- हाईकोर्ट सख्त… 18 तक विधानसभा अध्यक्ष से मांगा जवाब
- गौरव चौहान

सागर की बीना विधानसभा से विधायक निर्मला सप्रे के मामले में हाईकोर्ट ने सख्त रूख अख्तियार किया है। हाईकोर्ट ने इस मामले में 18 नवंबर तक विधानसभा अध्यक्ष से जवाब मांगा है। मामला विधायक निर्मला सप्रे की सदस्यता को लेकर है। निर्मला सप्रे ने 16 महीने पहले कांग्रेस पार्टी छोडकऱ भाजपा का दामन थाम लिया था। इसके बाद उनकी सदस्यता निरस्त नहीं की गई थी। उमंग सिंघार ने निर्मला सप्रे की विधानसभा की सदस्यता को लेकर जबलपुर हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।
सागर की बीना विधानसभा से विधायक निर्मला सप्रे ने विधानसभा चुनाव कांग्रेस पार्टी से लड़ा था और जीत कर विधायक बन गई थी। लेकिन लोकसभा चुनाव के दौरान 5 मई 2024 को जब राहतगढ़ में मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव की सभा चल रही थी उसे दौरान कांग्रेस विधायक निर्मला सप्रे भारतीय जनता पार्टी के मंच पर नजर आईं और उन्होंने भारतीय जनता पार्टी का गमछा भी गले में डाला हुआ था। इसके बाद उन्होंने बाकायदा भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता भी ले ली थी। इसकी पुष्टि तत्कालीन भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष बीडी शर्मा ने की थी।
विधानसभा सदस्यता रद्द करने की मांग की
मध्य प्रदेश विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने निर्मला सप्रे के खिलाफ दल-बदल कानून के आधार पर उनकी विधानसभा सदस्यता रद्द करने की मांग की थी। उमंग सिंगार ने विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर को इस मुद्दे पर आवेदन दिया था। दल बदल कानून के अनुसार कोई भी सदन का चुना हुआ सदस्य पार्टी छोडकऱ दूसरी पार्टी में जाता है तो उसकी सदस्यता रद्द मानी जाती है। इसलिए निर्मला सप्रे पर यह कानून लागू होता है।नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने कहा कि ऐसा कानून है कि दलबदल करने वाले विधायक को फिर से चुनाव लडऩा पड़ता है। विधायक को अयोग्य घोषित किया जाए या नहीं, नियमानुसार स्पीकर को 90 दिन में निर्णय लेना होता है। देश में कई बार ऐसे मामले सामने आए कि सरकारें उनके पक्ष में दलबदल करने वाले विधायकों के खिलाफ निर्णय नहीं लेती, लेकिन मप्र हाईकोर्ट ने जिस तरह नोटिस जारी कर जवाब मांगा है, उससे मुझे विश्वास है कि मामले में न्याय होगा।
इंदौर के बाद जबलपुर हाईकोर्ट में की याचिका दायर
उमंग सिंघार की मांग पर जब विधानसभा अध्यक्ष ने कोई कार्रवाई नहीं की तो उन्होंने इस मामले में हाईकोर्ट की इंदौर बेंच में याचिका दायर की थी। इंदौर बेंच ने इस मामले को खारिज करते हुए कहा था कि उमंग सिंगार इसे दोबारा हाईकोर्ट की मुख्य पीठ में लगा सकते हैं। इसके बाद निर्मला सप्रे की विधानसभा की सदस्यता को लेकर जबलपुर हाईकोर्ट में उमंग सिंघार ने चुनौती दी थी। शुक्रवार को इस मामले की सुनवाई मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और जस्टिस विवेक सराफ की कोर्ट में हुई।
18 नवंबर को होगी अगली सुनवाई
