पोषण आहार का मामला: अंतिम रिपोर्ट से पहले ही शुरू किया विपक्ष ने हंगामा

पोषण आहार

विभाग कर रहा गलतियों में सुधार, वाहन नंबरों में लिपिकीय त्रुटियां आयी सामने

भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। जिस पोषण आहार के मामले में विपक्ष के निशाने पर सरकार बनी हुई है, उस मामले में कैग की आपत्तियों पर विभाग द्वारा परीक्षण कर लिया गया है। कैग की आपत्तियों की जो वजह सामने आयी हैं उनमें पाया गया है की अधिकांश आपत्तियों की वजह लिपिकीय त्रुटियां हैं। इसकी वजह से अब विभाग द्वारा इनमें सुधार कर प्रतिवेदन महालेखाकार कार्यालय को भेजे जाने की तैयारी की जा रही है। उधर इस मामले में विपक्ष लगातार सरकार पर हमलावर बना हुआ है। इस मामले में सरकार की तरफ से पक्ष रखते हुए कहा गया है की महालेखाकार की जिस रिपोर्ट को लेकर विपक्ष आरोप लगा रहा है, वह रिपोर्ट प्रारंभिक है, वह अंतिम नहीं है।
महिला एवं बाल विकास विभाग के अंतर्गत टेक होम राशन के संबंध में विभाग को भेजे गए प्रारंभिक ड्राफ्ट को लेकर सरकार का कहना है की महालेखाकार कार्यालय मध्यप्रदेश द्वारा टेक होम राशन के संबंध में एक अप्रैल 2018 से 31 मार्च 2021 तक की अवधि के लिए 08 जिलों (शिवपुरी, सागर, धार, झाबुआ, भोपाल, छिंदवाड़ा, रीवा एवं सतना) का लेखा परीक्षण किया गया तथा इसकी प्रारंभिक ड्राफ्ट रिपोर्ट विभाग को परीक्षण एवं अभिमत हेतु प्राप्त हुई है। महालेखाकार को जब कहीं कोई संशय लगता है, तो वह संबंधित विभाग को एक ड्राफ्ट बनाकर भेजता है और उस पर विभाग जांच करता है, फिर संबंधित विभाग ड्राफ्ट के सभी बिंदुओं का जबाव देता है। उसके बाद महालेखाकार फाइनल रिपोर्ट तैयार करता है। उन्होंने कहा कि विपक्ष प्रारंभिक रिपोर्ट पर ही सवाल खड़े कर रहा है, जिसमें कोई सच्चाई नहीं है। उन्होंने कहा, जहां तक वाहनों के गलत पंजीयन नंबर की बात है, तो यह जानकारी भी प्लांट में तीन स्थानों पर अंकित की जाती है। सिक्योरिटी पर, तौल कांटे पर एवं डिस्पैच कक्ष में। किसी एक स्थान पर त्रुटिवश ट्रकों का नंबर यदि गलत दर्ज हो गया है, तो उसका मिलान आगे भी किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि बाड़ी प्लांट की प्रारंभिक जांच की गई है। इस प्लांट से 1764 वाहनों के माध्यम से टीएचआर का ट्रांस्पोटेंशन किया गया है। इनमें से 34 वाहनों पर एजी ने आपत्ति की है। जिसमें विभाग द्वारा जांच में सामने आया कि इनमें केवल एक डिजिट का अंतर है। यह लिपिकीय त्रुटि है, जिसे विपक्ष फर्जीवाड़ा बता रहा है। जिस लोडिंग आॅटो में परिवहन को लेकर विपक्ष निशाना साध रहा है। उस लोडिंग आॅटो में कुल 650 किलो के केवल 13 बैग विदिशा से ट्रांसपोर्ट होने थे, जिसमें लोडिंग ट्रक की आवश्यकता नहीं थी। उधर, इस मामले में पूर्व मंत्री व विधायक सज्जन सिंह वर्मा ने पूरक पोषण आहार परिवहन में दो हजार करोड़ रुपए के घोटाले