पराली की आग में राख हो रहे हैं माटी से पोषक तत्व

  • खेतों में आग लगाना कभी भी लाभकारी नहीं

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र के किसान देश की 18.18 फीसदी आबादी को गेहूं की रोटी खिलाने का इंतजाम करते हंै। गेहूं उत्पादन के मामले में मप्र देश का दूसरा सबसे बड़ा राज्य है, लेकिन इससे अलग मप्र के किसान देश में सबसे ज्यादा गेहूं की फसल की कटाई के बाद खेतों में आग भी लगा रहे हैं। देश में पराली जलाने के मामले में मप्र में इस साल रिकॉर्ड टूटा है। कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक जल्दी खेत खाली करने का यह तरीका किसानों के लिए आने वाले सालों में बेहद नुकसानदायक साबित होगा। हम स्वयं के या गेहूं के जलने का नुकसान जानते हैं, मगर पराली जलाने से लग रही चपत का अंदाजा भी नहीं लगा पा रहे। कटे खेतों में बची पराली फूंककर खेत खाली करने की जल्दी सिर्फ जन-धन हानि का कारण ही नहीं बन रही, बल्कि यह माटी को भी बंजर कर रही है। कृषि और पर्यावरण के जानकार मानते हैं कि अगर इसे लेकर हम चेते नहीं तो बाद में बस पछताना ही हाथ आएगा। हाल के वर्षों में खेतों में गेहूं के डंठल यानी पराली जलाने की प्रवृत्ति तेजी से पनपी है। लोग कटाई और दंवाई की टेंशन से बचते हुए कंबाइन मशीनों से गेहूं कटवा लेते हैं। इससे खेतों में पराली खड़ी रह जाती है। आमतौर पर किसान खेतों में आग लगाकर इससे छुटकारा पा लेते हैं। थोड़े से आराम के लिए किसानों में बढ़ती यही प्रवृत्ति खेतों को बांझ कर रही है।
मिट्टी में मौजूद पोषक तत्व पराली के साथ राख में बदल जा रहे हैं। उपजाऊ ह्यूमस नष्ट हो जा रहा है। जीवांश कार्बन खोकर खेत क्षारीय होकर बंजर हो जा रहे हैं।
 जलती पराली बांझ बना रही खेत
 कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि पराली जलाने से उपजाऊ माटी बंजर हो रही है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) के कंसोर्टियम फॉर रिसर्च ऑन एग्रोईकोसिस्टम मॉनिटरिंग एंड मॉडलिंग फ्रॉम स्पेस (सीआरईएएमएस) के डैशबोर्ड के अनुसार, मप्र में इस साल अब तक 14,118 गेहूं की पराली में आग की घटनाएं हुई हैं। प्रदेश के जिन जिलों में गेहूं की पराली में आग की अधिक घटनाएं दर्ज हो रही हैं, वहां जायद फसल के रूप में मूंग की खेती का चलन बढ़ा है। इनमें नर्मदापुरम, रायसेन, देवास, विदिशा, हरदा और सीहोर जिले प्रमुख हैं। आईआईएसएस भोपाल के कृषि वैज्ञानिक डॉ. आशा साहू के अनुसार पराली जलाने से खेत की उर्वरता घटती है। मिट्टी की ऊपरी परत नष्ट हो जाती है। क्योंकि मिट्टी में मौजूद पोषक तत्व जैसे नाइट्रोजन और पोटैशियम, वाष्पित हो जाते हैं। काली मिट्टी की पौष्टिकता कमजोर हो जाती है। साथ ही मिट्टी में पाए जाने वाले लाभदायक जीवाणु और मित्र कीट जैसे केंचुए नष्ट हो जाते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि वातावरण में सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, और कार्बन मोनोऑक्साइड जैसी जहरीली गैसें फैलती हैं। इससे वायु प्रदूषण बढ़ता है और सांस संबंधी बीमारियां होती हैं।
सरकार की सख्ती नाकाम
जिलों में पराली जलाने पर प्रशासन अपने स्तर पर पर्यावरण क्षति का निर्धारण किया है। इसके अनुसार दो एकड़ भूमि वाले किसानों से पर्यावरण क्षति के रूप में 2,500 रुपए प्रति घटना आर्थिक दंड भरना होगा। 2 से 5 एकड़ तक की भूमि है तो उनको 5 हजार रुपए प्रति घटना और जिसके पास 5 एकड़ से अधिक भूमि है तो उनको 15 हजार प्रति घटना के मान से आर्थिक दंड भरना होगा। लेकिन इसके बाद भी पराली जलाने की घटनाएं रूक नहीं रही हैं। भोपाल जिले की सीमा में शनिवार को आधा दर्जन से ज्यादा स्थानों पर छापामार कार्रवाई कर पराली जलाने वाले 15 से ज्यादा किसानों के खिलाफ मामले दर्ज किए हैं। जिला प्रशासन ने चेतावनी जारी की है कि पराली जलाने वाले मामलों में किसी भी प्रकार की रियायत नहीं बरती जाएगी। सूचना मिलने पर प्रकरण दर्ज कर जुर्माना लगाया जाएगा।

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