यस एमएलए: समस्याओं के बीच भाजपा की मजबूत स्थिति

राजेंद्र शुक्ल

भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। मध्यप्रदेश में अब विधानसभा चुनाव होने में महज कुछ ही महीने बाकी है। सभी नेता अपने-अपने क्षेत्रों में सक्रिय हो गए हैं। इस चुनावी साल में विधायकों के प्रदर्शन और क्षेत्र में हुए विकास कार्यों का आंकलन शुरू हो गया है। प्रदेश में रीवा विधानसभा सीट ऐसी है, जहां 20 साल से भाजपा का कब्जा है। वर्तमान में राजेंद्र शुक्ल यहां से विधायक हैं। तमाम तरह की समस्याओं के बावजूद क्षेत्र में अभी भी भाजपा की स्थिति मजबूत नजर आ रही है। रीवा विधानसभा के मतदाताओं की संख्या की बात करें तो निर्वाचन आयोग की ताजा आंकड़ों को मुताबिक यहां 3 लाख 10 हजार के पार हैं। जिसमें एक लाख 49 हजार महिला और 1 लाख 61 हजार पुरुष मतदाता है। रीवा विस सीट पर मुद्दों की कोई कमी नहीं है। बिजली, पानी समेत कई ऐसे मुद्दें है, जिससे आम नागरिकों को दो-चार होना पड़ता है। जब हमने लोगों से बात की तो विधायक और विकास को लेकर मिलाजुला जवाब मिला। मतदाताओं का कहना है कि जिस तरह से यहां विधायक का एजेंडा है। उसके हिसाब से यहां कोई काम नहीं हुआ। विकास की बात करें तो यहां विकास की सख्त जरुरत है। एक मतदाता का कहना है कि रीवा अपने आप में एक बड़ा नाम है और अपने नाम के अनुसार विकास कर रहा है। इसमें किसी जनप्रतिनिधि का कोई हिस्सा नहीं है। वन्य जीव, प्राकर्तिक सुंदरता के साथ इस जिले का कुछ इतिहास में भी योगदान है, जिसका उदाहरण यहां मौजूद किला है। प्रदेश का एकमात्र सैनिक स्कूल भी रीवा शहर में है। लेकिन आज भी जिला मुख्यालय की इस सीट पर आज भी कई समस्याएं हैं, जिनका निदान अभी तक नहीं हो पाया है। जबकि इस सीट पर 2002 से भाजपा का कब्जा है, जो अब तक बरकरार है फिर भी रीवा शहर में जाम के झाम से कराह रहा है वहीं, नालियों कि सफाई, टूटे रोड, अवारा गोवंश का सडक़ों पर घूमना बड़ी समस्याएं है। इस सीट पर कांग्रेस से कविता पांडे और अभय मिश्रा दावेदार हैं।
क्षेत्र में पलायन सबसे बड़ी समस्या
रीवा विधानसभा क्षेत्र में बड़ी संख्या में लोग रोजगार के लिए पलायन करने को मजबूर हैं। शहरी ही नहीं, ग्रामीण क्षेत्र में भी नशीली दवाओं का उपयोग इतना बढ़ गया है कि लोगों ने इसे कारोबार बना लिया है। रीवा शहर के विनोद दुबे कहते हैं कि जन्म से लेकर अंतिम समय तक का खर्च सरकार उठा रही है। गरीब- गुरबों ने कभी खुद के पक्के मकान का सपना नहीं देखा था, आज गर्मी के मौसम में वे स्वयं की छत (पीएम आवास) पर सो रहे हैं। स्थानीय नेता कौन है, इससे ज्यादा मतलब नहीं, वोटर तो मोदी- शिवराज को जानता है। पृथक विंध्य प्रदेश की मांग पर लोगों ने कहा कि रीवा मध्य प्रदेश का अभिन्न अंग है। बात पृथक राज्य की नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार, विकास व रोजगार की है, वहीं अधिवक्ता बसंत यादव पृथक विंध्य प्रदेश की मांग से सहमत दिखे। पीटीएस तिराहा पर जब चाय की चुस्की ले रहे कुछ लोगों से चर्चा की गई तो नशाखोरी, सरकारी कामकाज