का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि यह घोटाला मप्र के महालेखाकार की 36 पन्नों की रिपोर्ट में उजागर हुआ है। रिपोर्ट के मुताबिक विभाग ने 2021 तक 4.05 मीट्रिक टन पोषण आहार का वितरण किया और 1.35 करोड़ लाभार्थियों पर 2393.21 करोड रुपए खर्च किए। रिपोर्ट में स्पष्ट बताया गया है कि जिन ट्रकों से राशन ट्रांसपोर्ट करने का दावा किया गया है, वे ट्रक थे ही नहीं और उनके नंबर मोटर साइकिल, कार आॅटो रिक्शा और दूसरे छोटे वाहनों के निकले। इसी तरह बाडी, धार, मंडला, रीवा, सागर और शिवपुरी के छह प्लांटों ने बड़े पैमाने पर राशन की सप्लाई दर्शाई गई, जबकि इन प्लांट में राशन का स्टॉक ही नहीं जिन छह संयंत्रों से पोषण आहार के सप्लाई की बात कही गई है, उन दिनों इन संयंत्रों से दर्शाई गई मात्रा में पोषण आहार का उत्पादन नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि इस घोटाले की जांच हाईकोर्ट के जज से कराई जानी चाहिए। मप्र कांग्रेस मीडिया विभाग के अध्यक्ष केके मिश्रा ने कहा कि रिपोर्ट में कहा गया 237 करोड़ का ऐसा राशन सप्लाई किया गया, जो पोषक नहीं था। इसका मतलब है कि लाखों लोगों को घटिया राशन सप्लाई कर दिया गया।
छह साल पहले हुआ था निर्णय
दरअसल इस मामले में अप्रैल 2016 में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने घोषणा की थी कि मध्यप्रदेश में शिशुओं को मिलने वाला पोषण आहार भ्रष्टाचारियों के मुंह में न जाए, इसके लिए वर्तमान में एमपी एग्रो के माध्यम से चल रही ठेकेदारी व्यवस्था को पूरी तरह से बंद किया जाएगा। दरअसल इसके पीछे सीएम शिवराज सिंह की सोच यह थी कि वर्षों से जो संगठित माफिया पोषण आहार निकलने में सक्रिय है, उसकी बजाए मध्यप्रदेश की उन महिलाओं को स्व सहायता समूह के माध्यम से इस कार्य में लगाया जाए जो आजीविका विहीन है और उनका सशक्तिकरण किया जाए। इस मामले में तत्कालीन अतिरिक्त मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस को इसकी कार्ययोजना बनाने के लिए कहा गया था।  मुख्यमंत्री के इस निर्णय को मूर्त रूप देने के लिए तत्कालीन ग्रामीण एवं पंचायत विभाग विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस ने एक व्यवस्था तैयार की जिसमें एसआरएलएम के माध्यम से स्व सहायता समूह पोषण आहार तैयार करने का काम करने थे। एसआरएलएम के प्लांटों में काम शुरू भी हो गया लेकिन पोषण आहार का व्यापक उत्पादन करने के लिए समय चाहिए था इसीलिए शिवराज कैबिनेट ने निर्णय लिया कि जब तक इन प्लांटों में काम शुरू नहीं हो जाता तब तक  पोषण आहार की सप्लाई खुली निविदा के माध्यम से जारी रहेगी। नवम्बर 2018 में प्रदेश में सत्ता परिवर्तन हो गया और कांग्रेस की सरकार बन गई। इसके बाद कांग्रेस सरकार ने एसआरएलएम प्लांटों का प्रबंधन उसी एमपी एग्रो को सौंप दिया गया जिस पर वर्षों से पोषण आहार मामले में भ्रष्टाचार के संगीन आरोप लगे थे। इसके बाद  महिला बाल विकास विभाग की भूमिका केवल एसआरएलएम  प्लांट द्वारा तैयार माल को लेकर उसकी सप्लाई और लिए गए माल का भुगतान करने तक सीमित रह गई थी।
