
भोपाल/अपूर्व चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट काम। जिस विभाग के ठेकेदार भारी मुनाफा कमा रहे हैं, वह विभाग घाटे में चला जाए तो आश्चर्य होना जायज है। ऐसा ही कुछ हाल है मप्र सडक़ विकास निगम का। लगातार मुनाफा में चलने वाला यह निगम अब किस तरह घाटे में चला गया है इसका अंदाजा इससे ही लगाया जा सकता है कि निगम को अब अपनी एफडी तक तुड़वानी पड़ गई है।
यह हाल तब है, जबकि इस निगम की कमान पूरी तरह से अफसरों के हाथ में है। खास बात यह है कि इसका खुलासा भी तब हुआ जब निगम के लेन-देन का हिसाब किया गया। दरअसल इसकी वजह है लोक निर्माण विभाग में जब भी संसाधनों की जरूरत पड़ी तो गाड़ी और कर्मचारियों का इंतजाम इसी निगम से करवा कर उसका भुगतान भी निगम से करावा लिया गया हद तो यह है कि निगम को घाटे में ले जाने में कई अफसरों ने कोर कसर नहीं छोड़ी।
जिम्मेदार अफसर निगम के पैसे से खुद और परिजनों के लिए लग्जरी सुविधाएं जुटाते रहे हैं। इसकी बानगी है विभाग का एक अफसर जिसने बीते दो साल में चार लग्जरी गाडिय़ां किराए पर लगा रखी हैं। जिसका हर माह का किराया ही करीब चार लाख रुपए था। खास बात यह है कि जितना किराया वाहनों का भुगतान किया गया उतने में तो नए वाहन ही खरीदे जा सकते थे। इसी तरह से अपनी सुविधा के लिए कई कर्मचारियों को भी आउटसोर्स पर रख लिया गया।
इस तरह का भी किया खेल
करीब सात साल पहले सडक़ विकास निगम प्रबंधन द्वारा तय किया गया था कि 200 करोड़ रुपए की एफडी निगम के पास हमेशा रिजर्व में रहेगी । इस राशि का उपयोग नहीं किया जाएगा। इसी तरह से एक और 650 करोड़ रुपए की एफडी को तोडक़र उसमें से बड़ी राशि सडक़ें बनाने और बाकी विकास कार्यों पर खर्च कर डाली गई। यह राशि तब खर्च कर दी गई जब निगम को सडक़ों की मरम्मत के लिए अलग से बजट मिला हुआ था। यही नहीं निगम को इस बीच बीते सालों में अब तक करीब 550 करोड़ रुपए टोल कंपनियों से कमीशन का भी मिला है। एमपीआरडीसी का सालभर का खर्च 32 करोड़ रुपए है, जबकि आय 45 करोड़ रुपए तक रही है। इसमें कंपनी जो लाभ कमाती है, उसका टैक्स भी भरती है। भोपाल बायपास से ही सालभर में करीब 42 करोड़ रुपए की आय होती है। इसी तरह देवास बायपास से 3 करोड़ रुपए की आय होती है, जबकि भोपाल-देवास कॉरिडोर से सिर्फ कमाई का 1 प्रतिशत ही मिलता है। हालांकि इससे होने वाली कमाई को लेकर जानकारी नहीं दी जाती।