उमंग सिंघार की ओर से वकील जयदीप कौरव ने बताया कि हाई कोर्ट में विधानसभा अध्यक्ष की ओर से पैरवी कर रहे वकील ने बताया कि कोर्ट इस मामले में दखल नहीं दे सकता लेकिन कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि 16 महीने से ज्यादा का समय हो गया है इसलिए अब तक विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर ने क्या किया इसका जवाब तो उनको देना होगा। इस मामले में विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर, मध्य प्रदेश सरकार और निर्मला सप्रे को नोटिस जारी किए गए हैं। इस मामले की अगली सुनवाई 18 नवंबर को तय की गई है।
6 महीने में क्यों नहीं लिया निर्णय
हाईकोर्ट ने विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर और निर्मला सप्रे को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। कोर्ट ने विधानसभा अध्यक्ष तोमर से पूछा कि 16 महीने बाद भी इस मामले में निर्णय क्यों नहीं लिया? मामले की अगली सुनवाई 18 नवंबर को होगी। नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने विधायक निर्मला सप्रे की सदस्यता निरस्त कराने को लेकर मप्र हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। मप्र हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश संजीव सचदेवा एवं न्यायमूर्ति विनय सराफ की खंडपीठ ने याचिका पर सुनवाई की। याचिका पर सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश सचदेवा ने महाधिवक्ता प्रशांत सिंह से प्रश्न किया कि निर्मला सप्रे को दलबदल मामले में अयोग्य घोषित करने वाली याचिका पर विधानसभा अध्यक्ष ने 16 महीने के बाद भी निर्णय क्यों नहीं लिया? जबकि सुप्रीम कोर्ट ने पाडी कौशिक रेड्डी बनाम तेलंगाना राज्य एवं केशम बनाम मणिपुर राज्य मामलों में यह स्पष्ट किया है कि दलबदल याचिका का निराकरण 3 महीने के भीतर किया जाना चाहिए। विधानसभा अध्यक्ष के वकील ने तर्क दिया कि इस मामले की सुनवाई डिवीजन बेंच में नहीं हो सकती। कोर्ट ने उनके इस तर्क को खारिज कर दिया।
विधि के सिद्धांतों के विपरीत कार्य कर रहे स्पीकर
नेता प्रतिपक्ष सिंघार की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता विभोर खंडेलवाल एवं जयेश गुरनानी द्वारा कोर्ट में यह तर्क रखा गया कि विधानसभा अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित किए गए विधि के सिद्धांतों के विपरीत कार्य करते हुए निर्मला सप्रे के विरुद्ध प्रस्तुत की गई दलबदल याचिका का निराकरण नहीं कर रहे हैं और भारतीय संविधान की अनुसूची 10 के पैरा 2 (1) (क) व अनुच्छेद 191 (2) के अनुसार यदि कोई विधायक दलबदल करता है, तो उसकी विधानसभा से सदस्यता निरस्त की जानी चाहिए। यदि दलबदल के बाद ऐसे व्यक्ति को विधायक रहना हो, तो उसे फिर से चुनाव लडऩा पड़ता है।
खंलेडवाल बोले-उनसे ही पूछा जाए वे किस दल में हैं
बीना विधायक निर्मला सप्रे अब भाजपा के मंचों पर दिखाई देती रही, लेकिन औपचारिक रूप से उन्होंने भाजपा की सदस्यता अब तक नहीं ली। उनकी विधानसभा सदस्यता रद्द करने को लेकर कांग्रेस ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है, जिससे यह मामला और उलझ गया है। अब भाजपा भी उनसे किनारा करते दिख रही हैं। इस पूरे विवाद पर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष और विधायक हेमंत खंडेलवाल ने निर्मला सप्रे किस दल में है सवाल के जवाब में कहा कि निर्मला सप्रे भाजपा के 164 विधायकों की सूची में शामिल नहीं हैं। वे किस दल में हैं, यह सवाल उन्हीं से पूछा जाना चाहिए। खंडेलवाल ने आगे कहा कि भाजपा में संगठनात्मक अनुशासन सर्वोपरि है। पार्टी की सदस्यता लिए बिना कोई व्यक्ति आधिकारिक रूप से भाजपा से नहीं जुड़ सकता।
