व में वन-टू-वन चर्चा और विधायक दल की बैठक में सदस्यों को सर्वे रिपोर्ट का हवाला देकर डेंजर जोन में बताकर नसीहत दे चुके हैं। मप्र में मिशन 2023 को लेकर इस बार सियासी तस्वीर बदली हुई है, इसलिए ज्यादातर छोटे-बड़े नेता अपने टिकटों को लेकर सशंकित हैं। ऐसी चर्चा है कि इस बार पार्टी बड़े और अजेय नेताओं को चुनौतीपूर्ण और कमजोर सीटों पर भेजकर अपना सियासी करिश्मा दिखाने को कह सकती है। पिछले विधानसभा चुनाव 2018 के दौरान भाजपा ने करीब तीन दर्जन सीटों पर ही टिकट बदले थे। जो विधानसभा की कुल 230 सीटों के लिहाज से महज 18 फीसदी ही है। लेकिन इस बार चुनौतियां अधिक बनी हुई हैं। कांग्रेस भी अभी से प्रदेश में चुनावी टक्कर देने के लिए पूरी ताकत लगा रही है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि प्रदेश में कई क्षेत्रों में ऐसे स्थापित नेता भी हैं जिनके टिकट काटने के बारे में पार्टी सोचती ही नहीं है, लेकिन उनकी जगह कई दूसरे नेताओं के टिकट बदल दिए जाते हैं, लेकिन इस बार कुछ अलग ही दिखने की संभावना बनी हुई है।
गुजरात में 38 विधायकों के टिकट काट दिए गए
उल्लेखनीय है कि गुजरात विधानसभा के लिए अगले 1-5 दिसंबर को होने वाले चुनाव के लिए भाजपा प्रत्याशियों की पहली सूची में ही 38 विधायकों के टिकट काट दिए गए। इनके स्थान पर नए लोगों को मौका दिया गया गया है। इनके अलावा कुछ दिग्गज नेताओं की सीटों पर भी बदलाव किया गया है। इस तरह भाजपा ने चुनाव मैदान में करीब 25 फीसदी नए चेहरे उतार दिए हैं। मप्र के संदर्भ में भी यही संभावना है यदि ऐसा हुआ तो कम से कम 55-60 नेताओं की उम्मीदवारी पर कैंची चलना तय है।
104 सीटों को किया अभी से चिह्नित
भाजपा हाईकमान ने अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए ऐसी 104 सीटें पहले से ही तय कर ली हैं , जहां पर पार्टी बेहद कमजोर है या फिर हार चुकी है। इन सीटों पर अभी से फोकस किया जा रहा है। इनमें से कुछ सीटें तो भाजपा के गढ़ के रुप में रह चुकी हैं , लेकिन बीते चुनाव में एंटी इन्कंबेंसी इतनी अधिक थी कि भाजपा प्रत्याशियों को हार का सामना करना पड़ गया। संभावना है कि इन सीटों को लेकर सत्ता-संगठन को जो सर्वे रिपोर्ट मिली हैं उसके अनुसार पार्टी बड़ी संख्या में नए चेहरों को चुनावी मैदान में उतार सकती है। इनमें कई युवा चेहरे भी हो सकते हैं।
श्रीमंत समर्थक भी खतरे में
पार्टी सूत्रों की मानें तो दलबदल कर भाजपा में शामिल हुए कई श्रीमंत समर्थकों का टिकट भी अगले साल होने वाले चुनाव के लिए खतरे में है। इनमें से कई हार चुके नेताओं की टिकट की दावेदारी तो अभी से समाप्त ही मानी जा रही है , जबकि कुछ मौजूदा विधायकों का भी टिकट कटना तय माना जा रहा है। इसकी वजह है पार्टी अगले चुनाव में किसी तरह की कोई लापरवाही नहीं बरतना चाहती है।