संजय टाइगर रिजर्व में गूंजने लगीं सफेद बाघ के शावकों की किलकारियां

संजय टाइगर रिजर्व

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र के सीधी में स्थित संजय टाइगर रिजर्व की मोहन रेंज इन दिनों सफेद बाघ के शावकों की किलकारियों से गूंज रहा है। इसकी वजह है लंबे समय बाद यहां पर  बाघिन टी-32 द्वारा दो शावकों को जन्म देना। यह शावक अब करीब एक माह के हो चुके हैं।  दरअसल यह बाघिन करीब छह माह पहले ही बांधवगढ़ टाईगर रिजर्व से यहां पर लाई गई थी। यह बाघिन एक माह के शावकों के साथ हाल ही में  अठखेलियां करते हुए वहां लगे कैमरे में कैद हुई है।  दरअसल यह वो मोहन रेंज है, जहां पर वन विभाग द्वारा लंबे समय से बाघों के रहवास विकसित करने का प्रयास किए जा रहे थे। बताया जा रहा है की मोहन रेंज में जन्में दोनों शावकों का पिता बाघ टी-27 है।
इस बाघ को बीते साल ही 12 जून को लाकर मोहन रेंज में छोड़ा गया था, इसके पहले 1 जून को यहां बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व से बाघिन लाकर छोड़ी गई थी, लेकिन उसकी कुछ दिनों बाद ही मौत हो गई थी। बाघिन की मौत के बाद अधिकारी यहां पर बाघों का कुनबा बढ़ने  को लेकर निराश हो गए थे। यह बात अलग है की इसके बाद भी प्रयास जारी रखे गए , जिसके तहत बीते साल ही 22 दिसंबर को बाघिन टी-32 को यहां पर लाया गया था। इसके बाद बाघिन टी-32 और बाघ टी-27 में मिलन होने से बीते माह इन शावकों का जन्म हुआ है। फिलहाल इन दो सफेद बाघ शावकों के जन्म के बाद कितने सफेद बाघ हो गए हैं इसकी कोई अधिकृत संख्या देश में कहीं भी नही है। इस मामले में मप्र  के वन महकमे के भी यही हाल बने हुए हैं। सूचना के अधिकार के तहत व्हाइट टाइगर के बारे में मांगी गई जानकारी में यह खुलासा हुआ है। केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने आरटीआई के जवाब में कहा कि उनके पास ऐसी कोई जानकारी नहीं है, जिससे यह पता चल सके कि देश में व्हाइट टाइगर कहां और कितने हैं। इस बारे में सेंट्रल जू अथॉरिटी ही कुछ बता सकती है। सेंट्रल जू अथॉरिटी का भी अपने जवाब में कहा है कि उनके पास भी ऐसी कोई जानकारी नहीं है। देश के कितने जू में व्हाइट टाइगर हैं और कितनी संख्या में हैं, सेंट्रल जू अथॉरिटी इससे भी बेखबर है। मध्यप्रदेश के प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी) कार्यालय ने भी अपने जवाब में कहा है कि उनके पास भी व्हाइट टाइगर की संख्या और उनकी उपस्थिति से जुड़ी कोई प्रमाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। एक अनुमान के मुताबिक दुनिया भर में सिर्फ 200 सफेद बाघ हैं, इनमें से लगभग 100 बाघ भारत में हैं। यह शुद्ध भारतीय नस्ल का बाघ है। इसे पैंथेरा टाइग्रिस नाम दिया गया है। इसकी सभी आदतें,रहवास और व्यवहार नारंगी रंग के सामान्य बाघों की तरह ही है, लेकिन जीन म्यूटेशन के कारण इसका रंग सफेद हो गया है।
मोहन को माना जाता है व्हाइट टाइगर की देन
मोहन को गोविंदगढ़ किले में रखकर सफेद बाघ की वंशवृद्धि के प्रयास के तहत तीन अलग-अलग बाघिनों के साथ रखा गया था , जिसकी वजह से राधा नाम की बाघिन से 7, सुकेसी बाघिन से 13 और बेगम नामक बाघिन से 14 शावक पैदा हुए थे। 9 अगस्त 1962 को दो सफेद बाघ कलकत्ता भेजे गए। 1962 में ही एक-एक सफेद बाघ अमेरिका और इंग्लैंड के चिडिय़ाघरों को भेजे गए। इसके बाद सफेद बाघों का कुनबा दुनिया भर में फैल गया। मप्र के ही मुकुंदपुर टाइगर सफारी में 3 सफेद बाघ हैं जिनमें दो नर और एक मादा है।
इसी मोहन रेंज में मिला था पहला सफेद बाघ
संजय टाइगर रिजर्व के वर्तमान मोहन रेंज के पनखोरा जंगल में दुनिया का पहला सफेद बाघ मिला था, जिसका नाम मोहन रखा गया था। बाद में सफेद बाघ मोहन के नाम पर ही इस रेंज का नाम रखा गया। लेकिन यह रेंज लंबे समय से बाघ विहीन चल रही थी। मोहन रेंज बाघों के रहवास को लेकर काफी अनुकूल माना जा रहा है। सबसे पहले दुनिया में सबसे पहले सफेद बाघ देखने का दावा 1905 में किया गया था। वन अधिकारी बाविस सिंह ने ओडीशा के ढ़ेकानल के जंगलों में एक सफेद बाघिन को देखा था और उसकी तस्वीर ली, जो 1905 में द जर्नल आॅफ बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी में प्रकाशित हुई थी। हालांकि सार्वजनिक रूप से सबसे पहला सफेद बाघ मध्यप्रदेश के तत्कालीन रीवा राज्य में 27 मई 1951 को दिखाई दिया था। रीवा रियासत के तत्कालीन राजा मार्तण्ड सिंह को बरगड़ी जंगल (वर्तमान मे सीधी जिले के गोपद-बनास तहसील में) से सफेद बाघों के वंशज मोहन को पकड़ा था। उस वक्त मोहन 9 माह का था।

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