स्टडी में खुलासा: मोक्षदायिनी शिप्रा का पानी नहाने लायक भी नहीं

मोक्षदायिनी शिप्रा का पानी

भोपाल/हरीश फतेह चंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। शिव की नगरी उज्जैन में मोक्षदायिनी शिप्रा नदी के उद्धार के नाम पर हर साल तकरीबन 32.50 करोड़ रूपए खर्च किए जा रहे हैं। इसके बावजूद शिप्रा नदी का पानी अब आचमन तो दूर नहाने लायक भी नहीं बचा है। यहां नहाने की श्रद्धा लिए सैकड़ों-हजारों लोग पहुंचते हैं, लेकिन उन्हें यह नहीं पता कि पानी इतना अशुद्ध है कि यह पानी नाक-कान-आंख-मुंह में जाते ही बीमार कर सकता है। प्रदूषण विभाग की स्टडी में यह खुलासा हुआ है। रिपोर्ट के मुताबिक नदी का पानी ए से ई ग्रेड में मापा जाता है। इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि शिप्रा नदी का पानी डी ग्रेड का है। यानी लगभग सबसे बुरी स्थिति में। प्रदूषण विभाग के सीनियर साइंटिस्ट डॉ. एडी संत ने बताया कि शिप्रा नदी का जल डी ग्रेड का है। इसमें सबसे ज्यादा प्रदूषण इंदौर से आ रही खान नदी के कारण हो रहा है। इस नदी के माध्यम से इंदौर के इंडस्ट्रियल एरिया का वेस्ट और गंदा पानी शिप्रा में मिलता है, जबकि देवास के इंडस्ट्रियल एरिया से गुजर रही नदी का पानी भी शिप्रा में मिल रहा है। इससे भी यह प्रदूषित हो रही है। वहीं शहर में घरेलू कचरे और सीवरेज का पानी प्रदूषण के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार है। शिप्रा नदी में खान नदी का पानी न मिल सके इसलिए मिट्टी का बांध बनाया पर वह भी नहीं टिक सका। इससे शिप्रा में खान का गंदा पानी आना शुरू हो गया।
योजनाएं बनी, लेकिन परिणाम नहीं निकले
नदी संरक्षण- 2004 की इस योजना में शहर के 11 बड़े नालों को पाइप लाइन से डायवर्ट किया। पंपिंग कर गंदे पानी को ट्रीटमेंट प्लांट पर ले जाने में बिजली की खपत ज्यादा होती है। निगम यह भार वहन नहीं कर पा रहा। राज्य सरकार से इसके संचालन के लिए कोई मदद नहीं मिलती। इसलिए गंदे नालों का पानी जब तब शिप्रा में मिलता रहता है। शिप्रा को इंदौर के गंदे पानी से बचाने के लिए सबसे पहले राघौ पिपलिया पर स्टापडेम बनाया गया था। शिप्रा को स्वच्छ रखने के लिए 2004 में 6 करोड़ की नदी संरक्षण योजना के तहत शहर के सभी बड़े नालों को पाइप लाइन और पंपिंग स्टेशनों से जोड़ कर गंदे पानी को सदावल ट्रीटमेंट प्लांट पर छोड़ा गया। यह योजना पंपिंग आधारित होने से नगर निगम पर सालाना 1 करोड़ रुपए बिजली खर्च आने से बार-बार पंपिंग बंद होने के कारण गंदा पानी शिप्रा में मिलता रहा। इस बीच 4 करोड़ रुपए से हरसिद्धि से सीवरेज लाइन डाली गई जो रुद्रसागर में एकत्र गंदे पानी को रामघाट पर मिलने से रोक कर नदी में आगे लेकर छोड़ती है। सिंहस्थ 2016 में खान डायवर्सन योजना लागू की गई। इस पर करीब 80 करोड़ रुपए खर्च हुए लेकिन राघौ पिपलिया स्टापडेम से गंदा पानी ओवर फ्लो होकर शिप्रा में मिल रहा है। शिप्रा को प्रवाहमान बनाने के लिए करीब 500 करोड़ से ज्यादा की नर्मदा शिप्रा लिंक और उज्जैनी टू उज्जैन योजना लागू की गई है। इनसे समय-समय पर नर्मदा का पानी मिलता है।
…तो कागजों पर ही 6 अरब से अधिक स्वाहा
प्रदूषण विभाग की रिपोर्ट आने के बाद सवाल उठने लगे हैं कि शिप्रा को स्वच्छ बनाने के लिए जो योजनाएं बनीं, बीते 20 साल में करीब 650 करोड़ रुपए खर्च किए गए क्या वह कागजों पर ही हुआ है। अगर ईमानदारी से योजनाओं का क्रियान्वयन किया गया होता तो आज  शिप्रा नदी का पानी डी ग्रेड का नहीं होता। जनप्रतिनिधि इसका कारण इंदौर से आने वाले प्रदूषित पानी की रोकथाम के लिए सही उपाय नहीं होना बता कर पल्ला झाड़ते नजर आ रहे हैं। अधिकारियों का कहना है खान डायवर्सन योजना अब तक जल संसाधन विभाग को हैंडओवर ही नहीं हुई है, इसलिए इसके मेंटेनेंस का बजट में प्रावधान नहीं किया जाता। शिप्रा की स्वच्छता और प्रवाहमान बनाने की मांग को लेकर शिप्रा तट दत्त अखाड़ा घाट पर धरना दे रहे संतों को फिर प्रशासन आश्वासन थमा कर इस मुद्दे को ठंडा करने में जुटा है।
नहीं मिल रहा योजनाओं का फायदा

नदी संरक्षण के लिए राज्य शासन से बिजली खर्च की राशि मिलना थी लेकिन यह केवल एक बार मिली। इसके बाद राशि नहीं मिल रही। खान डायवर्सन योजना नगर निगम के लिए जल संसाधन ने बनाई थी। जल संसाधन के ईई कमल कुवाल के अनुसार यह अभी विभाग को हैंडओवर नहीं हुई है। इसलिए मेंटेनेंस का बजट में प्रावधान नहीं होता। सफाई और टूट फूट होने पर विभाग अपने स्तर पर टेंडर कर काम कराता है। मेंटेनेंस खर्च का बंदोबस्त नहीं होने से दोनों योजनाओं का फायदा नहीं मिल रहा।

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