
भोपाल/राजीव चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश के अफसर अनाज के सुरक्षित भंडारण को लेकर कितनी ही दुहाई दें लेकिन हकीकत इसके उलट ही है। अफसरों की लापरवाही से जहां सरकार को आर्थिक नुकसान हो रहा है वहीं गरीबों का निवाला भी छिन रहा है। हद तो इस बात की है कि खुद मुख्यमंत्री तक अफसरों को लगातार हिदायतें देते हैं लेकिन जिम्मदारों पर जरा भी फर्क नहीं पड़ता।
यही वजह है गरीबों में बंटने वाला करोड़ों रुपए का अनाज लापरवाही की भेंट चढ़ गया। मामला छिंदवाड़ा जिले का है जहां लगभग तीन करोड़ रुपए मूल्य का 1628 टन मक्का वेयरहाउस में रखे-रखे सड़ गया। दरअसल नाफेड ने जिले में यह मक्का वर्ष 2016-17 में 1365 रुपए प्रति क्विंटल की दर से खरीदा था। कुल 22 लाख क्विंटल मक्का खरीदा गया था इसमें से 1628 टन मक्का आवंटन के बाद बचा हुआ था। इसे भारतीय खाद्य निगम ने आरक्षित करते हुए नागरिक आपूर्ति निगम के सुपुर्द कर दिया था। इसके बाद खाद्य निगम के अफसरों द्वारा इस मक्के की कोई सुध नहीं ली गई और यह अनाज सड़ गया। सूत्रों के मुताबिक सड़े हुए मक्के के बोरों में इल्लियां ऊपर ही नजर आने लगी हैं। बदबू भी आने लगी है और अब तो यह मवेशियों के उपयोग के लायक भी नहीं बचा है।
दूसरों पर ठीकरा फोड़ने की कोशिश में लगे हैं
खास बात यह है कि सरकारी तंत्र का कुप्रबंध इस बात का गवाह है कि पांच साल पहले खरीदे गए इस अनाज को वेयर हाउस में रखवाने के बाद भी जिम्मेदार अफसरों ने इसकी सुध तक नहीं ली। यही नहीं राज्य के अफसर अब भी अपनी जिम्मेदारी मानने को तैयार नहीं हैं और वे इसके लिए केंद्र की एजेंसी पर जिम्मेदारी का ठीकरा फोड़ने में लगे हैं। नागरिक खाद्य आपूर्ति निगम के एक अफसर के मुताबिक आवंटन के बाद बचे हुए इस 1628 टन मक्का को लेकर भोपाल के अधिकारियों के आदेश का इंतजार किया जा रहा है। इसके बाद ही इस मामले में कोई अंतिम फैसला लिया जाएगा। वहीं अब भारतीय खाद्य निगम इस सड़े हुए मक्के का निरीक्षण करेगा। इसके बाद ही इस बात का निर्णय हो सकेगा कि अब इस सड़े हुए मक्के का क्या निराकरण किया जाए।
लचर व्यवस्था का ये है आलम
बता दें कि आम आदमी की जेब से खजाने पहुंचने वाली राशि से सरकार किसानों से यह अनाज खरीद तो लेती है लेकिन उसकी सुरक्षा और आवंटन की व्यवस्था इतनी लचर है कि लाखों टन अनाज गोदामों में रखा-रखा ही सड़ जाता है। यही नहीं सरकारी तंत्र के बेपरवाह अफसर हर साल कई तरह से अनाज बर्बाद करने से नहीं चूकते। अफसरों की लापरवाही से जहां करोड़ों का नुकसान होता है वहीं गरीब के हाथ खाली रह जाते हैं।