में भ्रष्टाचार व बेरोजगारी पर उनका गुस्सा फूट पड़ा। श्रीनिवास तिवारी, अवध बिहारी द्विवेदी, मयंकधर द्विवेदी, दिनेंद्र कुमार दुबे, प्रभात गौतम और अखिलेश शर्मा ने कहा कि बेरोजगारी बढ़ी है, जिसके कारण अपराध बढ़ रहे हैं। नशे के रूप में कफ सीरप, इंजेक्शन व नशे की गोलियां गांव-गांव पहुंचाई जा रही हैं। अब तो बच्चे भी कफ सीरप पीने लगे हैं। अखिलेश सिंह ने कहा कि विकास जैसा पहले था, वैसा ही अब है। कोई खास बदलाव नहीं हुआ है। युवा अब भी बेरोजगारी का दंश झेल रहा है, तब भी झेलता था।
जातिगत समीकरण
रीवा में 59 प्रतिशत सामान्य मतदाता, जिसमें 38 फीसदी ब्राह्मण, 10 फीसदी राजपूत और 11 फीसदी अन्य,18फीसदी ओबीसी,11 फीसदी अजा व 6 फीसदी अजजा।
राजनीतिक मिजाज
2003 से पहले तक रीवा कांग्रेस के किसी अभेद किले से कम नहीं था। लेकिन 2003 में हुए चुनाव के बाद से यहां लगातार बीजेपी ही जीती। पूर्व मंत्री व वर्तमान विधायक राजेंद्र शुक्ल यहां से लगातार 5 बार विधायक चुने गए। एक तरह से इसे अब बीजेपी का गढ़ कहा जा सकता है। 2003 के चुनाव के बाद से यहा कांग्रेस का सफाया हुआ है। बीजेपी की टिकट पर राजेंद्र शुक्ल यहां से विधायक चुने गए जो वर्तमान में है। इस चुनाव में रीवा सीट पर बीजेपी के राजेंद्र शुक्ल ने बीएसपी उम्मीदवार कृष्ण कुमार गुप्ता पर एकतरफा जीत दर्ज करते हुए करीब 37 हजार वोटों से चुनाव जीता था। बीएसपी को बीजेपी से आधे वोट भी हासिल नहीं हो पाए और दोनों दलों के बीच 30 फीसदी वोटों का अंतर रहा। कांग्रेस 17 फीसदी वोटों के साथ तीसरे पायदान पर रही। साल 2008 के चुनाव में बीजेपी के राजेंद्र शुक्ल का मुकाबला बीएसपी के मुजीब खान से था। जो करीब 26 हजार वोटों से चुनाव हार गए। राजेंद्र शुक्ल ने इस चुनाव में कांग्रेस, सीपीआई और बीएसपी के उम्मीदवारों को शिकस्त दी।
अपने-अपने दावे
क्षेत्र में विकास को लेकर अपने -अपने दावें हैं। विधायक राजेंद्र शुक्ल का कहना है कि जिस तेजी से रीवा शहर से लेकर समूचे जिले का विकास हुआ है वह अभूतपूर्व है। यहां पर्यटन, मेडिकल व औद्योगिक क्षेत्र में निवेश, सडक़ों का जाल, फ्लायओवर, रीवा-सीधी टनल, रीवा अल्ट्रा मेगा सौर, ऊर्जा परियोजना समेत अन्य क्षेत्रों में बेहतर कार्य हुआ है। एयरपोर्ट निर्माण से कनेक्टिविटी बढ़ेगी। नहरों का जाल बिछाया गया है। विधायक राजेंद्र शुक्ल का दावा है कि विधानसभा कार्यवाही में उनकी शत-प्रतिशत उपस्थिति रही। वे विधानसभा में 95 से ज्यादा सवाल उठा चुके हैं। विधायक निधि का सर्वाधिक उपयोग क्षेत्र की सडक़ों के निर्माण व प्रकाश व्यवस्था पर खर्च किया। पात्र लोगों को स्वेच्छानुदान की राशि वितरित की गई। वहीं कांग्रेस नेता अभय मिश्रा का कहना है कि रीवा को कांक्रीट का जंगल बनाया जा रहा है। इससे विकास नहीं होता। महंगाई, बेरोजगारी से राहत व स्वास्थ्य सुविधाएं देने में विधायक नाकाम साबित हुए हैं। यहां सरकारी जमीन की लूट हुई है। खुद का विकास किया है। दिखाने के लिए ढिंढोरा पीटा जा रहा है।

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