- विनोद उपाध्याय

मप्र की 16वीं विधानसभा के पंचम सत्र यानि बजट सत्र में विधायकों ने बढ़-चढकऱ सवाल पूछे, लेकिन विडंबना यह है कि कई विभागों ने सवालों के जवाब देने में केवल खानापूर्ति की है। यानी जनता इंतजार करती रही और माननीयों के सवालों का जवाब नहीं दिया गया। विधानसभा का रिकॉर्ड बता रहा है कि 80 विधायकों के सवालों के जवाब में राजस्व विभाग ने बड़ी गफलत की। विभागों द्वारा विधानसभा को लिखकर भेज दिया गया है कि विस्तृत जानकारी परिशिष्ट में है। यह विधानसभा को भेज दी गई। लेकिन जब विधायक परिशिष्ट लेने पहुंचे तो उन्हें वो मिले ही नहीं। यानि विधानसभा पुस्तकालय के रिकॉर्ड में भी नहीं थे। विधानसभा ने इस मामले को गंभीरता से लिया है। साथ ही डीओ लेटर लिखकर आपत्ति की है। गौरतलब है कि मप्र विधानसभा के बजट सत्र में भले ही 9 बैठकें हुईं, लेकिन इस दौरान जिस तरह सदन की कार्यवाही बिना गतिरोध के चली, उससे एक बार फिर से मप्र की गरिमा लौटी है। मप्र विधानसभा का बजट सत्र भले ही छोटा था, लेकिन इस दौरान जिस तरह विधायी, वित्तीय तथा लोक महत्व के कार्य संपन्न हुए, उससे मप्र विधानसभा एक बार फिर 21 साल पुरानी परिपाटी पर लौटती नजर आ रही है। लेकिन विडंबना यह पहले की तरह इस बार भी विधायकों के सवालों की पूरी जानकारी नहीं दी गई है।
8 साल पुराने सवालों के जवाब अब तक नहीं
मप्र विधानसभा में आठ साल पहले मंत्रियों की ओर से सवाल के जवाब देने के लिए दिए गए आश्वासन अभी तक पेंडिंग हैं। अकेले जल संसाधन विभाग के ही 113 सवालों के जवाब में दिए गए आश्वासन पर सरकार की ओर से अभी तक विधानसभा को अवगत नहीं कराया गया है। इसमें वर्ष 2017 में दिए गए कई आश्वासन भी शामिल हैं। इसे देखते हुए अब विधानसभा सचिवालय ने जल संसाधन विभाग को लंबित आश्वासनों की सूची भेजी है और इसका जल्द से जल्द जवाब भेजने को कहा है। यह विभाग 2020 में कांग्रेस की सरकार गिरने के बाद से अब तक मंत्री तुलसी सिलावट के पास है। सवाल करने वाले कई विधायक 2018 का चुनाव हारने के बाद 2023 में फिर विधायक बन गए हैं जिसमें मुकेश नायक भी शामिल हैं। वहीं, कुछ विधायक पिछले चुनाव में हार के कारण अब पूर्व विधायक बन गए हैं।
इन सवालों के जवाब का इंतजार
पन्ना जिले में बांध टूटने के कारण और दोषी अधिकारियों के विरुद्ध जांच को लेकर विधानसभा में सवाल उठा था, जिसमें ठेकेदार मेसर्स त्रिशूल कंस्ट्रक्शन जबलपुर से खर्च हुई राशि की वसूली होनी थी। इस मामले में सरकार ने विधानसभा में आश्वासन दिया था कि विभागीय जांच की जा रही है, और ठेकेदार के विरुद्ध निलंबन की कार्यवाही के लिए मुख्य अभियंता धसान केन कछार सागर द्वारा नोटिस जारी किया है। कार्यपालन यंत्री पन्ना ने सिरस्वाहा तालाब निर्माण का एग्रीमेंट अमान्य कर दिया है, और ठेकेदार से राशि की वसूली की जाएगी। फरवरी मार्च 2017 में विधानसभा सत्र के दौरान दिए गए मंत्री के आश्वासन का जवाब अब तक विधानसभा तक नहीं पहुंच सका है। यह बांध 2016 की बारिश में टूटा था और चार गांवों की बस्तियां जल मग्न हो गई थीं। शहडोल जिले के ब्यौहारी तहसील के ग्राम बिजहा में दुधारिया नदी पर सिंचाई परियोजना में किसानों की जमीन अधिग्रहित की गई है लेकिन मुआवजा नहीं दिया है। किसानों की 70.181 हेक्टेयर जमीन अधिग्रहण का यह मामला पूर्व विधायक केदारनाथ शुक्ला ने मार्च 2017 के विधानसभा सत्र में उठाया