
- स्मार्ट पुलिसिंग के लिए होगा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम
मप्र पुलिस में अब एक बड़ा बदलाव हो रहा है। राज्य सरकार ने नव आरक्षकों के लिए 14 साल बाद अपने प्रशिक्षण सिलेबस में सुधार करने का फैसला लिया है। इस सुधार के तहत, अब नव आरक्षकों को आधुनिक तकनीक जैसे साइबर क्राइम, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ड्रोन टेक्नोलॉजी और ऑनलाइन फ्रॉड के बारे में प्रशिक्षण दिया जाएगा। इससे मध्य प्रदेश पुलिस को अपराधों के खिलाफ और अधिक सक्षम बनाने में मदद मिलेगी।
मप्र पुलिस ने अपने नव आरक्षकों के लिए प्रशिक्षण सिलेबस में बड़े बदलाव का ऐलान किया है। अब पुलिस ट्रेनिंग स्कूलों में भर्ती होने वाले नव आरक्षकों को तकनीकी रूप से ज्यादा दक्ष बनाने के लिए उन्हें नई तकनीकों की ट्रेनिंग दी जाएगी। खास बात यह है कि यह बदलाव 14 साल बाद किया जा रहा है, जिससे पुलिस बल की क्षमता में सुधार होगा और अपराधों पर नियंत्रण और सख्त होगा।
नए बैच को एआई, साइबर क्राइम और ड्रोन प्रशिक्षण
दरअसल, मप्र के भोपाल, ग्वालियर, इंदौर, उज्जैन, टीवा, उमरिया, पचमढ़ी, सागर स्थित पुलिस ट्रेनिंग स्कूलों में नव आरक्षकों को प्रशिक्षण दिया जाता है। इन ट्रेनिंग स्कूल में गई से 4500 नव आरक्षकों के नए बैच की शुरुआत होगी। 2011 के बाद से यही पुराना सिलेबस चला आ रहा था, लेकिन अब 14 साल बाद इस सिलेबस में सुधार किया जा रहा है। एडीजीपी ट्रेनिंग, राजा बाबू सिंह ने इस बदलाव की जानकारी दी और बताया कि अब नव आरक्षकों को एआई, ड्रोन तकनीक, साइबर क्राइम, और ऑनलाइन फ्रॉड जैसी आधुनिक तकनीकों के बारे में भी शिक्षा दी जाएगी।
राजा बाबू सिंह ने बताया कि दस प्रशिक्षण केंद्रों (पीटीएस रीवा, उमरिया, पंचमढ़ी, सागर, तिघरा ग्वालियर, इंदौर, उज्जैन, बावड़ी भोपाल के साथ दो उपनिरीक्षक व डीएसपी प्रशिक्षण केंद्र जेएनपीए सागर और एकीकृत पुलिस प्रशिक्षण संस्थान भौरी भोपाल) के पर्यवेक्षण की जिम्मेदारी मेरे पास है। सभी प्रशिक्षण केंद्रों में मई से प्रदेश के साढ़े चार हजार नव आरक्षकों को नए माड्यूल के अनुसार प्रशिक्षित किया जाएगा। उन्होंने बताया कि 14 साल बाद आरक्षकों के ट्रेनिंग मॉड्यूल में बदलाव होने जा रहा है। इससे पहले 2011 में ट्रेनिंग मॉड्यूल बदला गया था। एडीजी सिंह ने कहा कि लगातार बढ़ते साइबर अपराध जितनी बड़ी चुनौती आम जनता के लिए है, उतना ही पुलिस के लिए भी हैं। ऐसे में आरक्षकों को साइबर अपराध की चुनौतियों, एआई तकनीक सहित तमाम तरह के प्रशिक्षण प्रदान किए जाएंगे। मकसद यह है कि जब आरक्षक प्रशिक्षण के बाद पीटीएस और पीटीसी से निकले, तो वह पूरी तरह से दक्ष होना चाहिए। आरक्षकों को शारीरिक रूप से मजबूत करने के साथ तकनीकी तौर पर भी दक्ष किया जाएगा। इसलिए उन्हें भीड़ से निपटने के अलावा जांच पड़ताल के तरीकों और आधुनिक तकनीक यानी एआई, ड्रोन आपरेटिंग और साइबर फोरेंसिक की ट्रेनिंग दी जाएगी। अब भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की जगह भारतीय न्याय संहिता (वीएनएस) ने ले ली है। इसी तरह, दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की जगह अब भारतीय नागरिक सुरक्षा सहिता ने ले ली है। इसका प्रशिक्षण भी आरक्षकों को दिया जाएगा। उन्होंने बताया कि आरक्षकों को नौ महीने का प्रशिक्षण दिया जाता है। इसमें साढ़े चार महीने के दो सेमेस्टर होते हैं। इसके बीच में सात दिन का गैप होता है, फिर इन्हें कानून व्यवस्था के लिए तैनात किया जाता है।
यह होंगे चार प्रमुख बदलाव
सभी सीडीआई (आठ पीटीएस/पीटीसी) अधिकारियों को बीएसएफ इंस्टीट्यूट टेकनपुर भेजा जाएगा, जहा पर उन्हें स्पोर्ट्स इंजरी प्रिवेंशन सेंटर में तीन दिनों की ट्रेनिंग दिलाई जाएगी। जीरो वीक की शुरुआत होगी। इसके जरिए पहले सेमेस्टर के शुरू होने से पहले नव आरक्षकों को नौ माह के कठिन प्रशिक्षण के लिए मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार किया जाएगा। 14 वर्ष पुराने आरक्षक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम (जो 2011 में संशोधित हुआ था) का पुनरीक्षण किया जाएगा। नए पाठ्यक्रम में साइबर अपराध, ड्रोन निगरानी, आर्थिक अपराध, ऑनलाइन चोखाधड़ी, एआई, डिजिटल फॉरसिक्स जैसे नए विषय जोड़े जाएगे। आउटडोर विषयों के प्रशिक्षकों (पीटी, ड्रिल, यूपसी, हथियार और युद्ध कौशल) के प्रशिक्षक प्रमाण पत्र की वैधता बीएसएफ/आईटीबीपी संस्थानों द्वारा सुनिश्चित कराया जाएगा।