सरकार ने यह किया दावा
सरकार का दावा है की शाला त्यागी किशोरी बालिकाओं के संबंध में आंगनवाड़ी केन्द्र स्तर पर बेसलाईन सर्वे किया जाकर उनका परियोजना एवं जिलावार संकलन कर राज्य स्तर से भारत सरकार को प्रतिवेदन भी प्रेषित किया गया था। बालिकाओं की संख्या के संबंध में आॅडिट रिपोर्ट द्वारा दी गई जानकारी सर्वे तथा प्रदाय किए गए टीएचआर के आंकड़ों से प्रथम दृष्टया मेल नहीं खाती है। विभाग द्वारा किशोरी बालिकाओं की संख्या के आधार पर प्रदायित टेक होम राशन की मात्रा बेसलाईन सर्वे में प्राप्त संख्या से कम रही है। जितना टीएचआर परियोजनाओं को प्रदाय किया गया है। उससे संबंधित प्रविष्टियां प्लाण्टब, परियोजना तथा आंगनवाड़ी तीन स्तरों पर की जाती हैं। अतएव इनका संपूर्ण मिलान किया जा सकता है। इसी प्रकार परिवहन किये जाने वाले टीएचआर की मात्रा का संपूर्ण मिलान भी वितरण पंजी तथा परिवहन के देयकों से किया जा सकता है। आॅडिट दल के द्वारा संपूर्ण रिकॉर्ड को संज्ञान में नहीं लिये जाने से ऐसी स्थिति निर्मित हुई है, जिसकी वजह से अब विस्तृत परीक्षण किया जा रहा है। इसी तरह से अमानक टीएचआर के संबंध में विभाग के द्वारा नियत मात्रा में पोषक तत्व न पाये जाने के कारण सैंपल की लैब टेस्ट के आधार पर 15 प्रतिशत राशि रुपए 35.52 करोड़ का भुगतान भी रोका गया। अत: सैम्पल जांच करने तथा तद्नुसार कार्यवाही राज्य शासन के द्वारा स्वमेव की गई है। टीएचआर उत्पादन के लिये प्लान्ट्स की वास्तविक क्षमता व्यावहारिक रूप से संयंत्र के उत्पादनरत रहने पर प्राप्त होती है। एफएसएसएआई के आवेदन पत्र में अंकित प्रतिदिन की उत्पादन क्षमता के अनुसार लायसेंस जारी किया जाता है। इसी प्रकार जब कोई संयंत्र 24 घण्टे कार्यरत रहता है तब कटाई, पिसाई, रोस्टिंग, मिक्सिग तथा पैंकिंग में से कोई एक सेक्श्न कार्यरत नहीं हो, तब ऐसी स्थिति में बिजली की खपत में भी काफी अंतर आता है। आॅडिट दल के द्वारा बिजली की खपत तथा उत्पादन क्षमता के आधार पर जो निष्कर्ष निकाले गये हैं, उन पर विस्तृत तकनीकी परीक्षण किया जाना जरुरी है।
तीन जगह दर्ज होते है वाहनों के नंबर  
सरकार का कहना है की जहां तक वाहनों के गलत पंजीयन नंबर की बात है तो यह जानकारी भी प्लांट में तीन स्थानों पर अंकित की जाती है। सिक्योरिटी पर, तौल कांटे पर एवं डिस्पैच कक्ष में। किसी एक स्थान पर त्रुटिवश ट्रकों का नंबर यदि गलत प्रविष्ट कर दिया गया है तो उसका मिलान आगे भी किया जा सकता है। जैसे एमपी 15 एलए 3835 का ब्यौरा त्रुटिवश एमपी 15 एवी 3835 डिस्पेच कक्ष द्वारा अंकित कर दिया गया, जबकि तौल कांटे पर एवं सुरक्षा कक्ष के रजिस्टरों में इसकी प्रविष्टि एमपी 15 एलए 3835 की गई थी।

Related Articles