40 हजार हेक्टेयर से अधिक जमीन के अतिक्रमण कर्ताओं को मिले पट्टा

भोपाल/अपूर्व चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम।
मध्यप्रदेश देश का भले ही सर्वाधिक वन वाला प्रदेश हो, लेकिन विभाग और अतिक्रमणकर्ताओं की मिली भगत से अब न केवल वन भूमि पर तेजी से संकट बढ़ रहा है , बल्कि वन क्षेत्रफल में भी कमी आती जा रही है। खास बात यह है की इन अतिक्रमणकर्ताओं के साथ सरकार भी खड़ी रहती है। यही वजह है कि प्रदेश में जंगलों की 54 हजार 173 हेक्टेयर जमीन अतिक्रमण कर्ताओं ने कब्जा रखी है। इसमें भी हद यह है कि अधिकांश कब्जाधारियों को प्रशासन ने पट्टा तक दे डाला है। इसकी वजह से इस कब्जाई गई जमीन में से 80 फीसदी यानी की करीब 40 हजार हेक्टेयर से अधिक जमीन के पट्टा लोगों के पास मिल जाएंगे। चौंकाने वाली यह जानकारी केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव द्वारा हाल ही में लोकसभा में दी गई है। यह रकबा कुल वन क्षेत्र का करीब फीसदी है। इस मामले में सूबे के वन अफसरों का कहना है की प्रदेश में वन भूमि पर कब्जा होने और उन्हें पट्टा दिए जाने के मामले हर साल बढ़ रहे हैं। इसकी वजह है सरकार द्वारा वनाधिकार पट्टों का वितरण किया जाना। दरअसल प्रदेश में 2008 के बाद से वनाधिकार पट्टे दिए जा रहे हैं। अब तक 3.14 लाख हेक्टेयर जमीन पट्टे पर जा चुकी है। इसमें से 80 फीसदी पर अतिक्रमण है। इस तरह के सर्वाधिक मामले बड़वानी, खरगोन, बुरहानपुर, खंडवा और देवास के साथ गुना जिले के हैं। मप्र में जितना अतिक्रमण है, वह असम के बाद देश में सर्वाधिक है। इस हिसाब से मप्र देश में सर्वाधिक अतिक्रमण वाला दूसरा प्रदेश है। इसकी वजह है प्रदेश सरकार में अतिक्रमण के मामले में राजनैतिक इच्छाशक्ति की कमी होना। यह हाल तब बने हुए हैं जबकि इस तरह के अतिक्रमण हटाने के लिए कई कानून बने हुए हैं। असम में 3.77 लाख हेक्टेयर से अधिक वनभूमि पर अतिक्रमण हैं। अतिक्रमण को रोकने या हटाने के लिए भारतीय वन अधिनियम 1927, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 और वन अधिनियम 1980 में प्रावधान पहले से हैं। इस मामले में राज्यों के पास अधिकार भी हैं, लेकिन अतिक्रमण कम होने की जगह बढ़ता ही जा रहा है। अगर देश के सबसे अधिक वन भूमि वाले अतिक्रमण वाले प्रदेशों की सूची में देख तो सर्वाधिक अतिक्रमण वाले 10 राज्यों में असम का पहला स्थान है। इस प्रदेश में 377532.63 हेक्टेयर में अतिक्रमण है। इसी तरह से मध्यप्रदेश में 54173.28, अरुणाचल में 53450.43, ओडिशा में 33154.19 आंध्र प्रदेश में 34358.33, झारखंड में 29048.50, उत्तर प्रदेश में 27325.17, जम्मू-कश्मीर में 16512.39 , तमिलनाडु में 15010.71 और राजस्थान में 13939.99 हेक्टेयर में अतिक्रमण किया जा चुका है।
2.80 लाख हेक्टेयर जमीन डी-नोटिफाई
विकास कामों के नाम पर भी बन भूमि को जमकर डी-नोटिफाइ किया जा रहा है। हालत यह है की बीते तीन दशकों में ही सिंचाई, सड़क, बांध के डूब क्षेत्र, रक्षा, रेलवे और अन्य विकास कामों के लिए 2.80 लाख हेक्टेयर भूमि डी-नोटिफाई हो चुकी है। वन विभाग के अधिकारिक सूत्रों का कहना है कि इसके बदले में जो जमीन मिली, वह पूरी तरह फॉरेस्ट कवर के लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकी है।
तीस हजार वर्ग किमी वन भूमि पर क्या है, नहीं पता
मध्यप्रदेश में वर्तमान में कुल 94689 वर्ग किलोमीटर वन भूमि है। लेकिन फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया के मुताबिक मप्र की सिर्फ 64772 वर्ग किलोमीटर जमीन पर ही जंगल मौजूद है। शेष बची 29 हजार 917 वर्ग किलोमीटर जमीन पर क्या है, इस बारे में एफएसएआई और मप्र के वन विभाग के जिम्मेदार अफसरों तक को पता नही है। इस भूमि पर जंगल है , अतिक्रमण है या फिर बंजर पड़ी हुई है। इसे लापरवाही की पराकाष्ठा माना जा रहा है।