अंधेरे की अंतिम सीमा: यहीं से उजाले की शुरुआत

  • शीत अयनांत: 21 दिसंबर को रात सबसे लंबी और दिन सबसे छोटा,  भौगोलिक घटना से सीख लेकर जीवन में जोडि़ए उम्मीद

प्रवीण कक्कड़
इक्कीस दिसंबर प्रकृति के कैलेंडर में केवल एक तारीख नहीं, बल्कि एक गहरा संकेत है। यह वही दिन है जब हम वर्ष की सबसे लंबी रात और सबसे छोटे दिन का अनुभव करते हैं। भौगोलिक विज्ञान इसे शीत अयनांत कहता है, लेकिन जीवन की दृष्टि से देखें तो यह एक अत्यंत अर्थपूर्ण घटना है। यह हमें बताती है कि जब अंधकार अपनी चरम सीमा पर पहुँच जाता है, ठीक उसी क्षण से प्रकाश की वापसी शुरू हो जाती है। भौगोलिक दृष्टि से देखें तो 21 दिसंबर को रात सबसे लंबी और दिन सबसे छोटा होता है। भारत के अधिकांश हिस्सों में इस दिन रात लगभग 13 से 14 घंटे तक होती है, जबकि दिन की अवधि करीब 10 से 11 घंटे रहती है। अक्षांश बदलने के साथ यह अंतर घटता-बढ़ता रहता है, लेकिन शीत अयनांत की अवधि लगभग इसी अनुपात में रहती है। 21 दिसंबर के बाद दिन धीरे-धीरे बड़े होने लगते हैं और रातें छोटी। यानी अंधेरा घटता है और उजाला अपना स्थान वापस पाने लगता है। प्रकृति का यही अटल नियम है- कोई भी स्थिति, चाहे वह कितनी भी विकट क्यों न हो, स्थायी नहीं होती।
विज्ञान और परंपरा का संगम: भारतीय मनीषा में सूर्य की गति का विशेष महत्व है। खगोलीय गणना के अनुसार, यही वह समय है जब सूर्य दक्षिण से उत्तर की ओर बढऩे (उत्तरायण) की प्रक्रिया शुरू करता है। यद्यपि भारतीय परंपरा में हम इस बदलाव का उत्सव मकर संक्रांति के रूप में जनवरी में मनाते हैं, जब यह परिवर्तन प्रत्यक्ष रूप से दिखाई देता है, लेकिन प्रकृति ने उस सकारात्मक बदलाव की नींव इसी समय रख दी होती है। यह हमें सिखाता है कि बड़े परिवर्तन अक्सर शोर के साथ नहीं, बल्कि मौन में जन्म लेते हैं।
सन्नाटा निष्क्रियता नहीं, तैयारी है: इस समय प्रकृति बहुत शांत दिखाई देती है। वृक्ष अपने पुराने आवरण त्याग चुके होते हैं, धरती कोहरे की चादर में लिपटी होती है और हर तरफ एक ठहराव महसूस होता है। लेकिन यह ठहराव निष्क्रियता नहीं है, यह भीतर चल रही नवनिर्माण की तैयारी है। जैसे बर्फ के नीचे दबा बीज सो नहीं रहा होता, बल्कि उगने के लिए शक्ति संचय कर रहा होता है, वैसे ही प्रकृति भी वसंत के स्वागत की तैयारी कर रही होती है। यही 21 दिसंबर की सबसे बड़ी सीख है, जो हमारे आधुनिक जीवन के लिए अत्यंत प्रासंगिक है।
रुकना, भागने से ज्यादा जरूरी है: आज के दौर में हमने मान लिया है कि लगातार भागते रहना ही सफलता है। लेकिन वर्ष का यह सबसे छोटा दिन हमें सिखाता है कि भागने से पहले ठहरना अनिवार्य है। जब जीवन में सब कुछ रुका हुआ-सा लगे, जब करियर या रिश्तों के रास्ते धुंधले दिखें, या कड़ी मेहनत के बाद भी परिणाम तुरंत न मिलें—तब घबराने की नहीं, बल्कि उस ठहराव को स्वीकार करने की आवश्यकता होती है।
युवाओं और प्रोफेशनल्स के लिए यह समझना जरूरी है कि जीवन का संघर्ष-काल विफलता नहीं, बल्कि आत्ममंथन का समय होता है। जिस तरह आज की लंबी रात के बाद दिन बड़ा होने लगता है, वैसे ही कठिन दौर के बाद सफलता का विस्तार भी होता है।
गुणवत्ता बनाम मात्रा: छोटा दिन हमें यह भी सिखाता है कि जब समय सीमित हो, तो सोच व्यापक होनी चाहिए। जीवन में अवसर हमेशा लंबे समय के लिए नहीं आते। कई बार कम समय में ही सटीक और बड़े निर्णय लेने पड़ते हैं। वहाँ समय की मात्रा नहीं, बल्कि निर्णयों की गुणवत्ता मायने रखती है।
साल अब अपनी समाप्ति की ओर है। 21 दिसंबर का यह दिन एक दर्पण की तरह है। यह बाहर की रोशनी कम करके हमें अपने भीतर झाँकने का अवसर देता है। यह पूछने का समय है—हमने क्या खोया, क्या पाया और क्या सीखा।
इसलिए इस लंबी रात से घबराइए नहीं। यह रात इस बात की गवाह है कि बदलाव की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। जब जीवन में सब कुछ थमा हुआ-सा लगे, तो विश्वास रखिए—प्रकृति आपके लिए एक नई और अधिक उजली सुबह की तैयारी कर रही है।
(लेखक पूर्व पुलिस अधिकारी हैं)

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