छह दशक पुरानी है कांग्रेस नेताओं की बगावत

गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में जब भी विधानसभा या फिर लोकसभा चुनाव की आहट शुरु होती है, कांग्रेस नेताओं का पार्टी कोअलविदा कहकर भाजपा में शामिल होने की सिलसिला शुरु हो जाता है। अब लोकसभा चुनाव पास हैं तो प्रदेश में कांग्रेस छोडक़र जाने वालों का सिलसिला ऐसा शुरु हुआ कि वह रुकने का नाम ही नहीं ले रहा है। इसके बाद भी कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व का पार्टी की अंदरूनी हालातों पर ध्यान ही नहीं दिया जा रहा है।  पार्टी कार्यकर्ताओं में इन दिनों बेहद असंतोष है। मार्च 2020 में कांग्रेस के 22 विधायकों ने एक साथ पार्टी को छोड़ कमलनाथ सरकार को हटने पर मजबूर कर दिया था। इसके बाद भी पार्टी में इस बात को लेकर कभी मंथन नहीं किया गया कि आखिर क्या वजह है कि पार्टी के पुराने और कद्दावर नेता पार्टी क्यों छोड़ रहे हैं। हाल ही में कांग्रेस के बड़े नेता पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी, पूर्व विधायक संजय शुक्ला, विशाल पटेल और पूर्व सांसद गजेंद्र सिंह राजूखेड़ी ने कांग्रेस का सालों पुराना साथ छोड़ भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया।  भाजपा में शामिल होने के साथ ही उन्होंने कई कारण बताए जिस वजह से वे कांग्रेस छोड़ रहे हैं। इसके बाद दो और पूर्व विधायकों ने भी पार्टी को अलविदा कह दिया है। खबर तो यह भी है कि अब पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी के पुत्र दीपक जोशी भी कभी भी पार्टी को अलविदा कह सकते हैं। दरअसल कांग्रेस अब एक ऐसा संगठन हो गया है, जिसकी तुलना सूखे पेड़ जैसी हो गई है। न सत्ता, न प्रभावशाली नेतृत्व और पार्टी का लगातार घटता जनाधार और आपसी गुटबाजी, लगातार स्थानीय नेताओं की उपेक्षा कांग्रेस को कमजोर कर रही है। जिस तरह से प्रदेश में नेता पार्टी छोड़ रहे हैं, उससे तो यह कयास लगाए जाने लगे हैं कि कहीं प्रदेश में कांग्रेस के सामने लोकसभा प्रत्याशी के लिए उम्मीदवारों का संकट खड़ा न हो जाए।  
1967 में दो फाड़ हो गई थी कांग्रेस
पंडित द्वारका प्रसाद मिश्र प्रदेश के राजनीति में काफी प्रभावशाली थे। 1967 के आम चुनाव में उन्होंने उम्मीदवारी के लिए आवेदन न देने वाले प्रदेश के नेताओं को टिकट नहीं दिए। इनमें प्रमुख नेता डॉक्टर कैलाशनाथ काटजू, भगवंतराव मंडलोई,  तख्तमल जैन और विजयाराजे सिंधिया प्रमुख थे। टिकट वितरण की इस गड़बड़ी ने कांग्रेस में दो फाड़ कर दिए थे। कांग्रेस से असंतुष्ट नेताओं ने जन कांग्रेस अलग दल बना लिया था। उस वक्त कांग्रेस से राज्यसभा सांसद खूबचंद बघेल जो पूर्व में प्रजा समाजवादी दल के नेता थे, वे मिश्र के मुख्यमंत्री बनने के बाद कांग्रेस में शामिल हो गए थे। बाद में बघेल कांग्रेस से इस्तीफा देकर जन-कांग्रेस में शामिल हो गए थे। एम.एल.जमनिक सपा नेता थे और 1964 में वे कांग्रेस में शामिल हो गए थे। दमोह और मुरैना से कई कांग्रेस के कार्यकर्ता कांग्रेस छोड़ जन-कांग्रेस में सम्मिलित हो गए। उन्होंने कांग्रेस ने नेतृत्व पर आरोप लगाया था कि उन्हें परेशान किया जा रहा है।  
कांग्रेस के प्रति असंतोष से बनी थी संविद सरकार
प्रदेश में पहली गैर कांग्रेसी संविद सरकार कांग्रेस के प्रति असंतोष की वजह थी। 1967 में पंडित मिश्र की सरकार को अल्पमत होने के संकट से बचाने के लिए जुलाई 1967 में आठ विधायकों को कांग्रेस में शामिल करने की अनुमति अखिल भारतीय कांग्रेस समिति ने दी थी। इस तरह आज यदि प्रदेश में दलबदल हो रहा है और कांग्रेस छोड़ कर वरिष्ठ नेता भाजपा में सम्मिलित हो रहे हैं तो यह कोई  नई बात नहीं है। प्रदेश के राजनीतिक इतिहास में सत्ता को बचाने के लिए दलबदल और गुटबाजी का श्रीगणेश 1962 से आरंभ हो गया था। अपने साथियों और कद्दावर नेताओं की उपेक्षा कांग्रेस ने 60 साल पहले से आरंभ कर दी थी। दलबदल और पाला बदलने का खेल जो कांग्रेस ने आरंभ किया वह ही उसे अब भारी पड़ रहा है। सत्ता और पद के प्रति आकर्षण होना एक सामान्य सिद्धांत है। चुनाव के करीब आते-आते और भी कई राजनेता कांग्रेस का साथ छोड़ भाजपा में शामिल हो सकते हैं।गौरतलब है कि प्रदेश में कांग्रेस के अब तक करीब दो दजन पूर्व विधायक भाजपा में शामिल हो चुके हैं। यही नहीं इसके अलावा दर्जनों मौजूदा वे नेता भी कांग्रेस को छोडक़र भाजपा का दामन थाम चुके हैं, जो अभी किसी नकिसर निकाय में निर्वाचित जन प्रतिनिधि हैं।
माधवराव सिंधिया व अर्जुन सिंह ने भी छोड़ी थी पार्टी
1996 में कांग्रेस से नाराज तीन बड़े नेता नारायण दत्त तिवारी, अर्जुन सिंह और माधवराव सिंधिया ने पार्टी छोड़ दी थी। इनमें मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने तिवारी कांग्रेस पार्टी का गठन कर लोकसभा का चुनाव लड़ा था तो माधवराव सिंधिया ने ‘मध्य प्रदेश विकास कांग्रेस’ पार्टी का गठन किया था। 1996 के चुनाव में माधवराव सिंधिया इसी पार्टी से मैदान में उतरे थे और जीत दर्ज की थी। माधव राव सिंधिया की पार्टी का चुनाव चिन्ह ‘ऊगता हुआ सूरज’ था। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि कांग्रेस में माधवराव सिंधिया के पास भी कई राजनैतिक विरोधी थे। माधवराव सिंधिया को कभी  मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री बनना था, लेकिन उनकी जगह दिग्विजय सिंह मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए थे। हवाला घोटाला में जब माधवराव सिंधिया का नाम आया तो कांग्रेस के कई बड़े नेताओं ने माधवराव सिंधिया के खिलाफ हमला बोल दिया था। उसके बाद माधवराव सिंधिया को केन्द्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा देना पड़ा था।

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