
एक दूसरे के नेताओं पर है नजर
भोपाल/रवि खरे/बिच्छू डॉट कॉम। विधानसभा चुनाव का समय जैसे-जैसे पास आता जा रहा है वैसे-वैसे दोनों प्रमुख दल कांग्रेस व भाजपा में वार पलटवार का खेल तेज होता जा रहा है। यह पूरा खेल एक दूसरे दल के नेताओं के दलबदल कराने के रुप में खेला जा रहा है। इस मामले में भाजपा की तुलना में कांग्रेस अधिक सक्रिय बनी हुई है। इसकी अपनी वजह भी है। कांग्रेस इस बार जहां जीत के लिए हर दांव चल रही है , तो भाजपा भी इस मामले में कहीं पीछे नजर नहीं आती है। कांग्रेस के रणनीतिकारों ने इस बार कांटे से कांटा निकालने की रणनीति पर काम तेज किया है। इसकी शुरुआत कांग्रेस ने बहुत पहले कर दी थी। कांग्रेस ने शुरु में ही अपने प्रतिद्धंदी दल भाजपा को झटका देने के लिए प्रदेश में भाजपा के सबसे बड़ा चेहरा रह चुके पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय कैलाश जोशी के पुत्र पूर्व मंत्री दीपक जोशी को दलबदल कराकर दिया था। कांग्रेस इस मामले में यहीं तक सीमित नहीं रही , बल्कि उसेने दतिया के भाजपा नेता अवधेश नायक, राजू दांगी और सुरखी के राजकुमार सिंह धनौरा, नीरज शर्मा जैसे नेताओं को तोडक़र भी कांग्रेसी बना लिया है। इसी कड़ी में शिवपुरी जिला पंचायत के पूर्व अध्यक्ष जितेंद्र जैन, बजरंग सेना के राष्ट्रीय संयोजक रघुनंदन शर्मा को भी कांग्रेसी बनाने में पीछे नही रही है। इसी तरह ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में भाजपा और श्रीमंत की घेराबंदी के लिए अशोकनगर, शिवपुरी, गुना, मुरैना, नीमच जिलों से यादवेंद्र सिंह यादव, बैजनाथ यादव, अजय पाल सिंह यादव, समंदर पटेल, रघुराज सिंह धाकड़, जितेंद्र जैन सहित कई नेता कांग्रेस का हाथ थाम चुके हैं। सूत्रों का कहना है कि अब इन नेताओं के माध्यम से ही कांग्रेस अन्य प्रभावशाली और चर्चित भाजपा नेताओं को कांग्रेस में लाने की रणनीति पर काम कर रही है। कहा जा रहा है कि चुनाव के समय तक कई और बड़े नेता कांग्रेसी बाना पहन सकते हैं। जानकारों का कहना है कि मजबूत दावेदारी के बाद भी जिन नेताओं को भाजपा ने टिकट से दूर कर दिया है , उन पर तो कांग्रेस की नजर है ही साथ ही कांग्रेस का प्रयास है कि इस बार भाजपा के प्रत्याशियों का भी दलबदल करा दिया जाए। ऐसे कुछ चुनिंदा चेहरों को कांग्रेस अपना प्रत्याशी बनाकर मैदान में उतार सकती है। श्रीमंत और उनके समर्थक विधायक-कार्यकर्ताओं के भाजपा में शामिल होने के बाद से पार्टी का मूल कार्यकर्ता अपने भविष्य को लेकर चिंतित बने हुए हैं। इसकी वजह से ही कार्यकर्ताओं और नेताओं की नाराजगी भी सामने आती रही है। नगरीय निकाय चुनाव में भाजपा इसका नुकसान उठा चुकी है। यही वजह है कि असंतोष के स्वर को थामने के लिए पार्टी ने वरिष्ठ नेताओं को मैदान में उतारा तो है पर भाजपा नेताओं कादलबदल पूरी तरह से थम नहीं पा रहा है।
इन चेहरों पर भी है नजर
कांग्रेस की नजर पूर्व मंत्री डॉ गौरीशंकर शेजवार और उनके पुत्र मुदित शेजवार पर है। शेजवार सांची विधानसभा से प्रतिनिधित्व करते आए हैं और पिछला चुनाव डॉ प्रभुराम चौधरी से हार गए थे। सिंधिया के साथ डा. चौधरी भाजपा में आ गए। पार्टी ने उन्हें उपचुनाव लड़ाया और वे आज शिवराज सरकार में मंत्री हैं। उन्होंने चुनाव की तैयारी भी प्रारंभ कर दी है। इसी तरह दमोह से पूर्व मंत्री जयंत मलैया कांग्रेस के राहुल लोधी से चुनाव हार गए थे। राहुल को भाजपा ने उपचुनाव लड़वाया पर वे हार गए। इसका कारण पार्टी ने गुटबाजी को माना और जयंत मलैया को नोटिस देने के साथ उनके पुत्र सिद्धार्थ को निष्कासित कर दिया था। सिद्धार्थ की पार्टी में वापसी हो चुकी है और जयंत मलैया घोषणा पत्र समिति की कमान संभाल रहे हैं। टिकट को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है। कांग्रेस ने अपने दरवाजे खोलकर रखे हैं। बदनावर से भंवर सिंह शेखावत सहित कई अन्य भाजपा नेताओं पर भी पार्टी की नजर है और शुभचिंतकों के माध्यम से संपर्क भी बना हुआ है। माना जा रहा है कि चुनाव आते-आते कुछ बड़े चेहरे और कांग्रेस के मंच पर नजर आ सकते हैं।
दलबदलुओं को दे चुकी है टिकट
कांग्रेस इस मामले में पीछे नहीं रहना चाहती है। इसकी वजह है कांग्रेस नेता जानते हैं कि भाजपा की ताकत उसके कार्यकर्ता हैं। वे इस समय उपेक्षा के दौर से गुजर रहे हैं। उनका साथ लेकर न केवल भाजपा में सेंध लगाई जा सकती है, बल्कि अपनी स्थिति को भी मजबूत किया जा सकता है। संभव है कि जिन नेताओं को कांग्रेस की सदस्यता दिलाई जा रही है, उनमें से कुछ को प्रत्याशी भी घोषित कर दिया जाए। सागर जिले के रहली विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस पिछले चुनाव में ऐसा कर चुकी है। वहां भाजपा के कमलेश साहू को कांग्रेस ने प्रत्याशी बनाया था। उन्हें भाजपा के ही असंतुष्ट गुट के लोगों का समर्थन भी मिला पर वे गोपाल भार्गव से पराजित हो गए थे। इसी तरह से उपचुनाव में ग्वालियर में भी यही प्रयोग किया गया था , जो सफल रह चुका है।