- चार साल से नहीं खुला कर्मचारी आयोग का ताला
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। कर्मचारियों की मांगों पर सीधे फैसला लेने, कर्मचारियों की वेतन विसंगतियों, सेवा शर्तों के साथ सरकार से कार्यप्रणाली में सुधार की सिफारिशें करने के लिए गठित कर्मचारी आयोग में पिछले चार साल से ताला लटका हुआ है। इसका परिणाम यह हो रहा है कि कर्मचारियों की समस्याएं शासन तक नहीं पहुंच पा रही है। प्रदेश के लाखों सरकारी सेवकों की समस्याओं का समाधान करने के लिए इसे बनाया गया था। पद संरचना के अनुसार पूरा स्टॉफ है, जो एक प्रकार से कागजों पर काम कर रहा है। मप्र राज्य कर्मचारी संघ के अध्यक्ष हेमंत श्रीवास्तव का कहना है कि आयोग को शुरू करने के लिए सरकार के समक्ष पक्ष रखा गया है। यह आयोग प्रचलन में आना चाहिए। इस समस्या से सरकार को भी अवगत करा दिया गया है। तत्काल अध्यक्ष सहित सदस्यों की नियुक्ति होना चाहिए। गौरतलब है कि वर्ष 2018 में जब कमलनाथ सरकार बनी थी, तब इस आयोग का गठन किया गया था। इसका बाकायदा फाइनेंस डिपार्टमेंट की 12 दफ्तर के पास बिल्डिंग में कार्यालय शुरू हुआ था। इसके लिए जो आदेश जारी हुआ था उसमें अध्यक्ष सहित सदस्यों का एक साल का कार्यकाल था। प्रारंभिक दौर में पूर्व आईएएस और जज को बतौर सदस्य नियुक्त किया गया।
6 माह तक चली कमीशन की बेंच
जब सरकार ने कर्मचारी आयोग का गठन किया था, तब 6 माह तक इस कमीशन की बेंच चली। प्रतिदिन मान्यता और गैर मान्यता प्राप्त कर्मचारियों के 6 संघों को बुलाया जाता था। इसमें 40 से अधिक मांगों पर सुनवाई भी हुई। इसमें विभिन्न कर्मचारी संवर्गों की वेतन विसंगतियों को दूर करने, केंद्र के समान सुविधाएं, पदोन्नति, क्रमोन्नति, अनुकंपा नियुक्ति, ग्रेच्युटी, दैवेभो स्थाई कर्मियों का नियमितीकरण, पंचायत सचिवों रोजगार सहायकों, अतिथि शिक्षकों को सम्मानजनक वेतनमान, संविदा कर्मियों को नियमित सेवकों की भाति सुविधा, पेंशनरों के स्वत्वों का समय-सीमा में निराकरण सहित कई मांगों पर सुनवाई हुई थी। इसके बाद शासन से मांगों का समाधान कराने संक्षेपिका तैयार की गई थी।
कर्मचारियों ने सीएम के सामने रखी बात
मौजूदा सरकार के समर्थित संघों ने आयोग को तत्काल शुरू कराने दबाव बनाया है। इस संबंध में राज्य कर्मचारी संघ ने मुख्य सचिव से मुलाकात की है। पिछले दिनों राज्य कर्मचारी संघ के कार्यक्रम में शामिल होने पहुंचे मुख्यमंत्री से व्यक्तिगत तौर पर भी संघ पदाधिकारियों ने आग्रह किया था। कर्मचारियों की समस्याओं के लिए 90 के दशक में मंत्रालय में मप्र कर्मचारी कल्याण समिति का गठन किया था। इस समिति में तृतीय श्रेणी स्तर के किसी भी रिटायर्ड कर्मचारी को अध्यक्ष बनाया जाता रहा है। जिसे सरकार की ओर से राज्यमंत्री का दर्जा भी प्राप्त रहा है।
