सकारात्मक सोच वाली सौगंध के यह सौ दिन

  • अवधेश बजाज कहिन

मानव स्वभाव के हिसाब से यह सहज प्रक्रिया/प्रतिक्रिया वाला विषय लगता है। हालांकि कई बार यह बातों को असहज स्वरूप प्रदान कर देने वाली निंदनीय अस्वाभाविक प्रक्रिया का हिस्सा भी बन जाता है। जब हम किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व को किसी और की परछाई में सीमित करने की कोशिश करते हैं, तो क्या ऐसे हर मौके पर इसे उचित कहा जा सकता है? बहरहाल, इस सबके बीच जो इस परछाई का अतिक्रमण कर लेते हैं, वे किसी शोध के विषय से कम नहीं होते। मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का भी ऐसा ही मामला है। यदि डॉ. यादव की सरकार के सौ दिन पूरे होने पर पीछे जाएं तो यही दिखता है कि उन्हें अपेक्षा के हिसाब से एक खांचे में सीमित करने की मानसिकता हावी रही। यह न सिर्फ सोचा, बल्कि कहा भी गया कि डॉ. यादव राज्य में भाजपा सरकार के उस गौरव को शायद ही स्थाई रख पाएं, जो उनके पूर्ववर्ती आभामंडल ने कर दिखाया था। मगर यदि सोच का संक्रमण था तो डॉ. यादव बहुत कुशलता के साथ उसका अतिक्रमण करने में भी सफल रहे हैं। वह भी गलत अतिक्रामक नहीं, बल्कि सही के साथ अति-आक्रामक अंदाज में उन्होंने ऐसा कर दिखाया है।  राष्ट्रीय स्वयंसेवक की पाठशाला के सच्चे विद्यार्थी कम बोलने तथा ज्यादा करने में विश्वास रखते हैं। इसलिए जब डॉ. मोहन यादव लच्छेदार बातें करने से परहेज करते हुए अच्छे कामों पर ही ध्यान देते हैं, तो यह साफ हो जाता है कि सौ दिन का यह सफर अभी और उन पड़ावों का साक्षी बनेगा, जो कई तरीकों से उल्लेखनीय होगा।
पत्रकारिता के आरंभ से अब तक मैंने पद और कद, दोनों के लिहाज से बेहद शक्तिशाली असंख्य राजनेताओं को देखा है। वह भी बहुत नजदीक से। इसलिए एक अंतर वाली बात की जा सकती है। वह यह कि डॉ. मोहन यादव पद और कद के मद से बहुत दूर रहने में ही विश्वास रखते हैं। आज से सौ दिन पहले वाले जिन डॉ. यादव को मैंने देखा था, वह आज भी वैसे ही हैं। एक विजन और मिशन के साथ आगे बढ़ते हुए। और इन दोनों ही तत्वों से जुड़ा अहम भाव यह कि डॉ. यादव के स्तर पर इस दिशा में अहं का कोई स्थान नहीं है। वह आज भी पहले जितने ही सहज और सरल हैं। वह जटिल हुए तो उन हालात के विरोध में, जिनकी जटिलताओं के मकडज़ाल से पार पाना कई बार असंभव लगने लगता था। दिनों के हिसाब से गुजरा हुआ एक दशक इस बात का गवाह है कि मध्यप्रदेश में गलत करने वालों के बीच यह साफ संदेश जा चुका है कि अब बहुत हुआ। सुधर जाओ या सिधार जाओ। तो ऐसा कैसे होता है? किस तरह से विकास और विश्वास का यह क्रम बनता है? वह ऐसे कि डॉ. यादव एक रोड मैप लेकर पूरे होमवर्क के साथ आगे बढ़ रहे हैं। उन्होंने एक मुख्यमंत्री नहीं, बल्कि ठेठ आम नागरिक की तरह राज्य की दशा और दिशा को समझकर यह पाया है कि इस बारे में सुधार के लिए आगे क्या किया जाना चाहिए। इस सबका  सकारात्मक परिणाम दिखने लगा है। उसे समझने के लिए बुद्धि पर बहुत जोर डालने की आवश्यकता नहीं है। हां, सच से आंख मूंदकर कुछ बोलना और सोचना ही है तो फिर इस मर्ज का इलाज तो हकीम लुकमान के पास भी नहीं रहा होगा। हां, यदि सच के लिए आंख खोलकर फिर उस हिसाब से कहना और सोचना है तो ऐसा करके देखिए। आप पाएंगे कि मध्यप्रदेश के बीते यह सौ दिन सकारात्मक सोच वाली एक सौगंध लेकर आगे बढऩे वाला विषय बन गए हैं।

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