
भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। संघ की प्रतिनिधि सभा में लिए गए निर्णय पर प्रदेश सह संगठन मंत्री हितानंद शर्मा को अब भाजपा के प्रदेश संगठन महामंत्री सुहास भगत का उत्तराधिकारी बना दिया गया है। उन्हें ऐसे समय पदोन्नत किया गया है, जबकि सूबे में विधानसभा चुनाव के लिए महज डेढ़ साल का ही समय रह गया है। यही वजह है कि माना जा रहा है कि उन्हें अपने कार्यकाल की शुरूआत में ही एंटी इनकंबेंसी और समन्वय जैसी बड़ी चुनौतियों का सामना करना होगा।
अगले दो साल राजनैतिक रुप से बेहद महत्वपूर्ण होने की वजह से उन्हें लगातार एक के बाद एक चुनौती का सामना करना होगा। आगामी दो सालों में विधानसभा और लोकसभा के चुनाव तो होने ही है साथ ही संगठनात्मक चुनाव भी होंगे। इसके अलावा उन्हें संगठन में जातीय और क्षेत्रीयता में भी संतुलन साधने का सांगठनिक कौशल दिखाना होगा। दरअसल यह पद संघ से आने वाले पूर्णकालिक प्रचारक को ही दिया जाता है।
पार्टी की रीति-नीति तय करने में भी प्रदेश संगठन महामंत्री की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है। पूर्व में कई बार इस तरह के मामले आ चुके हैं, जब प्रदेश संगठन महामंत्री द्वारा प्रदेश अध्यक्ष के फैसलों पर भी रोक लगा दी गई। फिलहाल उनके लिए सबसे बड़ी चुनौति अगले साल होने वाला विधानसभा चुनाव है।
श्रीमंत के समर्थक सहित अन्य दलों से पार्टी में आए नेताओं और कार्यकर्ताओं का समन्वय और समायोजन इस तरह करना की पार्टी के पुराने कैडर में असंतोष न उभरने देने में उनकी परख होना है। मप्र ऐसा राज्य है जहां पर विपक्षी दल कांग्रेस बेहद मजबूत स्थिति में मानी जा रही है। अगले साल नवंबर में होने वाले विधानसभा के लिए कांग्रेस अभी से तैयारी कर रही है। इसके अलावा भाजपा के सामने 18 साल की भाजपा सरकार को लेकर एंटी इनकंबेंसी का भी उन्हें सामना करना होगा। विधानसभा चुनाव में पार्टी की जीत और बहुमत के आंकड़े को पार कराने के साथ ही बीते लोकसभा चुनाव की ही तरह पार्टी के लिए परिणाम दोहराने की चुनौति में उनके सियासी कौशल की परीक्षा होना है।
इस तरह की भी हैं चुनौतियां
संगठन विस्तार की चुनौती हितानंद के सामने है, क्योंकि कोरोना काल के बावजूद संगठन के कई बड़े लक्ष्य सामने रखे हैं। इनमें बूथ स्तर तक और विस्तार, डिजिटलीकरण व 10 फीसदी वोट प्रतिशत बढ़ाना प्रमुख है। आने वाले समय में निकाय व पंचायत चुनाव होना है। इसके अलावा पार्टी में चल रहे पीढ़ी परिवर्तन की बयार में हाशिये पर धकेले जा रहे वरिष्ठ नेताओं को संभालने की भी उनके सामने चुनौती रहने वाली है। इसी तरह से उन्हें नई-पुरानी टीम के बीच अपनी टीम भी बनानी होगी।
श्रीमंत समर्थकों के बीच समन्वय
दलबदल कर भाजपाई बने श्रीमंत की ताकत पार्टी में तेजी से बढ़ी है। ऐसे में हितानंद के लिए उनके और मूल भाजपा नेताओं के बीच संतुलन बनाए रखने की बेहद अहम चुनौती रहने वाली है। इसकी वजह है वे 28 विधायक जो दलबदल कर भाजपा में अपने समर्थकों के साथ भाजपा में आए हैं। ऐसे में पुराने और नए नेताओं के साथ समन्वय रखते हुए 2023 के विस चुनाव में उतरना काफी चुनौतीपूर्ण होगा। इस बीच संगठन में नई पीढ़ी को मौका देने की शुरूआत हुई। इसमें कई वरिष्ठ कार्यकर्ता पीछे छूट गए। उन्हें सत्ता या संगठन में मनचाही भागीदारी के लिए इंतजार करने को कहा गया। ऐसे वरिष्ठ कार्यकर्तार्ओ को सक्रिय करना भी कठिन माना जा रहा है।
साधना होंगे जातिगत समीकरण : मप्र में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) आरक्षण का मुद्दा सियासत को नई दिशा दे रहा है। इस पर भाजपा और कांग्रेस दोनों के अपने-अपने तर्क हैं और मैदानी जमावट की कोशिशें भी। प्रदेश में ओबीसी की आबादी निर्णायक स्थिति में है। ऐसे में ओबीसी को अपने पक्ष में करना बड़ी चुनौती है। आबादी के मुताबिक आरक्षण और टिकट की मांग हुई तो पार्टी को मुश्किल का सामना करना पड़ सकता है। इसी तरह से बीते विस चुनाव में भाजपा के सत्ता से बाहर होने की बड़ी वजह आदिवासी यानी एसटी सीटों में आई कमी रही थी। पार्टी के पास इस वर्ग के लिए कोई बड़ा चेहरा नहीं है। ऐसे में बड़ी चुनौती होगी कि आदिवासी वर्ग को फिर से भाजपा की तरफ कैसे लाया जाए। एससी वर्ग को भी जोड़ने के लिए तैयारियां अभी से करनी होंगी।
यह है खासियत
हितानंद शर्मा वैसे तो बीते डेढ़ साल से संगठन का कामकाज सुहास भगत के सहयोगी के रुप में देख रहे थे। इसकी वजह से उन्हें सियासी कामकाज करने में सहूलियत रहेगी। उनके बारे में माना जाता है कि वे विनम्र और मिलनसार तो हैं ही, साथ ही संगठनात्मक पकड़ भी मजबूत रखते हैं।