- 66 लाख विद्यार्थियों को नहीं मिल पाई यूनिफार्म या उसकी राशि
- विनोद उपाध्याय

प्रदेश के सरकारी स्कूल ग्रीष्मकालीन अवकाश के बाद बीते 18 जून से खुल गए हैं। स्कूल खुलने के साथ ही विद्यार्थियों को यूनिफॉर्म और किताबों का वितरण होना था, लेकिन राजधानी समेत प्रदेश भर के 66 लाख विद्यार्थियों को यूनिफार्म या उसकी राशि नहीं मिल पाई है। इस कारण विद्यार्थी स्कूल ड्रेस की जगह रंग-बिरंगे कपड़े पहनकर स्कूल जाने को मजबूर हो रहे हैं। दरअसल प्रदेश के सरकारी स्कूलों में पहली से आठवीं तक के विद्यार्थियों को नि:शुल्क दो जोड़ी ड्रेस दी जाती है। पिछले सालों में ड्रेस की राशि विद्यार्थियों के खातों में डाली जाती थी, जिससे विद्यार्थियों के अभिभावक राशि लेकर अपनी मर्जी से कहीं से भी ड्रेस सिलवा सकते थे। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के निर्देश के बाद इसका काम पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के अंतर्गत ग्रामीण आजिविका मिशन के माध्यम से स्व सहायता समूह को दिया गया। जिससे हजारों महिलाओं को रोजगार मिल सके। लेकिन जब स्व-सहायता समूह के माध्यम से सिलकर स्कूलों में यूनिफार्म पहुंची, तो उनकी क्वालिटी बहुत ही घटिया थी। साथ ही बच्चों की नाप के अनुसार उन्हें ड्रेस नहीं मिल सकी। इसके बाद कोरोना के चलते स्कूल बंद रहे। कोरोना की पाबंदी हटने के बाद आजीविका मिशन के माध्यम से स्कूलों में दो साल पहले ड्रेस नहीं पहुंच सकी। दो साल पहले की यूनिफार्म को कई स्कूलों में पिछले साल वितरण शुरू किया, लेकिन वह भी सभी स्कूलों में नहीं पहुंच सकी। इसके राज्य शिक्षा केंद्र ने कुछ जिलों में ड्रेस की राशि विद्यार्थियों के खातों में डालने व कुछ को ड्रेस वितरित करने के दिशा-निर्देश जारी किए। लेकिन सत्र 2023-24 की ड्रेस वितरण का कार्यक्रम सत्र समाप्ति के बाद भी नहीं हो पाया है। जबकि अब स्कूलों का नवीन शैक्षणिक सत्र 2024- 25 पहली अप्रैल से शुरू हो चुका है।
नए दिशा-निर्देश जारी
राज्य शिक्षा केंद्र की अपर मिशन संचालक आर उमा माहेश्वरी ने ड्रेस वितरण को लेकर नवीन दिशा-निर्देश दिए है। जारी निर्देशों में कहा है कि राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन द्वारा सत्र 2023-24 के लिए अलीराजपुर, अनूपपुर, बडवानी, बैतूल, भिड, छतरपुर, छिंदवाड़ा, नर्मदापुरम, खंडवा, मंडला, पन्ना, रायसेन, रतलाम, रीवा, सागर, सतना, सिवनी, शहडोल, श्योपुर, शिवपुरी, सीची एवं सिंगरौली कुल 22 जिलों के ग्रामीण क्षेत्र की शालाओं में गणवेश प्रदाय की कार्यवाही की जा रही है। इन जिलों के स्कूलों के विद्यार्थियों का भौतिक सत्यापन किया जाना है। इसके अलावा 30 जिलों में राशि प्रदाय करने के समय कुछ छात्रों या पालकों के खाते में त्रृटि होने के कारण उनके खातों में राशि ट्रांसफर नहीं की जा सकी। अत: शालावार समीक्षा करते हुए गणवेश की राशि प्राप्त नहीं होने वाले छात्रों या पालकों के खातों को अपडेट किया जाए। यह कार्यवाही तीस जून तक पूर्ण करना होगी। गौरतलब है कि राज्य शिक्षा केंद्र ने साल 2020 में यूनिफार्म सिलाई का काम ग्रामीण एवं पंचायत विभाग के माध्यम से स्वंय सेवी संस्थानों को दिया गया था। नतीजा यह रहा कि सत्र बीतने के बाद मार्च 2021 में में स्कूलों में यूनिफार्म पहुंच सकी थी। कोरोना के कारण स्कूल बंद होने के कारण शिक्षकों को घर- -घर जाकर यूनिफार्म पहुंचाना पड़ी। बच्चों का सही नाप न होने के कारण साइज भी छोटा पड़ गया था। वही सिलाई थी ठीक नहीं थी। इसके बाद 2021 में कोरोना के कारण स्कूल बंद थे, 2022 की यूनिफार्म 2023 में पहुंचाना शुरू की। लेकिन वर्ष 2024 के जून माह तक भी कई बच्चों को ड्रेस नहीं मिली है। वहीं इस साल सत्र 2024-25 में ड्रेस लेकर फिलहाल कोई दिशा-निर्देश नहीं है।
390 करोड़ खर्च फिर भी नहीं मिल पाई ड्रेस
जानकारी के अनुसार सरकारी स्कूलों में 390 करोड़ खर्च करने के बाद भी पिछले साल की सभी 66 लाख विद्यार्थियों को यूनिफार्म या उसकी राशि नहीं मिल पाई है। स्कूलों में विद्यार्थियों को बीते पांच सालों से यूनिफार्म के लिए परेशान होना पड़ रहा है। स्कूलों में पिछले दो साल से ड्रेस वितरण का कार्यक्रम चल रहा है। वह भी पूरा नहीं हुआ है। इससे सरकारी स्कूलों में विद्यार्थी रंग-बिरंगे कपड़ों में ही स्कूल जाने के लिए मजबूर हैं। अब अपर मिशन संचालक राज्य शिक्षा केंद्र ने विद्यार्थियों को खातों में गड़बड़ी बताते हुए उसमें सुधार करने के निर्देश दिए हैं। गौरतलब है कि सरकारी स्कूलों में कक्षा एक से आठवीं तक पढ़ने वाले विद्यार्थियों को सरकार द्वारा यूनिफार्म दी जाती है। इन स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों की संख्या 66 लाख के करीब है। हर बच्चे को दो जोडी यूनिफार्म या राशि दी जाती है। जिस पर प्रति छात्र 600 रुपए खर्च किए जाते हैं। ऐसे में इन बच्चों की यूनिफार्म पर हर साल लगभग 390 करोड़ रुपए खर्च किए जाते हैं। बच्चों को यूनिफॉर्म देने की जिम्मेदारी राज्य शिक्षा केंद्र (आरएसके) की है। सरकार के निर्णय के बाद आरएसके ने यह काम आजीविका मिशन के माध्यम से स्व-सहायता समूह को दिया था। फिलहाल अब आजीविका मिशन के समय पर ड्रेस नहीं देने व घटिया क्वालिटी होने के कारण राशि विद्यार्थियों के खाते में डाली जा रही है।