ईओडब्ल्यू में शिकायतों की भरमार… जांच के लिए नहीं है स्टाफ

  • हरीश फतेहचंदानी
ईओडब्ल्यू

आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (ईओडब्ल्यू) में शिकायतों की जांच के बाद प्राथमिकी दर्ज करने का सिलसिला तेज हो गया है। इसके बाद भी अभी 15 सौ से ज्यादा शिकायतें लंबित हैं। इनमें सबसे पुराने प्रकरण 2008 के हैं, यानी 13 साल बाद भी प्राथमिकी दर्ज नहीं हो पाई है। इसका लाभ आरोपितों को मिल रहा है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है की जहां एक ओर ईओडब्ल्यू में शिकायतों की भरमार है, वहीं जांच में देरी की बड़ी वजह यह है कि, जांच एजेंसी के पास स्वीकृत हमले में से 60 प्रतिशत की कमी है। दूसरी बात यह है कि कोरोना संक्रमण काल में लॉकडाउन की वजह से भी कार्य प्रभावित हुआ है। ईओडब्ल्यू के अधिकारियों ने बताया कि जांचों की संख्या बढ़ी है। गौरतलब है कि ईओडब्ल्यू में शिकायतों की जांच के बाद प्राथमिकी दर्ज की जाती है। पिछले वर्षों में प्राथमिकी का आंकड़ा औसतन 50 से 60 के बीच रहता था। 2021 में 91 मामलों में प्राथमिकी दर्ज की गई थी। 2022 में यह संख्या 110 तक पहुंच गई थी। जांच एजेंसी के पास हर वर्ष पांच से सात हजार शिकायतें पहुंचती हैं। शिकायतों का परीक्षण (स्क्रूटनी) किया जाता है। इनमें अधिकतम 10 प्रतिशत पर ही जांच शुरू हो पाती है। साक्ष्य के अभाव में या फिर आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ से संबंधित नहीं होने से बाकी शिकायतों पर ईओडब्ल्यू जांच करने की जगह संबंधित विभाग को भेज देता है। इस वर्ष 400 शिकायतों पर जांच शुरू हो चुकी है।
10 महीने ने नहीं डाला छापा
विभागीय अफसरों की मानें तो अफसरों की कमी का असर यह है कि सितंबर 2022 के बाद ईओडब्ल्यू की ओर से भ्रष्ट पर एक भी छापा नहीं मारा गया है। सूत्रों की मानें तो ईओडब्ल्यू के अफसरों ने इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री तक से चर्चा की थी। डीएसपी  स्तर के अफसरों की तैनाती गृह विभाग से होती है। डीएसपी स्तर के अफसर के तबादले की फाइल गृह मंत्री से होते हुए मुख्यमंत्री तक जाती है। पत्राचार और मेल-मुलाकातों के बाद शासन ने डीएसपी स्तर के कुछ अफसरों की तैनाती तो कर दी, लेकिन इंस्पेक्टर और सब इंस्पेक्टर स्तर के अफसरों की जांच एजेंसी को अभी भी दरकार है। ईओडब्ल्यू में निरीक्षक और सब इंस्पेक्टर स्तर के अफसरों की भारी कमी है। अफसरों की कमी का असर यह है कि सितंबर 2022 के बाद ईओडब्ल्यू की ओर से भ्रष्ट पर एक भी छापा नहीं मारा गया है। ऐसा इसलिए कि ज्यादातर मामलों की जांच की जिम्मेदारी इंस्पेक्टर स्तर के अफसरों के पास रहती है। भोपाल और इंदौर के ईओडब्ल्यू दफ्तर अफसरों की कमी से खासे प्रभावित हैं। सबसे ज्यादा असर सागर दफ्तर में है। सागर के ईओडब्ल्यू दफ्तर में एक महिला इंस्पेक्टर और एक महिला सब इंस्पेक्टर हैं। उनके अलावा डीएसपी स्तर के अफसर भी तैनात नहीं हैं। अफसरों की कमी की वजह से पूरे प्रदेश में जांच प्रभावित हो रही है और शिकायतों का अंबार लगता जा रहा है। डीएसपी-इंस्पेक्टर के नाम भेजे गए, आदेश नहीं हुए ईओडब्ल्यू में पदस्थ अधिकारियों को जब हटाया गया था, तो विकल्प के तौर पर अफसरों की नई तैनाती नहीं की गई। यह बात सही है कि जिन अफसरी को हटाया गया है, वे लंबे समय से ईओडब्ल्यू में पदस्थ थे। बहरहाल गृह विभाग और पीएचक्यू की जिम्मेदारी यह भी हैं कि अगर किसी अधिकारी को वहां से हटाया जा रहा है, तो विकल्प भी देना था।
