फिर टलीं निगम मंडलों में नियुक्तियां अब 19 के बाद होगा फैसला

निगम मंडलों

भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। बीते सप्ताह दस घंटे तक प्रदेश संगठन के शीर्ष नेताओं और सूबे के मुखिया शिवराज सिंह चौहान के बीच चले मंथन के बाद भी अमृत की तलाश अधूरी रह गई, जिसकी वजह से एक बार फिर से राजनैतिक रूप से होने वाली निगम मंडलों में नियुक्तियों का मामला एक बार फिर से अटक गया है।
अब माना जा रहा है कि इन नियुक्तिओं के लिए कवायद विधानसभा के मानसून सत्र के 19 अगस्त को समाप्त होने के बाद एक बार फिर से की जाएगी। हालांकि इसमें हो रही देरी के लिए अब सत्ता व संगठन द्वारा प्रदेश के कई जिलों में बनी बाढ़ से तबाही की स्थिति का बनना भी बताया जा रहा है। इनमें होने वाली देरी की वजह से एक बार फिर सत्ता व संगठन में भागीदारी पाने का इंतजार कर रहे नेताओं को निराश होना पड़ रहा है। खास बात यह है कि इन नियुक्तियों का आम भाजपा नेताओं से अधिक उन नेताओं को है जो श्रीमंत के साथ कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे। इनमें वे नेता खासतौर पर शामिल हैं जो उपचुनाव में हार गए हैं। फिलहाल बारिश के इस दौर में इन नियुक्तिओं में अपनी संभावनाओं की तलाश में भटक रहे नेताओं को कहा जा रहा है कि ग्वालियर- चंबल संभाग में आई भयावह बाढ़ की वजह से सत्ता व संगठन में होने वाली नियुक्तियों को फिलहाल रोक दिया गया है। वास्तविकता यह है कि नामों को लेकर एक राय नहीं बन पा रही है।
पिछले सप्ताह 1 अगस्त को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा और संगठन महामंत्री सुहास भगत सहित हितानंद शर्मा के बीच इस मुद्दे पर 10 घंटे महामंथन चलता रहा। इस मैराथन बैठक का रिजल्ट क्या आने वाला था, यह तो सिर्फ चार नेता ही जानते थे, लेकिन इस परिणाम के आने से पहले ही बाढ़ की तबाही ने नियुक्तियों का मामला होल्ड करा दिया है। प्रदेश में इन नियुक्तियों को लेकर यह हाल तब है जबकि अब आगामी विधानसभा चुनाव को 2 साल का समय ही रह गया है। यही वजह है कि सियासी और संगठन में रिक्त चल रहे पदों को लेकर कार्यकर्ताओं में तेजी से इंतजार बना हुआ है। उल्लेखनीय है कि प्रदेश में मार्च 2020 में राजनीतिक उथल-पुथल के बीच भाजपा की सत्ता में वापसी हुई थी। इसके बाद से ही निगम मंडलों, आयोग और प्राधिकरण आदि में राजनीतिक नियुक्तियों का बेसब्री से इंतजार किया जा रहा है। सरकार व संगठन की लेटलतीफी की हालत यह है कि न तो सत्ता में ही नियुक्तियां हो पा रही हैं और न ही संगठन में। उल्लेखनीय है कि पूर्व की भाजपा सरकार के समय भी कई निगम मंडल पूरे कार्यकाल में रिक्त पड़े रहे, लेकिन उनमें नियुक्तियां करने में कोई रुचि ही नहीं ली गई। लगभग यही हाल विभिन्न आयोगों में भी रहा। इसकी वजह से चुनाव के समय कार्यकर्ताओं में नाराजगी भी देखी गई। लगभग यही हालात इस बार भी बने हुए हैं। गौरतलब है कि प्रदेश में करीब 15 माह रही कांग्रेस की कमलनाथ सरकार ने इस मामले में भाजपा की शिव सरकार को बहुत पीछे छोड़ते हुए अधिकांश निगम मंडलों और आयोगों में तो नियुक्तियां की ही थीं, साथ ही मैदानी स्तर पर भी कार्यकर्ताओं को महत्व देते हुए महाविद्यालयों से लेकर विभिन्न विभागों में समायोजित कर दिया था। यही वजह है कि अब प्रदेश में भाजपा की सरकार होने के बाद भी विभिन्न आयोगों में कांग्रेस नेता पदाधिकारी बने हुए हैं, जबकि इन सभी में भाजपा की पूर्व की सरकार के समय से ही पद रिक्त चल रहे थे। इसका फायदा कांग्रेस की नाथ सरकार को मिल गया।
अटका हुआ है अंत्योदय  समितियों का भी गठन
बताया जा रहा है कि राजनीतिक नियुक्तियों को लेकर कुछ नामों पर एक राय बन गई है। इस दौरान अंत्योदय समितियों के गठन  पर भी चर्चा की गई। हालांकि इन समितियों के गठन को लेकर भी असमंजस की स्थिति बनी है। इन समितियों के गठन की स्वयं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा कई माह पूर्व घोषणा की गई थी, लेकिन अब तक उनका गठन नहीं हो पाया है। इसके लिए हालांकि जिलों से नाम मंगाए जा चुके हैं, लेकिन वे नाम अब भी संगठन स्तर पर तय होने के लिए लंबित पड़े हुए हैं।  
बाढ़ को बताया जा रहा है अब वजह
प्रदेश की सत्ता व संगठन के शीर्ष चारों नेताओं के बीच चले लंबे मंथन के दौरान एक-एक नाम पर चर्चा के बाद सूची तैयार होने की बात कही जा रही है। इस सूची पर अंतिम मुहर पार्टी आलाकमान की लगने के बाद ही जारी की जाने की रणनीति तैयार करने की खबर थी, लेकिन इसी दौरान ग्वालियर चंबल संभाग के कई जिलों में भयावह बाढ़ ने हाहा कार मचा दिया, जिसकी वजह से इन नियुक्तियों को कुछ दिन और टालने के बहाने के रुप में देखा जाने लगा है। गौरतलब है कि शर्मा ने प्रदेश अध्यक्ष का कार्यभार फरवरी 2020 में संभाला था। इसके बाद भी अब तक प्रदेश में उनकी नई मीडिया टीम नहीं बन सकी है। इसी तरह से सरकार में भी हालात बने हुए हैं।

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