कमल, कांग्रेस के कुनबों की कलह कथा

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  • निकाय चुनाव में बागियों से निपटना भाजपा और कांग्रेस के लिए बनी बड़ी चुनौती      

भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। मध्य प्रदेश में नगरीय निकाय के चुनावों की सरगर्मी बढ़ते ही प्रमुख दलों, भाजपा और कांग्रेस में अंदरूनी घमासान भी बढ़ने लगी है। भाजपा में सतना में विद्रोह की चिंगारी सुलग रही है तो बुरहानपुर में कांग्रेस में बगावत बाकायदा शुरू हो चुकी है। जानकार मानते हैं कि महापौर और पार्षद को लेकर लगभग हरेक जगह दोनों दल अपनों के ही विरोध और दबाव का सामना कर रहे हैं। खासकर भाजपा के लिए आसार अधिक चुनौती वाले दिख रहे हैं। महापौर के उम्मीदवारों को लेकर भाजपा में खींचतान का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि खुद ज्योतिरादित्य सिंधिया कल दिन भर भोपाल में सक्रिय रहकर अपने संभावित उम्मीदवारों के लिए फील्डिंग करते रहे।
दूसरी तरफ पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने शनिवार को ही ट्वीट कर कहा था कि कांग्रेस में उन (दिग्विजय) और कमलनाथ ने मिलकर महापौर के प्रत्याशी तय किए हैं। इस ट्वीट के माध्यम से दिग्विजय ने कांग्रेस में मतैक्य होने तथा भाजपा में मतभेद होने की तरफ संकेत किया था। यह तय है कि भाजपा की सूची सामने आते ही अंदरूनी घमासान फिर जोर पकड़ेगा। अभी महापौर के लिए सतना से भाजपा के योगेश ताम्रकार के नाम की चर्चा ही शुरू हुई और यहां से पार्टी सांसद गणेश सिंह के भाई उमेश प्रताप सिंह ने बसपा से चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी। उनका कहना है कि परिवारवाद के नाम पर उनका टिकट काटा गया तो वे बसपा से चुनाव लड़ने पर मजबूर हो जाएंगे। इसी सतना जिले की रैगांव सीट पर हुए उपचुनाव में भितरघात के चलते ही भाजपा प्रत्याशी प्रतिमा बागरी को हार का सामना करना पड़ गया था। उमेश प्रताप बसपा में जाएं या न जाएं, लेकिन अपने राजनीतिक कोपभवन के तौर पर उन्होंने बसपा का चयन सोच-समझकर किया है। उपचुनाव में रैगांव से कांग्रेस इसलिए जीत गयी कि बसपा ने उस सीट पर प्रत्याशी नहीं खड़ा किया था। इसलिए बागरी परिवार की कलह से टूटे भाजपा के लगभग सभी वोट कांग्रेस के खाते में चले गए थे। बसपा की इसी ताकत के बूते उमेश प्रताप ने हाथी वाले दल के रूप में भाजपा पर प्रेशर बनाने की कोशिश की है। भाजपा में यह हाल तब बने हुए हैं जबकि अभी तक किसी भी महापौर पद के प्रत्याशी की घोषणा नहीं हुई है। इधर, बुरहानपुर में कांग्रेस द्वारा शहनाज अंसारी को महापौर का प्रत्याशी बनाने से नाराज होकर स्थानीय नेत्री प्रीती सिंह ठाकुर ने पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया है। प्रदेश कांग्रेस लगातार यह कह रही है कि प्रत्याशियों का चयन सर्वे के आधार पर किया गया है। हालांकि ठाकुर का दावा है कि सर्वेक्षण में वह सबसे आगे थीं, इसके बावजूद उनका नाम काट दिया गया। इसी तरह से सिंगरौली से महापौर पद की दावेदारी कर रहे कुंदन पांडे ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया है।
कुंदन कांग्रेस के प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य हैं। गौरतलब है कि कांग्रेस ने सिंगरौली से अरविंद सिंह चंदेल को महापौर पद का प्रत्याशी बनाया है। यह तय है कि पार्षद पद के प्रत्याशी घोषित होने के साथ ही दोनों पार्टी में यह घमासान और तेज होगी। दो से अधिक बार के पार्षदों को टिकट न देने जैसे किसी भी फॉर्मूले को आज तक बगावत से कोई भी मुक्त नहीं रख सका है। इस लिहाज से राज्य में मानसून की बरसात शुरू होने से पहले ही भाजपा और कांग्रेस के ऊपर बगावत की आशंकाओं के काले बादल छाने लगे हैं।
नगर पालिकाओं व पार्षद पदों का है इंतजार
सूबे में नगरीय निकाय चुनाव में पार्षद और नगर पालिकाओं के अध्यक्ष पदों के उम्मीदवार घोषित होने के बाद असंतोष के स्वर बेहद तेज होने के आसार अभी से नजर आने लगे हैं। पार्टी किसी एक को ही टिकट दे सकती है, जबकि दोवदार अधिक हैं।  इस तरह की स्थिति कांग्रेस की तुलना में भाजपा में अधिक है। उधर, बसपा, सपा और बहुजन समाज पार्टी कांग्रेस व भाजपा के अंसतुष्ट नेताओं पर  पूरी तरह से नजर लगाए हुए है।
विधायक हो गए लामबंद
भाजपा ने प्रत्याशियों के लिए अब तक जो  नाम तय भर किए है, उनको लेकर भी विरोध के स्वर उठने लगे हैं। इनमें से तीन नामों को लेकर जबरदस्त विरोध सामने आया है। सतना में योगेश ताम्रकार के नाम पर सांसद गणेश सिंह और भाजपा के दो विधायक बिलकुल राजी नहीं है।  यहां प्रत्याशी बदलने की बात हो रही है। इसी तरह उज्जैन में मुकेश टटवाल के नाम का सांसद अनिल फिरोजिया, विधायक पारस जैन और मोहन यादव विरोध कर रहे हैं। छिंदवाड़ा में भी जितेंद्र शाह का विरोध हो रहा है।

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