रामराज्य में एक पत्नीव्रत का रखा गया है आदर्श

  • मनोज श्रीवास्तव
रामराज्य

रामराज्य के वर्णन में तुलसीदास यह भी कहते हैं कि- एक नारि ब्रत रत सब झारी।
कि वहाँ सभी पुरुष एक पत्नी व्रतधारी हैं।
यानी वहाँ एक से अधिक शादियों की छूट नहीं है।

तुलसी की इन प्रगतिशीलताओं को पकड़ा नहीं गया है। उनके रामराज्य में अंत:पुर या हरम के विशाल कारखाने नहीं हैं। तुलसी तो अपने समय के खिलाफ जा ही रहे थे, स्वयं राम अपने पिता से एक कदम आगे ही गये थे। वाल्मीकि ने रावण के अन्त:पुर के बहुत विस्तृत वर्णन दिये हैं। वहाँ स्त्रियाँ किस हद तक अवमानवीकृत हो गईं हैं, कैसे वे एक संख्या और एक चीज में बदल गईं हैं, किस गिरी हुई आत्म-श्रद्धा के साथ वे रह रहीं हैं, जिसमें वे अपने आप को एक नशे में धुत्त रखकर ही जीवित रह सकती हैं—सब पता चलता है। जहां उनकी आत्म-गरिमा का अवबोध इतना कम है और दास-भाव इतना ज्यादा या स्टॉकहोम सिंड्रोम इतना पैठ गया है कि किसी नई स्त्री को पटरानी बनाकर उनके सिर पर बिठा दिया जाये तो भी उनके भीतर से प्रतिरोध का कोई स्वर नहीं फूटता, कोई विद्रोह छोड़ो-अवज्ञा की छोटी सी चिंगारी तक नहीं। ऐसा नहीं कि औरों के एक से ज्यादा पत्नियाँ नहीं हैं। बाइबिल में अब्राहम, डेविड, सोलोमन सहित 40 प्रमुख लोग बहुपत्नीवादी हैं। लेकिन रावण का बहुपत्नीवाद निकृष्टतम था क्योंकि वह अपहरण के एक उद्योग पर आधारित था। जिसकी तुलना आई एस आई एस या बोको हराम के तौर-तरीकों से ही की जा सकती है। रावण का बहुपत्नीवाद उसमें हुए स्त्री के डि-ह्यूमेनाइजेशन के कारण निकृष्टतम है।  इन आतंकी संगठनों के जैसा है वह। रावण जब मंदोदरी आदि सब रानियों को सीता की अनुचरी बनाने का ऑफर देता है तो वह यह बताता है कि शादी उसके लिये एक तरह का पावर गेम है। उसके बहुपत्नीवाद में स्त्री के ऊपर पुरुष का आधिपत्य ही नहीं है, स्त्री का स्त्री के ऊपर आधिपत्य है। उसका ढाँचा ही असमान है। उसका बहुपत्नीवाद structurally inegalitarian है। असमान ही नहीं, अकृतज्ञ भी है।
जो मंदोदरी शुरू से आखिर तक अपने पति का भला चाहती है,जिसने हर संभव मौके पर अपने पति को सन्मार्ग दिखाया है,जिसे हमारी परंपरा ने उन पंचकन्याओं में गिना जिनके प्रात:कालीन स्मरण मात्र से पापोन्मोचन होता है,जो न केवल सीता-हरण का बल्कि रावण द्वारा नवग्रहों को बंदी बनाने और वेदवती को अपवित्र करने का विरोध करती है—उस मंदोदरी को यह रावण दासी तक बनाने को तैयार है। रावण सीता के सामने अपनी पत्नियों का प्रोसेशन(जुलूस) लेकर चला जाता है, उधर रामराज्य में एकपत्नीव्रत का आदर्श रखा गया है। जो लोग पतिव्रताओं का गौरव-गान करने वालों को पितृसत्ता का प्रतीक कहते रहते हैं, वे रामराज्य के इस पक्ष को भी पहचानें। यानी यहाँ “ do justice to them all” कहकर बहुपत्नीवाद की रक्षा करने की वह कोशिश भी नहीं की गई जो औवेसी 2022 में भी करते रहते हैं। एकनारिब्रत रत सब झारी -यह विवाह-मयार्दा सभी के लिए है और किसी पंथ की आड़ में इसके लिए चोर रास्ते नहीं निकाले गये हैं। और नारी की सेक्सुअलिटी पर ही नियंत्रण करने वाले भी देखें पतिव्रता शब्द की अनुपस्थिति को। और रावण को अनार्य या द्रविड़ सभ्यता का प्रतिनिधि बताने वाले विश्वविद्यालय भी देख लें कि पैट्रिआर्की के असल समर्थक तो वे स्वयं हैं।
(लेखक पूर्व आईएएस अधिकारी हैं)

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