
भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र की राजनीति की आगे दशा व दिशा क्या होगी यह आगामी कुछ दिनों में तय हो जाएगी। इसकी वजह है प्रदेश में राजनैतिक स्तर पर होने वाली सत्ता में नियुक्तियां और उपचुनावी परिणाम। दरअसल प्रदेश की सत्ता में वापसी कराने वाले श्रीमंत और उनके समर्थकों को लेकर अब भी कयासों का दौर जारी है। श्रीमंत तो राज्यसभा सदस्य बनने के बाद केंद्र में कैबिनेट मंत्री बनाए जा चुके हैं, लेकिन उपचुनाव हारकर विधायक न बन पाने वाले उनके समर्थक नेताओं को अब भी सत्ता में भागीदारी पाने के लिए इंतजार बना हुआ है। अब प्रदेश स्तर पर पार्टी व सरकार में निगम मंडलों , आयोगों सहित तमाम सरकारी और अर्ध सरकारी संस्थानों में अब पार्टी नेताओं की नियुक्तियों को लेकर मंथन तेज हो चुका है। यही वजह है कि फिर निगाहें इन नियुक्तियों पर लग गई हैं।
मंत्रिमंडल की ही तरह इन नियुक्तियों में भी श्रीमंत समर्थकों की कितनी भागीदारी रहेगी इसको लेकर कयासों का दौर जारी है। इसके साथ ही प्रदेश में एक लोकसभा व तीन विधानसभा चुनावों के लिए प्रत्याशी चयन और प्रशासनिक स्तर पर बड़ा फेरबदल भी होना है। पार्टी व सरकार में इन सभी मामलों में होने वाले निर्णयों में श्रीमंत और संघ की कितनी भूमिका रहती है, यह कुछ दिनों में स्पष्ट हो जाएगी। डेढ़ साल पहले तक ग्वालियर व चंबल अंचल इलाके में भाजपा के सबसे बड़े अलंबरदार रहे केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर की पसंद व नापसंद को ध्यान में रखकर ही इस अंचल को लेकर हर फैसले किए जाते रहे हैं, फिर यह फैसले राजनैतिक हों या फिर प्रशासनिक। श्रीमंत के भाजपा में आने के बाद उनके बराबर का कद हासिल करने के बाद इन दोनों ही नेताओं के बीच किस तरह का सामजंस्य दिखेगा यह भी बड़ा सवाल बना हुआ है। प्रदेश स्तर पर सत्ता व संगठन के बीच चल रहे मंथन के दौर में पार्टी के राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री राष्ट्रीय शिव प्रकाश के अलावा प्रदेश प्रभारी मुरलीधर राव के भोपाल दौरे ने हलचल और तेज कर दी है।
वैसे तो संगठन के नाते शिव प्रकाश की मुलाकात पार्टी के प्रमुख नेताओं से होना आम बात है, लेकिन इस बार जिस तरह उन्होंने संगठन महामंत्री सुहास भगत और सह संगठन महामंत्री हितानंद से मुलाकात के बाद बीजेपी कार्यालय आए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से लंबी मंत्रणा की है, उसकी वजह से अब माना जाने लगा है कि महत्वपूर्ण फैसलों की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है। गौरतलब है कि इसके पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ भाजपा अध्यक्ष विष्णु दत्त, प्रदेश संगठन महामंत्री सुहास भगत और प्रदेश सह संगठन मंत्री हितानंद शर्मा के बीच कई दौर का मंथन भी किया जा चुका है। बताया जाता है कि श्रीमंत पहले ही इन मामलों में अपनी मंशा से मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष को जता चुके हैं। अब जबकि प्रदेश के संगठन की पूरी कमान संघ के पांच-पांच प्रचारकों के हाथ में है, जिसकी वजह से यह बड़ा सावल भी बना हुआ है कि क्या प्रदेश में अब डेढ़ दशक से राज करने वाली भाजपा सरकार हिन्दुत्व के मामले में अपने ही दल की दूसरे प्रदेशों की सरकारों की तरह आगे बढ़ पाएगी। यह फैसले ऐसे समय होने जा रहे हैं, जब प्रदेश में एक लोकसभा के साथ ही विधानसभा की तीन सीटों पर उपचुनाव संभावित हैं।