नाम भेजे, लेकिन आदेश जारी नहीं
ईओडब्ल्यू में अफसरों की नई पदस्थापना करने के लिए डीएसपी और इंस्पेक्टर स्तर के कुछ अफसरों के नाम भी भेजे गए हैं, लेकिन उनके आदेश जारी नहीं हो रहे हैं। दो दर्जन से ज्यादा गंभीर मामलों की जांच लंबित प्रदेश में ईओडब्ल्यू के पास अभी देश के सबसे चर्चित ई-टेंडर घोटाले से लेकर कन्यादान घोटाला, प्याज घोटाला, राशन घोटाला, जबलपुर के पूर्व बिशप पीसी सिंह, जबलपुर आरटीओ संतोष पाल की अनुपातहीन संपत्ति का मामला महिला बाल विकास विभाग का आयरन प्रेम घोटाला बालाघाट के बिजली कंपनी के सहायक यंत्री दयाशंकर प्रजापति की अनुपातहीन पति का मामला, भोपाल के स्वास्थ्य विभाग के क्लर्क हीरो केसवानी के घर भारी मात्रा में मिली नगदी सहित दो दर्जन गंभीर मामलों की जांच है।
अक्टूबर में तबादले के बाद नहीं मिले आईओ
एजेंसी वित्तीय अनियमितताओं और भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों की जांच करती है, हालांकि, यह अपने स्तर पर काम करने में सक्षम नहीं है क्योंकि, यह वर्तमान में केवल आधे कर्मचारियों के साथ काम कर रही है। इसके पास कई मामले लंबित हैं, जबकि नई-नई शिकायतें भी आती रहती हैं, लेकिन कर्मचारियों की कमी के कारण अधिकारी इन पर गौर करने में असहाय हैं। दरअसल, अक्टूबर 2022 में, जांच अधिकारी (आईओ) के रूप में काम करने वाले 25 इंस्पेक्टर-रैंक के अधिकारियों को ईओडब्ल्यू से स्थानांतरित कर दिया गया था और तब से ये पद खाली पड़े हैं। सूत्रों के अनुसार, विभाग में 130 आईओ के पद स्वीकृत हैं, लेकिन लगभग 80 आईओ काम कर रहे थे। इनमें से 25 आईओ के तबादले के बाद एजेंसी आधे स्टाफ से भी कम से कमा चलाने पर मजबूर बनी हुई है। इस कारण मामलों की जांच रुकी हुई हैं और अधिकारियों की कमी के कारण एजेंसी की तलाशी या छापेमारी नहीं की जा रही है।
अफसरों की भारी कमी
आर्थिक अनियमितताओं की जांच करने वाली मप्र सरकार की सबसे बड़ी एजेंसी ईओडब्ल्यू के पास जांच के लिए अफसरों की भारी कमी है। ईओडब्ल्यू से अफसरों के तबादले तो किए गए, लेकिन उनके बदले में नए पदस्थ नहीं किए गए। भोपाल-इंदौर सहित तकरीबन सभी रेंज के दफ्तरों में जांच के लिए अफसर नहीं हैं। खूब प्रयास किए गए, तब कुछ डीएसपी को मिल गए, लेकिन निरीक्षक स्तर के अफसर अभी भी नहीं मिले हैं। यह स्थिति तब है, जब खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ईओडब्ल्यू में अफसरों की तैनाती के आदेश दे चुके हैं। ईओडब्ल्यू में डीएसपी और इंस्पेक्टर स्तर के अधिकारी काफी लंबे समय से पदस्थ थे। लिहाजा गृह विभाग ने एक आदेश जारी कर डीएसपी स्तर के अफसरों को हटा दिया था। बाद में इसी दलील के साथ पीएचक्यू ने निरीक्षक स्तर के अफसरों को ईओडब्ल्यू से वापस बुला लिया था। स्थिति यह हो गई अफसरों के ठिकानों पर कि बड़े आर्थिक घोटाले की जांच करने वाली एजेंसी के पास पड़ताल करने के लिए अफसर नहीं बचे। सामान्य तौर पर होता यह है कि अगर किसी दफ्तर से अफसर हटाए जाते हैं, तो उस जगह पर नए अफसरों की तैनाती भी र दी जाती है। ईओडब्ल्यू इस मामले में अपवाद है। ऐसा इसलिए कि ईओडब्ल्यू से अफसरों को हटाए हुए तकरीबन आठ महीने से ज्यादा का वक्त हो गया है और उनकी जगह पर तैनाती नहीं की गई।

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