
एक व्यक्ति की सेहत पर साल में 1150 रुपए खर्च करती है सरकार
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में शिक्षा और स्वास्थ्य सरकार की प्राथमिकता में हैं। प्रदेश में लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा मुहैया कराने के लिए सरकार ने करीब 13,642 करोड़ रूपए का बजट रखा है। उसके बाद भी प्रदेश में स्वास्थ्य व्यवस्था बदहाल है। अनुमानत: प्रदेश के हर व्यक्ति की सेहत पर सालाना सरकारी खर्च सिर्फ 1150 रुपए है। ऐसे में सरकारी योजनाएं होने के बाद भी प्रदेश के लोग इलाज पर होने वाले खर्च से बेहाल हैं।
आलम यह है कि कुल स्वास्थ्य व्यय का 56 प्रतिशत लोग खुद खर्च करने को मजबूर हो रहे हैं। गौरतलब है की केंद्र और प्रदेश की सरकार स्वास्थ्य से संबंधित कई योजनाएं हैं। सरकारों का दावा है कि इन योजनाओं के माध्यम से लोगों को नि:शुल्क स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराई जा रही हैं। लेकिन हकीकत में प्रदेश की जनता पर बीमारी का बड़ा बोझ है। उन्हें सालाना 10 हजार करोड़ से अधिक दवा व इलाज पर अपनी जेब से खर्च करना पड़ रहा है। यही वजह है कि हेल्थ सेक्टर में निजी संस्थानों के कारोबार बढ़ रहे हैं। अनुमान है, सूबे में स्वास्थ्य पर 19 हजार करोड़ खर्च होते हैं। इसमें 56 प्रतिशत जनता खर्च करती है। उसके मुकाबले सरकार 44 प्रतिशत रकम ही लगा रही है।
बीमारी का खर्च बना रहा गरीब
राष्ट्रीय लेखा अनुमान (एनएचए) के मुताबिक सूबे में हर व्यक्ति को सेहत पर 1409 रुपए खर्च करने पड़ते हैं, जो सालाना 10 हजार करोड़ से अधिक है। सरकार 1150 रुपए खर्च कर रही है, यानी 9 हजार करोड़ से कम। केंद्र ने हाल के लोकसभा में लिखित जवाब में उक्त जानकारी दी। ऐसे में बीमारी जनता के लिए भयावह हो रही है। इलाज के लिए लोग सब कुछ दांव पर लगा रहे हैं। डब्ल्यूएचओ का मानना है, बीमारी से पड़ रहा बोझ गरीबी बढऩे का बड़ा कारण है। सरकार की ओर से स्वास्थ्य सेवा पर किए जाने खर्च में संस्थागत व्यय भी शामिल है। मसलन अस्पताल, डॉक्टर व पैरामेडिकल स्टाफ सहित अन्य के वेतन-भत्ते व परिवहन सेवा का खर्च भी सरकारी स्वास्थ्य व्यय में शामिल होता है। यहां तक कि स्वास्थ्य अधिकारियों की सुविधा, शासन और पर्यवेक्षण का व्यय ही अकेले 6 फीसदी से अधिक होता है। जिसका असर स्वास्थ्य पर हो रहा है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने यह भी बताया, एक दशक में जनता की जेब से उपचार में खर्च होने वाली राशि में 10 प्रतिशत से अधिक की कमी आई है। इसे और नीचे लाने आयुष्मान योजना शुरू की गई है। साथ ही चार मिशन परियोजनाएं शुरू की हैं। जिसके तहत राज्यों को तकनीकी व वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई जा रही है। सरकार ने उम्मीद जताई है कि इन मिशनों से जांच, दवा, उपचार से लेकर अवसंरचना निर्माण को गुणवत्तापूर्व बनाया जाएगा।
स्वास्थ्य केंद्रों का 350 रु. ही हर व्यक्ति पर खर्च
प्रदेश के 1199 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को हर साल दवाओं और उपकरणों के लिए 75 लाख से एक करोड़ रुपए दिए जाते हैं, यह राशि काफी कम है। प्रति 27 हजार आबादी पर स्वास्थ्य केंद्र होते हैं। यानी एक करोड़ के मान से तुलना की जाए तो प्रति व्यक्ति 350 से 400 रुपए ही एक साल में खर्च होते हैं। एनएचए की रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश के नागरिक पौने पांच हजार करोड़ से अधिक की दवा खरीदकर खा जाते हैं। निजी अस्पतालों में उपचार के नाम पर उन्हें 3100 करोड़ से अधिक खर्च करने पड़ते हैं। उन्हें उपचार के लिए रकम जुटाने के खातिर कारोबार बंद करने से लेकर संपत्ति तक बेचना पड़ रहा है।