दूसरों का हक मारने वालों पर विभाग मेहरबान….

विभाग
  • शासन व सरकार की भी इस तरह के मामलों में नहीं टूट रही सुस्ती

भोपाल/विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। मध्यप्रदेश ऐसा राज्य बन चुका है जहां पर लोग दूसरों का हक मारते हुए फर्जी जाति प्रमाण लगाकर सरकारी नौकरी पा लेते हैं और फिर जांच के नाम पर उनके मामलों को दफन कर दिया जाता है। ऐसे मामलों में छोटे कर्मचारियों से लेकर अफसर तक शामिल हैं। इनके मामलों का खुलासा होने के बाद तमाम तरह की जांचों के नाम पर कार्रवाई को ठप कर दिया जाता है। इस वजह से कई अफसर तो सालों से नौकरी कर पदोन्नत होते जा रहे हैं , तो जांच की कई धीमी गति से चलने की वजह से सेवानिवृत्त तक हो चुके हैं। इसकी वजह से वास्तविक लोगों का हक मारा जा रहा है।
खास बात यह है की ऐसे मामलों में सरकार से लेकर शासन तक कार्रवाई करने में कोई रुचि नहीं लेती है। जिसकी वजह से फर्जी जाति प्रमाण पत्र से नौकरी पाने वालों की बल्ले-बल्ले बनी रहती है। खास बात यह है कि ऐसे मामलों में विभाग राज्य स्तरीय छानबीन समिति को जरूरी जानकारी तक उपलब्ध नहीं कराते हैं। यह हाल प्रदेश में तब बने हुए हैं, जबकि कई बार मामला विधानसभा तक में उठ चुका है। हालात यह हैं की लाख शिकायतें होने के बाद जांच नहीं होती है बल्कि जांच के नाम पर खानापूर्ति करते हुए जिम्मेदार अधिकारी अपना निजी स्वार्थ के चलते कोई कार्यवाही ही नहीं करते हैं। राज्य स्तरीय अनुसूचित जाति छानबीन समिति में अभी भी 180 संदेहास्पद जाति प्रमाण के प्रकरणों में विभागों से रिपोर्ट मिलने का इंतजार है। राज्य बीज प्रमाणीकरण संस्था में 32 वैज्ञानिकों के जाति प्रमाण पत्र संदेहास्पद पाए गए हैं, वहीं जल संसाधन में भी एक दर्जन इंजीनियरों की रिपोर्ट समिति को भेजने में भी रुचि नहीं ली जा रही है। जबकि छानबीन समिति उन्हें कई पत्र लिख चुकी है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश से फर्जी जाति प्रमाण पत्र के आधार पर सरकारी नौकरी पाने वालों की जांच के लिए राज्य स्तरीय अनुसूचित जाति तथा जनजाति विभाग में छानबीन समितियां गठित हैं, जो समय-समय पर मिलने वाले शिकायतों की जांच के बाद संबंधित विभागों को कार्रवाई करने की अनुशंसा करती हैं। अनुसूचित जाति छानबीन समिति राज्य बीज प्रमाणीकरण संस्था से वैज्ञानिकों के मामले में एक साल से रिपोर्ट मांग रही है, लेकिन संस्था अब तक रिपोर्ट भेजने को तैयार नही है।  लगभग यही हाल जल संसाधन विभाग में एक दर्जन से ज्यादा इंजीनियरों के जाति प्रमाण पत्र संदेहास्पद होने के मामले में भी है।  इस संबंध में छानबीन समिति ने 3 फरवरी 2021 से लगातार राज्य बीज प्रमाणीकरण संस्था और वहीं जल संसाधन विभाग को भी 12 जून 2020 से लगातार पत्र लिखे जा रहे हैं।  यही वजह है की प्रदेश में इस तरह के नए -नए मामले सामने आते रहते हैं।
