
- वन संपदा से आत्मनिर्भर बनेगा जनजातीय समाज
भोपाल/विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। आत्मनिर्भर मप्र की दिशा में काम करते हुए प्रदेश सरकार ने अब जनजातीय समाज को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सामुदायिक वन प्रबंधन का जिम्मा पूरी तरह से ग्रामीणों को सौंपे जाने की तैयारी कर रही है। सरकार का मानना है कि वन संपदा का उपयोग कर जनजातीय समाज आत्मनिर्भर बनेगा। इसकी घोषणा जनजातीय गौरव दिवस पर मप्र आ रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर सकते हैं। योजना जनजातीय वर्ग को ध्यान में रखकर तैयार की गई है। सामुदायिक वन प्रबंधन का जिम्मा ग्रामीणों के हाथ में आने के बाद वे पौधारोपण भी कराएंगे और कूप कटाई (पेड़ों की छंटाई) भी। कूप कटाई में वन विभाग को होने वाले फायदे में उनका भी हिस्सा रहेगा, जो लाभांश के रूप में उन्हें बांटा जाएगा। इसका प्रस्ताव भी तैयार हो गया है। इसे कैबिनेट से जल्द मंजूरी मिल सकती है। अभी योजना को प्रयोग के तौर पर प्रदेश के किसी एक जिले में लागू कर परिणाम देखे जाएंगे। इनके आधार पर ही प्रदेश के शेष जिलों में योजना लागू की जाएगी। लाभांश का प्रतिशत तय करने में देरी के चलते योजना शुरू करने में विलंब हो रहा है। हालांकि 10 प्रतिशत लाभांश देने की उम्मीद की जा रही है।
वनोपज के अधिकार से आर्थिक स्थिति होगी बेहतर
जानकारी के मुताबिक वनों के प्रबंधन के दौरान थिनिंग से जो भी बांस, बल्ली या जलाऊ लकड़ी निकलेगी वह समिति की होगी। कूप कटाई से मिली इमारती लकड़ी का अंश समिति को मिलेगा। संरक्षित क्षेत्र के बफर क्षेत्र में पर्यटन से जो भी आय होगी वह भी इन समितियों को जाएगी। वनोपज के अधिकार से उनकी आर्थिक स्थिति बेहतर होगी। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने हाल ही में घोषणा की थी कि पेसा कानून (ग्राम सभा को सामुदायिक संसाधनों की सुरक्षा और संरक्षण का अधिकार देने वाला कानून) के तहत ग्रामीणों को जंगल का प्रबंधन सौंपा जाएगा।
सरकार करेगी समितियों की मदद
राज्य सरकार इस कानून के तहत सामुदायिक वन प्रबंधन समितियों के गठन की जिम्मेदारी ग्राम सभा को देने जा रही है। ये समितियां हर साल विभाग के योजना के मुताबिक माइक्रो प्लान बनाएंगी और उसे ग्राम सभा से अनुमोदित करवाकर क्रियान्वित करेंगी। विभाग इस काम में समितियों की मदद करेगा, जबकि जरूरी वित्तीय संसाधन सरकार उपलब्ध कराएगी। इस घोषणा पर अमल करते हुए वन विभाग ने प्रस्ताव तैयार कर शासन को भेज दिया है। सूत्र बताते हैं कि प्रस्ताव में ग्रामीणों को 10 और 20 प्रतिशत तक लाभांश देने का जिक्र है। इसमें से 10 प्रतिशत लाभांश देने पर सहमति बन सकती है। यदि इतना भी लाभांश दिया जाता है, तो प्रदेश में करीब 95 करोड़ रुपये का लाभ बांटा जाएगा।
प्रत्येक वन समिति के सदस्य को लाभांश मिलेगा
योजना में अच्छा काम करने वाली प्रदेश की प्रत्येक वन समिति के सदस्य को लाभांश मिलेगा। वर्तमान में लाभ कमाकर देने वाले सिर्फ पांच जिलों हरदा, बैतूल, सिवनी, मंडला और डिंडौरी की समितियों और कभी-कभी खंडवा और बालाघाट जिले की समितियों को भी यह लाभ मिलता है। इसमें 45 करोड़ रुपये लाभांश बांटा जा रहा है। समिति के काम से ग्राम सभा खुश नहीं होती है, तो वह खुद ही उस समिति को भंग करके नई समिति गठित कर सकेगी। अभी तक यह अधिकार जिला वन मंडल अधिकारी (डीएफओ) को था। राज्य सरकार ने पंचायती राज व्यवस्था की पांचवीं अनुसूची के क्रियान्वयन में आने वाली दिक्कतों को दूर करने के लिए पेसा ग्राम सभाओं का गठन किया है। इसमें ग्राम सभाएं स्थानीय विकास के लिए अपने स्तर पर योजनाएं बना सकेंगी। पेसा ग्राम पंचायतों में गैर जनजातीय वर्ग के अधिकारों को भी संरक्षित रखा गया है।