अफसरों व कर्मचारियों ने पानी तो खूब पीया, पर बिल भरना ही भूले

पानी
  • प्रदेश के सरकारी और निजी संस्थानों पर पानी का 2484 करोड़ बकाया …

भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में जहां आम आदमी पर पानी का दो-तीन माह का बिल बकाया होने पर नल कनेक्शन काट दिया जाता है, वहीं सरकारी और निजी संस्थान अरबों रुपए का बिल दबाए बैठे हैं। आम उपभोक्ता तो समय रहते पेयजल बिल जमा कर देते हैं, वहीं कई सरकारी विभागों से पेयजल बिल वसूलना विभाग के लिए चुनौती बना हुआ है।
इन विभागों का यह पहला मामला नहीं है, सालों से ही विभाग इसी तरह का रवैया अपनाए हुए हैं। इससे इन विभागों पर बकाया साल दर साल बढ़ता ही जा रहा है। कई विभाग तो ऐसे हैं, जिन्होंने सालों से पेयजल बिल जमा ही नहीं किया है। इस कारण प्रदेश के सरकारी और निजी संस्थानों पर पानी का 2484 करोड़ रुपए बकाया है। जानकारी के अनुसार प्रदेश के सौ से अधिक बड़े उद्योग पानी का करोड़ों रुपए वर्षों से दबाए बैठे हैं।  ये औद्योगिक इकाइयां जल संसाधन विभाग के मैदानी अमले को किसी भी वर्ष पानी का पूरा पैसा नहीं देती है। बिल की आधी अधूरी राशि देकर चलता कर देती है। औद्योगिक इकायों पर पिछले सात साल से पानी के पैसे का  849 करोड़ से ज्यादा बकाया है, जिसे वसूलने में विभाग को पसीना आ रहा है।
जल संसाधन विभाग विभिन्न बांधों से किसानों को सिंचाई के लिए , शहरों और गांवों के लोगों को पीने के लिए पानी, विद्युत कंपनी सहित अन्य संस्थाओं को पांच सौ करोड़ रुपए से लेकर 14 सौ करोड़ रुपए तक का प्रति वर्ष पानी बेचता है। इसमें से विभाग को हर साल आधी राशि भी नहीं मिल पाती है।  पिछले पांच वर्ष के पानी सप्लाई के आंकड़ों का अध्ययन किया जाए तो आधे से भी कम वसूली हो पा रही है। उदाहरण के तौर पर वर्ष 2016 में 500 करोड़ रुपए में से उक्त संस्थाओं ने सिर्फ 200 करोड़ विभाग में जमा किए हैं, शेष राशि आज भी बकाया है।
निकाय भी
नहीं दे रहे पानी का पैसा
नगरीय निकाय भी पानी का पैसा नहीं दे रहे हैं। भोपाल, इंदौर सहित विभिन्न निकायों का बकाया 333 करोड़ में से 10 फीसदी राशि ही वसूल हो पाई है। निकायों को पानी बंद करने के मामले में सरकार और अफसरों की अलग तरह की सहानुभूति होती है विभाग पैसे नहीं देने के बाद भी पानी नहीं बंद कर पाता है।
प्राकृतिक आपदा के कारण किसानों से नहीं की जाती सख्ती प्रदेश में पिछले कई वर्षों से लगातार ओला पाला भारी बारिश, बाढ़ सहित अन्य प्राकृति आपदा आ रही है। इससे विभाग किसानों से सिंचाई का पैसा वसूल करने में सख्ती नहीं कर पाता है। दो वर्षों से किसान पानी का पैसा नहीं दे रहे। क्योंकि वे सोच रहे हैं कि सरकार चुनाव से पहले सिंचाई का पैसा माफ कर देगी। प्रदेश में करीब 30 लाख हेक्टेयर में फसल की सिंचाई की जाती है। जिसमें करीब सौ करोड़ रुपए वसूली का लक्ष्य रखा जाता है, पर वसूली सिर्फ एक तिहाई ही हो पाती है।
सबसे कम बिजली कंपनियों का बकाया
बकाया जमा करने में बिजली कंपनियों की स्थिति अन्य के मुकाबले ठीक है। विद्युत कंपनी का 50 करोड़ से अधिक बकाया  है। वसूली नहीं होने से विभाग की हालत खराब होती जा रही है, क्योंकि राजस्व वसूली के आधार पर ही विभागों का सरकार के बजट आवंटन में वजूद बढ़ता है और उन्हें संसाधन और सुविधाएं भी इसी आधार पर दी जाती हैं।

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