भोपाल में सर्वाधिक मामले
बीते तीन साल में ऐसे 936 लोग सामने आए हैं, जिन्होंने फर्जी दस्तावेजों के जरिए सरकारी नौकरी हासिल की और सरकारी योजनाओं का भी लाभ लिया। इन मामलों में राजधानी भोपाल सबसे आगे है।  यहां 327 लोगों ने फर्जी जाति प्रमाण-पत्र और अन्य दस्तावेजों से नौकरियां हासिल की हैं। ग्वालियर दूसरे नंबर पर है। आपको जानकर हैरानी होगी पर निवाड़ी जैसा छोटा सा जिला इस तरह के मामलों में  तीसरे नंबर पर है। ग्वालियर में 182 , निवाड़ी में 80 , रतलाम में 52 और राजगढ़ में इस तरह के 51 मामले सामने आ चुके हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक, करीब 2 हजार पदों पर अधिकारी और कर्मचारी फर्जी जाति प्रमाण पत्र के जरिए नौकरी कर रहे हैं। इनमें से 835 की खिलाफ तो विभिन्न पुलिस थानों एफआईआर दर्ज है। इनमें से 604 के खिलाफ न्यायालय में चालान प्रस्तुत किया जा चुकी है। वहीं फर्जी जाति प्रमाण पत्र पर नौकरी करने के मामले में ग्वालियर जिले में 145, मंदसौर में 33, रतलाम में 50, निवाड़ी में 80, रीवा में 14, भोपाल में 323, सीहोर में 28, राजगढ़ में 50, विदिशा में 14 तथा गुना में 10 लोगों के खिलाफ आपराधिक प्रकरण दर्ज किए गए है।
यह अफसर संदेह के दायरे में
रविंद्र प्रताप सिंह, शौदान सिंह, पीपी सिंह, एपी सिंह, पीएस पंवार, पीतम सिंह, डॉ. वीरेंद्र सिंह, पीके मिश्रा, उमा प्रसाद, रोजपाल सिंह, अजीत सिंह, आरडी सराटकर, सुरेंद्र सिंह बघेल, चित्रसेन सिंह, रामवीर सिंह चौधरी, प्रेमपाल शर्मा, जसबीर सिंह, अनिल भूषण मिश्रा, विनोद कुमार सिंह, जगपाल सिंह, श्याम सिंह, राजेंद्र प्रसाद, बाबूराम, सुरेश कुमार, चंद्रशेखर प्रसाद, अरुण कुमार, राजीव सिन्हा तथा महिपाल सिंह सभी उत्तर प्रदेश से हैं, जबकि प्रदीप जैन, सूर्यभान सिंह बिलासपुर से राज्य बीज प्रमाणीकरण संस्था में वैज्ञानिक के पद पर नौकरी कर रहे हैं। इनमें अधिकांश सीधी भर्ती से नौकरी में आए हैं, तो कुछ पदोन्नति से प्रमोट हुए हैं। इस संबंध में राज्य बीज प्रमाणीकरण संस्था का तर्क है की यह  सभी 1984 और 1988 में नौकरी में आए थे। इनके मामले में जांच प्रतिवेदन शासन को भेज दिया गया है। तत्कालीन समय में मप्र में वैज्ञानिक नहीं मिल रहे थे, इसलिए यूपी के लोगों की भर्ती की गई थी ।
सिंचाई विभाग के इन इंजीनियरों की जांच
सिंचाई विभाग में कार्यपालन यंत्री के पद पर पदस्थ भागचंद कोरी, आशाराम सिंह किरार, हरिकिशन मालवीय और सहायक यंत्री मनोहर लाल कुमावत, राजकुमार प्रजापति, प्रमोद कुमार मालखेड़, मोहम्मद खालिद, अनिल कुमार गढ़वाल, श्यामकुमार मेहरा, दयाराम कहार, अशोक कुमार मेहरा की जांच की जा रही है। इनसे संबंधित दस्तावेज समिति द्वारा मांगे गए हैं।

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