यह उपचुनाव पार्टी के लिए बेहद महत्वपूर्ण बने हुए हैं। इसकी वजह है पूर्व में दमोह उपचुनाव में पार्टी प्रत्याशी की करारी हार होना। इस उपचुनाव में संगठन व सत्ता ने मिलकर पूरी ताकत झोंक दी थी, फिर भी मतदाताओं का फैसला पूरी तरह से उलट ही रहा। यही वजह है कि अब पार्टी के सामने इन उपचुनाव में जीत हासिल करने की बड़ी चुनौती बनी हुई है। इसके अलावा प्रदेश में नगरीय निकाय चुनाव भी होने हैं। इसकी वजह से माना जा रहा है कि इन चुनावों को ध्यान में रखकर ही यह फैसले लिए जा सकते हैं। यह सब ऐसे समय हो रहा है जब पार्टी में संगठन स्तर पर पीढ़ी परिवर्तन का दौर चल रहा है। सत्ता व संगठन के साकेत से जुड़े सूत्रों का कहना है कि इन सभी मामलों पर विधानसभा सत्र से पहले फैसले ले लिए जाएंगे। फिलहाल संगठन स्तर पर अब भी पार्टी नेताओं को मीडिया टीम के गठन का इंतजार बना हुआ है। माना जा रहा है कि इस पर भी अब फैसला हो सकता है। इस टीम में भी श्रीमंत समर्थकों को समायोजित किया जाना है, जिसकी वजह से ही मामला अटका हुआ माना जा रहा है।
केन्द्रीय मंत्रिमंडल का दिख सकता है असर
प्रदेश स्तर पर होने वाले इन फैसलों में केन्द्रीय मंत्रिमंडल का असर भी साफतौर पर दिखने की संभावना बनी हुई है। हाल ही में जिस तरह से मोदी मंत्रिमंडल में खासतौर पर भविष्य को ध्यान में रखकर आदिवासी, दलित, और पिछड़ा वर्ग को महत्व देते हुए पुनर्गठन किया गया है, उससे यह भी माना जा रहा है कि इन निर्णयों में उन नेताओं को प्राथमिकता दी जा सकती है जो अपनी -अपनी जाति में न केवल बड़े चेहरे माने जाते हैं, बल्कि समाज के बोट बैंक पर भी पकड़ रखते हैं। मोदी मंत्रिमंडल के विस्तार के साथ नेतृत्व ने यह संकेत दिए थे कि वह किसान दलित या फिर आदिवासी पिछड़े और दलित के साथ महिला नेतृत्व को भाजपा में आगे लाना चाहता है।
उपचुनाव से हो जाएगा यह आंकलन
प्रदेश में होने वाले उपचुनाव और नगर सरकार के चुनावों से निश्चित तौर पर क्षेत्र विशेष में भाजपा का जनाधार और नेताओं की न केवल लोकप्रियता का आंकलन होगा, बल्कि बीजेपी की सोशल इंजीनियरिंग की सफलता असफलता का भी पता चल जाएगा। यदि भाजपा दमोह उपचुनाव से सीख लेकर इन चार उपचुनाव में जीत के साथ कमबैक करती है तो निश्चित तौर पर न सिर्फ पार्टी की साख बरकरार रहेगी बल्कि नेतृत्व की लोकप्रियता, कार्यकर्ताओं का हौंसला भी बढ़ जाएगा। दमोह उपचुनाव के परिणाम ने बीजेपी को पहले ही कई तरह के संकेत दे दिए हैं। इस हार की वजह कांग्रेस ही नहीं बल्कि उपेक्षित भाजपा कार्यकर्ताओं की निष्क्रियता बड़ा फैक्टर साबित हुई है। इसके अलावा कोरोना की लहर का भी इसमें बड़ा प्रभाव रहा है। इससे यह तो तय हो गया है कि ज्वलंत मुद्दों को नजरअंदाज करना भी भारी पड़ सकता है।
इन सवालों का भी मिल जाएगा जबाव
सत्ता में कार्यकर्ताओं व नेताओं की ताजपोशी के साथ ही उन सवालों का जबाव भी मिल जाएगा, जो अब तक अनुउत्तरित बने हुए हैं। इनमें क्राइटेरिया सिर्फ उप चुनाव जीतना और सिंधिया की अपेक्षाओं को पूरा करना होगा या फिर उन अनुभवी नेताओं को भी एडजेस्ट करने की रणनीति पर भी पार्टी काम करेगी। इसके साथ ही यह भी पता चल जाएगा कि जिन टिकट के दावेदारों ने पिछला चुनाव नहीं लड़ा या फिर 28 उपचुनाव के दौरान शीर्ष नेतृत्व की लाइन को आगे बढ़ाया क्या उन्हें भी पद प्रतिष्ठा का हकदार माना जाएगा। फिलहाल इन फैसलों से यह भी तय हो जाएगा कि प्रदेश में भाजपा प्रेशर पॉलिटिक्स, शर्त और समझौते की सियासत पर आगे बढ़ेगी या फिर पार्टी लाइन को आगे बढ़ाने वाले मूल कार्यकर्ताओं को महत्व देगी।