
सुप्रीम कोर्ट ने दो सप्ताह के लिए फिर टाला मामला…
भोपाल/विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर से मप्र के कर्मचारियों के प्रमोशन में आरक्षण के मामले को दो सप्ताह के लिए टाल दिया है, जिसकी वजह से कर्मचारियों का इंतजार फिर से बढ़ गया है। उधर, सरकार भी इस मामले में राजनैतिक नफा नुकसान की वजह से कोई निर्णय नहीं ले रही है, जिसकी वजह से सूबे के कर्मचारियों को पदोन्नति के हक से वंचित रहकर बगैर पदोन्नत हुए ही सेवानिवृत्त होने पर मजबूर होना पड़ रहा है। दरअसल इस मामले को लटकाने में प्रदेश सरकार की बेहद अहम भूमिका रही है। हाईकोर्ट के फैसले को राज्य सरकार ही राजनैतिक कारणों से सुप्रीम कोर्ट में लेकर गई है। दरअसल अब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा राज्यवार सुनवाई कर रही है। मंगलवार को कर्मचारियों के मामले में सुनवाई होने से उन्हें निर्णय आने की उम्मीद थी, लेकिन मामला दो सप्ताह के लिए फिर से टल गया है। दरअसल प्रदेश में छह साल से पदोन्नति की प्रक्रिया पूरी तरह से बंद पड़ी हुई है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गत 28 जनवरी को मुद्दे तय किए थे। इन्हीं मुद्दों को आधार बनाकर केंद्र और राज्यों की सरकार पदोन्नति को लेकर निर्णय लेना था। लेकिन पदोन्नति के संबंध में सरकार कोई निर्णय तक नहीं ले सकी। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने 24 फरवरी से राज्यवार सुनवाई शुरू की। इस मामले में पहले केंद्र सरकार के मामले सुने गए। इसके बाद राज्यों की सुनवाई शुरू की गई है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा मप्र के संबंध में मांग गए डाटा को सरकार द्वारा जमा कराया जा चुका है। जिसके विश्लेषण के बाद प्रदेश के संदर्भ में फैसला आएगा। इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट में तारीख भी लग चुकी है। उधर, अन्य राज्यों की बात की जाए तो कर्नाटक अनुसूचित जाति व जनजाति संगठन ने रिव्यू याचिका लगाई है, तो वहीं बिहार सरकार ने उनका प्रकरण वापिस लेने की अपील पुन: लगाई। जिस पर अनुसूचित जाति व जनजाति वर्ग के वकील ने विरोध किया।
हर साल हजारों कर्मचारी सेवानिवृत्त
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने वर्ष 2016 में ‘मप्र लोक सेवा ( पदोन्नति ) नियम 2002 खारिज किया है। प्रदेश के कर्मचारी लगभग पौने छह साल से पदोन्नति का इंतजार कर रहे हैं। इस अवधि में 70 हजार से अधिक कर्मचारी सेवानिवृत्त हो चुके हैं। इनमें से करीब 32 हजार कर्मचारियों को बगैर पदोन्नति के सेवानिवृत्त होना पड़ा है। सरकार ने वर्ष 2018 में कर्मचारियों की सेवा की अवधि दो साल बढ़ाकर 62 साल कर दी थी। वरना, सेवानिवृत्त होने वालों का आंकड़ा 75 हजार के पार हो जाता। मध्य प्रदेश के कर्मचारियों ने पदोन्नति को लेकर सरकार पर दोहरे मापदंड अपनाने का आरोप लगाना शुरू कर दिए है। कर्मचारियों का कहना है कि जब राज्य वन सेवा के अधिकारियों को भारतीय वन सेवा में पदोन्नत किया जा सकता है। डॉक्टरों को पदोन्नति दी जा सकती है, तो हमें क्यों नहीं? स्वास्थ्य विभाग ने हाल ही में 451 डाक्टरों को द्वितीय से प्रथम श्रेणी में पदोन्नत किया है। इससे पहले सरकार राज्य वन सेवा, जल संसाधन विभाग में अभियंता, पशुपालन विभाग में डाक्टरों को पदोन्नति दे चुकी है। यही नहीं अखिल भारतीय सेवा के अफसरों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ रहा है । इसकी वजह से वे भी इस मामले में कोई रुचि नहीं ले रहे हैं।
यह है विवाद
संविधान के अनुच्छेद 309 में राज्य सरकारों को कर्मचारियों की पदोन्नति से संबंधी नियम बनाने के अधिकार दिए गए हैं। इसी के तहत, 2002 के भर्ती नियमों में आरक्षण रोस्टर लागू था। लेकिन 30 अप्रैल 2016 को हाईकोर्ट ने आरक्षण रोस्टर को रद्द कर दिया था। तब से प्रमोशन में आरक्षण और प्रमोशन पर रोक लगी है। सरकार ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है, जिस पर 17 अगस्त को सुनवाई है, वहीं, 2016 से अब तक 70 हजार सरकारी कर्मचारी बिना प्रमोशन के रिटायर हो चुके हैं।