
- एक्सीलेंस स्कूल में प्रदेश का नया प्रयोग
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। राजधानी के शिवाजीनगर उत्कृष्ट विद्यालय में बड़ा नवाचार किया जा रहा है। यह प्रदेश का इकलौता विद्यालय होगा, जहां शिक्षकों और बच्चों के नाम के आगे जाति शब्द का उपयोग नहीं होगा। सिर्फ नाम से यहां सभी को पुकारा जाएगा। स्कूल का कहना है जातिवाद का भेदभाव मिटाने और राष्ट्रीयता की भावना को बढ़ावा देने यह कदम उठाया जा रहा है। देश के अनेक संस्थानों में यह व्यवस्था पहले से है। अब भोपाल के शिवाजी नगर उत्कृष्ट विद्यालय में जुलाई से यह सिस्टम शुरू हो जाएगा। स्कूल प्रबंधन का कहना है कि जातिगत भेदभाव को मिटाने और बच्चों में विद्यार्थी जीवन से ही राष्ट्र प्रेम की भावना जागृत करने के लिए यह नवाचार किया गया है। विद्यालय में छठवीं से बारहवीं तक बच्चे अध्ययन कर रहे हैं। अब स्कूल में इनके नाम के आगे कोई भी जाति (सरनेम) का उपयोग नहीं किया जाएगा। विद्यालय में होने वाले अनेक सांस्कृतिक एवं कलात्मक कार्यक्रमों के साथ अन्य प्रोग्रामों में किसी भी बच्चे के नाम के आगे सरनेम नहीं लगेगा। शिक्षक भी अपने साथियों और छात्र-छात्राओं को सिर्फ नाम से पुकारेंगे। इससे समरसता का भाव पैदा होगा। जातियों को लेकर ऊंच-नीच का भाव खत्म करना पहला उद्देश्य है। सभी भारतीय है और देश भक्ति का भाव लेकर काम करना है।
दस्तावेजों से कोई छेड़छाड़ नहीं
विद्यालय का कहना है कि यह सिर्फ विद्यालय का अपना नियम है। विद्यार्थियों की अंकसूचियों से लेकर अन्य दस्तावेजों में कोई छेड़छाड़ नहीं होगी। इनके सभी दस्तावेजों में नाम के आगे सरनेम यथावत लगेगा। स्कूल में शिक्षकों ने कक्षाओं में बच्चों को इसके लिए प्रेरित करना भी शुरू कर दिया है। बच्चों को बताया जा रहा है कि विद्यालय में वह अपने सहपाठियों को सिर्फ नाम से संबोधित करें। विद्यालय में जुलाई से हम यह व्यवस्था करने जा रहे हैं कि बच्चों और शिक्षकों को सिर्फ नाम से पुकारा जाए। जाति का उपयोग पूरी तरह बंद हो। जातिगत भेदभाव बंद हो और सभी में राष्ट्रप्रेम का भाव जागे। इसलिए यह निर्णय लिया गया है।
9वीं से बारहवीं तक दो हजार विद्यार्थी
एक्सीलेंस स स्कूल में 9वीं से बारहवीं तक दो हजार बच्चे इस समय अध्ययन कर रहे हैं। अभी भी नवीं में प्रवेश के लिए विधायकों से लेकर अनेक जनप्रतिनिधियों के हर दिन फोन हो रहे हैं। लेकिन इनकी पैरवी पर भी एडमीशन से सख्त मनाही हो रही है। स्कूल का कहना है कि प्रवेश परीक्षा में 90 फीसदी अंक लाने वाले बच्चों को ही पहली प्राथमिकता होगी। इसके बाद यदि सीटें खाली रहती हैं तो इससे नीचे अंक लाने वाले बच्चों को प्रवेश दिया जाएगा।