जयवर्धन को क्षत्रप बनाने की मुहिम को लगा झटका

दिग्विजय सिंह

गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश कांग्रेस में कांग्रेस के सबसे बड़े नेता माने जाने वाले दिग्विजय सिंह को इस बार का चुनाव बड़ा झटका देने वाला साबित हुआ है। इसकी वजह है उनकी उस मुहिम को झटका लगना, जिसके तहत वे अपने बेटे जयवर्धन को क्षत्रप के रुप में स्थापित करना चाहते थे। दरअसल प्रदेश से लेकर ग्वालियर-चंबल की राजनीति में महाराजा और राजा के बीच राजनीतिक वर्चस्व की जंग कोई नई बात नहीं हैं। महाराजा यानी सिंधिया घराना और राजा यानी दिग्विजय सिंह उर्फ दिग्गी राजा जब भी मौका मिला है अपना – अपना प्रभाव दिखाने में पीछे नहीं रहे हैं। कांग्रेस में रहते सिंधिया घराना हर बार भारी पड़ता रहा है। ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में जाने के बाद से पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह अपने बेटे जयवर्धन के लिए ग्वालियर-चंबल अंचल में राजनीतिक जमीन तैयार करने के लिए हर जरुरी कदम उठाने में लगे हुए थे। वे इस प्रयास में थे कि इस बार के चुनाव में बेटे जयवर्धन को एक क्षत्रप के रूप में स्थापित करने में सफल हो जाएंगे, लेकिन चुनाव परिणाम आते ही उनकी इस योजना को बड़ा झटका लगा है।

दरअसल अंचल में कांग्रेस को 10 सीटों का बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है। अंचल की 34 सीटों में से आठ सीटों पर कमलनाथ और शेष सीटों पर दिग्विजय सिंह ने अपनी पंसद के उम्मीदवारों को टिकट दिलाया था। बीते 2818 के चुनाव में ग्वालियर-चंबल में ज्योतिरादित्य सिंधिया का बड़ा चेहरा कांग्रेस के पास था, जिसकी वजह से कांग्रेस अंचल की 34 सीटों में से 26 सीटों पर जीत दर्ज करने में सफल् रही थी। सरकार बनने के बाद कांग्रेस ने सिंधिया को इसका श्रेय देने से साफ इंकार कर दिया था। इस बार अंचल में श्रीमंत और दिग्विजय समर्थकों के बीच हुए मुकाबले में न केवल कांग्रेस को दस सीटों का नुकसान हुआ है बल्कि, कांग्रेस में दिग्विजय समर्थक नेता प्रतिपक्ष गोविंद सिंह, केपी सिंह और लाखन सिंह जैसे चेहरों तक को हार का सामना करना पड़ा है।
श्रीमंत ने किया दिग्विजय समर्थकों पर फोकस
विधानसभा चुनाव में एक बात खास रही कि ज्योतिरादित्य सिंधिया और दिग्विजय सिंह के बीच पीढिय़ों से चली आ रही रंजिश एक नए सियासी मोड़ पर पहुंच गई। सिंधिया ऐसे नेता है, जिन्होंने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बाद सर्वाधिक 80 सभाएं की। दिग्विजय के करीबियों को हराने के लिए सिंधिया ने भी अपनी ताकत लगा दी थी, जिसकी वजह से दिग्विजय के भाई लक्ष्मण सिंह, केपी सिंह, नेता प्रतिपक्ष रहे डा गोविंद सिंह, प्रियव्रत सिंह जैसे नेताओं को भी हारने पर मजबूर होना पड़ा है। जीतू पटवारी, कुणाल चौधरी, प्रवीण पाठक, लाखन सिंह, घनश्याम सिंह को पराजय का सामना करने ने से भी दिग्विजय की ताकत कम हुई। सिंधिया ने पिछोर विधानसभा सीट पर केपी समर्थक अरविंद लोधी को जिला बनाने की घोषणा भी सीएम से करा कर पांसा पलट दिया।
अपनी सीट मुश्किल से बचा पाए जयवर्धन  
जयवर्धन का अन्य सीटों पर प्रभाव डालना तो दूर की बात है, चुनाव में जयवर्धन स्वयं बमुश्किल से जीत दर्ज कर सके हैं। गौरतलब है कि दिग्विजय सिंह के प्रभाव वाले गुना, अशोकनगर और शिवपुरी जिलों की 12 सीटों में से भाजपा ने आठ सीटों पर जीत दर्ज की है। अंचल में पार्टी की करारी हार के पीछे की सबसे बड़ी वजह यह रही कि पौने चार साल में पार्टी यहां से ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसा कद्दावर नेता नहीं खड़ा कर पाई, जो उनका विकल्प बन सके। इसके अलावा सिंधिया के भाजपा में जाने के बाद प्रदेश स्तर की पहली और दूसरी पंक्ति में ऐसा कोई चेहरा कांग्रेस के पास नही है, जो कि कांग्रेस में सर्वमान्य हो। बात नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह की करें तो अब उनकी उम्र दौड़भाग कर पाने की नहीं है।

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