था। इसका जवाब भी विधानसभा को सरकार अब तक नहीं दे सकी है। पन्ना जिले में बुंदेलखंड पैकेज के अंतर्गत बांध निर्माण और नहरों को बनाने में अनियमितता का मामला विधायक मुकेश नायक ने मार्च 2017 में उठाया था। मंत्री ने आश्वासन दिया था कि कार्यपालन यंत्री और अनुविभागीय अधिकारी व उपयंत्री को सस्पेंड किया है। उनकी विभागीय जांच चल रही है। इस मामले में आगे की कार्रवाई से विधानसभा को अवगत नहीं कराया है। मुकेश नायक ने एक अन्य मामला पन्ना के बिलखुरा और सिरस्वाहा बांध टूटने का उठाया था। जिस पर 2 करोड़ रुपए खर्च हुए थे, और अफसरों पर कार्रवाई के बाद जानकारी देने के लिए कहा था। मार्च 2018 के सवाल पर दिए गए आश्वासन का जवाब अब तक विधानसभा को नहीं भेजा है। प्रदेश में सडक़ निर्माण के ई-टेंडर में हुई गड़बड़ी और अनियमितता का मामला विधायक हर्ष विजय गहलोत ने अगस्त 2021 में विधानसभा सत्र में उठाया था। इस पर जांच जारी होने और कार्यवाही प्रक्रियाधीन होने की जानकारी दी गई लेकिन इसके बाद आगे की कार्यवाही को लेकर दिए गए आश्वासन का जवाब विधानसभा नहीं पहुंचा है।
सवाल का जवाब देने में छूट गए पसीने
विधानसभा के बजट सत्र के दौरान अधिकारियों के पसीने उस वक्त छूट गए। जब कांग्रेस विधायक के एक सवाल का जवाब तैयार करना था। पूर्व मंत्री और विधायक बाला बच्चा ने फूड एवं न्यूट्रीशियन सिक्योरिटी को लेकर सवाल पूछा था। जिसका जवाब देने के लिए अधिकारियों ने 7 बंडल का जवाब तैयार किया। जिसका वजन लगभग 50 किलो है। पूर्व मंत्री और विधायक बाला बच्चन ने सवाल पूछा था कि फूड एवं न्यूट्रीशियन सिक्योरिटी के तहत पिछले चार सालों में कितने जिलों में, कितने किसानों को 100 रुपए से 2 हजार रुपए तक की भुगतान राशि दी गई है। इसके लिए हितग्राहियों के नाम, पता, प्रदान की गई राशि, बैंक का नाम सहित पूरी जानकारी मांगी गई थी। बाला बच्चन ने साथ ही एक और सवाल पूछा कि चार सालों में हितग्राहियों के द्वारा प्रस्तुत किए गए बिल की फोटोकॉपी विधानसभावार और जिलेवार दी जाए। क्योंकि कई मामलों में राशि प्रस्तुत किए गए बिलों के अनुसार बैंक अकाउंट में न देकर नगर दी गई।
विधानसभा ने पूछा कारण
गौरतलब है कि मप्र में सहारा समूह की संपत्तियों की खरीद-फरोख्त हुई या नहीं, हुई तो किसने की, बेचने और खरीदने वाला – कौन है, किस नियम के तहत ऐसा हुआ, भूमि की कीमत कितनी थी और कलेक्टर गाइड लाइन क्या कहती है… आदि कई सवालों के साथ सरकारी जमीनों की मौजूदा स्थिति को लेकर सत्तापक्ष और विपक्ष के ढेरों विधायकों ने विधानसभा में सवाल लगाए थे। लेकिन विभागों ने करीब 80 विधायकों के सवालों का पूरा जवाब नहीं दिया है। विधानसभा के प्रमुख सचिव एपी सिंह ने राजस्व विभाग से कहा है कि तत्काल सात दिन के भीतर व्यक्तिगत रूचि लेकर परिशिष्ट के साथ जानकारी भिजवाएं। राजस्व विभाग के प्रमुख सचिव विवेक पोरवाल का कहना है कि पत्र आया है। कुछ कलेक्टरों से जानकारी नहीं मिल थी। अब आ गई है। एक-दो दिन में विधानसभा को भेज दी जाएगी। यहां बता दें कि कांग्रेस विधायक जयवर्धन सिंह ने ही पूछा था कि 2020 के बाद सहारा समूह की कितनी जमीनों के सौदे हुए। राजस्व विभाग की ओर से कह दिया गया कि जानकारी विधानसभा के पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट में है। जबकि वहां कोई दस्तावेज नहीं था। कई दूसरे विधायकों के साथ भी ऐसा ही हुआ।