कुप्रबंधन से मुश्किल हुई विकास की राह

सैकड़ों पंचायतों में बरसों से बिना उपयोग किए करोड़ों रुपए पड़े बेकार

गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में सरकार का फोकस विकास पर है। यही कारण है कि सरकार विकास कार्यों के लिए हर माह कर्ज ले रही है। लेकिन विसंगति यह है कि सरकार के पास मॉनिटरिंग सिस्टम कमजोर होने और खजाने के कुप्रबंधन के कारण विकास की राह मुश्किल होती जा रही है। आलम यह है कि सरकार ने विकास कार्यों के लिए बजट तो जारी कर दिया है, लेकिन उसका उपयोग हुआ कि नहीं, कितनी राशि खर्च हुई कितनी बची हुई है इसकी खोज खबर लेने वाला कोई नहीं है। खजाने के ऐसे कुप्रबंधन और हर लेवल पर लापरवाही के कारण विकास की गति तो अवरूद्ध हो ही रही है, पैसा भी जस का तस रखा हुआ है। जानकारी के अनुसार गांवों और शहरों के सरकारी खजाने के कुप्रबंधन की ओर किसी का ध्यान ही नहीं जा रहा है। सरकार विकास कार्यों के लिए फंड तो जारी कर देती है, लेकिन उसकी मॉनिटरिंग नहीं की जाती है। खजाने के कुप्रबंधन की वजह है उपयोग प्रमाण न देना, स्थानीय स्तर पर दस्तावेज न देना। ऑडिट में लापरवाही और जांच में देरी, आवंटन में देरी, अनुपयोगी राशि खातों में रहना और गड़बडिय़ों व भ्रष्टाचार पर पर्देदारी। सूत्रों का कहना है कि बेपरवाह सिस्टम के कारण सरकार के खजाने का कुप्रबंधन हो रहा है। इस कारण सरकार को हर माह हजारों करोड़ रूपए का कर्ज लेना पड़ रहा है। अगर सरकार सर्वे करवाए तो हजारों करोड़ रूपए की अनुपयोगी राशि खातों में पड़ी मिल जाएगी।
हर साल औसतन 39 हजार करोड़ खर्च
जानकारी के अनुसार प्रदेश के गांवों और शहरों के विकास पर सरकार हर साल औसतन 39 हजार करोड़ रुपए खर्च कर रही है। इसके बावजूद चुनिंदा शहरों के आगे विकास गुम है। गांवों में पंचायतों से लेकर शहरों में स्मार्ट सिटी तक सरकारी खजाने के कुप्रबंधन से विकास की राह मुश्किल हो रही है। कहीं लोकल ऑडिट फेल हो गया तो कहीं राशि के आवंटन में देरी विकास की गति धीमी कर रही है। आलम यह है कि सरकार लगातार कर्ज ले रही है, लेकिन सैकड़ों पंचायतों में बरसों से बिना उपयोग किए करोड़ों रुपए बेकार पड़े हैं। कई जगहों पर तो एडवांस देकर भी जिम्मेदार भूल गए हैं। हद यह है कि गांवों व छोटे शहरों में अभी भी संपत्ति और जल कर के पुराने स्लैब ही लागू हैं। इससे आय प्रभावित हो रही है। स्मार्ट सिटी के 441 प्रोजेक्ट पूरे हुए, 224 चल रहे हैं। 26,255 करोड़ बजट है। 60 प्रतिशत राशि खर्च हो गई, पर एक भी शहर पूरी तरह स्मार्ट नहीं हो सका। अमृत मिशन के तहत प्रदेश में  211 प्रोजेक्ट हैं। 161 पूरे हुए, 50 चल रहे हैं। 6470 करोड़ के प्रोजेक्ट हैं। आवंटन में देरी हो रही रही है। 50 काम 10 प्रतिशत भी नहीं हो सके हैं। स्वच्छ भारत के तहत 295 निकाय ओडीएफ प्लस हैं। 74 ओडीएफ, भिंड, राजगढ़, छतरपुर, रायसेन, रतलाम, सिवनी में 1-1 व मुरैना में दो नॉन ओडीएफ।
सिस्टम की गड़बड़ी
मप्र में सिस्टम की गड़बड़ी हर लेवल पर हो रही है। कहा जा रहा है कि लोकल ऑडिट पूरी तरह फेल है। जिला स्तर पर लोकल ऑडिट की व्यवस्था है। ऑडिटर के लिए सालाना लक्ष्य भी हैं। फिर भी यह अधूरा ही रहा। वित्तीय वर्ष 2021-22 में 13 के बजाए 11, 2020-21 में 12 में से 8, 2019-20 में 17 में से 11, 2018-19 में 14 में से 10, 2017-18 में 13 में से 3 और 2016-17 में 11 में से 7 ही लोकल ऑडिट जिला पंचायत स्तर पर हुए। ऐसी ही स्थिति जनपद और ग्राम पंचायत स्तर पर भी रही। 2016 से 2021- 22 तक जनपद में 369 के बजाए 246 और ग्राम पंचायतों में 19532 के बजाए 11075 ऑडिट ही हुए। स्मार्ट सिटी मिशन में भी कुप्रबंधन और लापरवाही सामने आई है। प्रदेश के 7 शहरों में स्मार्ट सिटी मिशन के तहत चल रहे प्रोजेक्ट में खामियों की भरमार है। स्मार्ट सिटी के फंड का उपयोग करने में कोताही और फंड आवंटन भी देरी के कारण योजना में अपव्यय हुआ है। वहीं गांवों और शहरों में टैक्स वसूली में भारी लापरवाही हुई। गांवों में 2016-17 से 2021- 22 तक ही गांवों में चिह्नित क्षेत्र में 10 से 24 फीसदी ही जल कर की वसूली हुई। चुनावी साल 2023 में नए कर लगाने पर बवाल मचा। इसके बाद वसूली पर अघोषित ब्रेक लग गया। इसी अवधि में शहरों में 1.14 लाख से ज्यादा घरों के संपत्ति कर की वसूली नहीं हुई। यह करीब 400 करोड़ रुपए है। इतना ही नहीं गांवों में टैक्स स्लैब भी दशकों पुराने हैं, जबकि शहरों में कई बार रिफॉर्म हो चुके हैं।

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