टाइपिंग घोटाले के आरोपियों पर एसटीएफ मेहरबान

टाइपिंग घोटाले

10 साल में केवल 180 आरोपियों के खिलाफ ही चालान पेश

भोपाल/विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। करीब 10 साल पहले लोक शिक्षण संचालनालय (डीपीआई) में हुए टाइपिंग घोटाले के आरोपी आज भी खुलेआम घुम रहे हैं। शुरुआती जांच में तकरीबन सात हजार गुनाहगार सामने आए थे। उसके बाद लगभग तीन हजार संदेहियों से मामले में पूछताछ की गई थी और उनमें से 2947 को नामजद आरोपी बनाया गया था। लेकिन अभी तक केवल 180 आरोपियों के खिलाफ ही चालान पेश किया जा सका है। बताया जा रहा है की एसटीएफ की मेहरबानी के कारण बाकी आरोपी अभी तक बचे हुए हैं। मप्र में टाइपिंग का बड़ा घोटाला साल 2013 में पकड़ा गया था। शुरुआती जांच के बाद एसटीएफ ने 11 अक्टूबर 2013 को इस मामले में प्रकरण दर्ज किया था। शुरुआती जांच में तकरीबन सात हजार गुनाहगार सामने आए थे। उसके बाद लगभग तीन हजार संदेहियों से मामले में पूछताछ की गई थी और उनमें से 2947 को नामजद आरोपी बनाया गया था। इनमें डीपीआई के अफसर भी शामिल थे। अफसरों को गिरफ्तार किया गया था। गिरफ्तारी के कुछ दिनों बाद उन्हें जमानत मिल गई थी। मामले में जिन्हें आरोपी बनाया गया था, उनके परीक्षा परिणाम रद्द कर दिए गए थे। बहुत सारे आरोपी ऐसे हैं, जिन्हें अग्रिम जमानत मिल गई थी। गुनाह करने के बावजूद वे दस सालों से खुलेआम घूम रहे हैं, क्योंकि उनके खिलाफ चालान पेश नहीं किया जा रहा है।
आरोपी बन गए अफसर
आरोप लगाया जा रहा है कि सरकारी पदों पर बैठे आरोपी अफसरों से सिर्फ कागजों पर ही पूछताछ की जा रही है। डीपीआई में किए गए टाइपिंग घोटाले के आरोपियों पर मप्र की स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) खासा मेहरबान है। मामले में एफआईआर हुए तकरीबन 10 साल हो गए हैं, जांच एजेंसी ने 2947 को नामजद आरोपी बनाया था, लेकिन अब तक चालान महज 180 आरोपियों के खिलाफ पेश हो पाया है। मामले के आरोपी डीएसपी, एसआई और ट्रेजरी अफसर तक बन गए हैं, लेकिन जांच एजेंसी उन पर हाथ डालने से कतरा रही है। सरकारी पदों पर बैठने वाले आरोपी अफसरों से सिर्फ कागजों में पूछताछ की जा रही है। इससे घोटाले की जांच करने वाली एजेंसी की कार्रवाई का अंदाजा  लगाया जा सकता है।
सरकारी नौकरी मिलने वालों पर मेहरबानी
जानकारों का कहना है कि जांच करने वाले अधिकारी उन आरोपियों पर खास तौर पर मेहरबान हैं, जिन्हें सरकारी नौकरी मिल गई है। टाइपिंग परीक्षा पास करने और फर्जी प्रमाण पत्र हासिल करने के इतर उनमें से कई उम्मीदवार अपनी योग्यता से सरकारी सेवा में आ गए हैं। उनमें एक डीएसपी, दो ट्रेजरी अफसर, कई सूबेदार थानेदार और बहुत सारे लिपिक, सिपाही और पटवारी के पद पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। ऐसा नहीं है कि एसटीएफ की नजर ऐसे आरोपियों पर नहीं है। उन पर पूरी नजर है और उन्हें समय-समय पर पूछताछ के लिए भी बुलाया जाता है। बस! जांच एजेंसी उनके खिलाफ चालान पेश नहीं कर उन पर उपकार कर रही है। तकरीबन यही स्थिति टाइपिंग संचालकों और परीक्षा केंद्र के संचालकों के साथ है। शुरुआत में कुछ टाइपिंग संचालकों और परीक्षा, केंद्र के संचालकों को गिरफ्तार किया गया था, लेकिन अब उनकी गिरफ्तारी नहीं हो रही है।
11 फरवरी 2022 को आखिरी चालान
अधिकारी-कर्मचारी निलंबन से बचे रहें और घोटाला फिर से चर्चा में नहीं आए, इसके लिए भी तरह-तरह के हथकंडे अपनाए जा रहे हैं। आरोपियों की मंशा भी यही है कि उनके खिलाफ चालान पेश नहीं किया जाए। इस मामले की जांच सिर्फ छात्रों तक सीमित रह गई है। रसूखदार माने जाने वाले आरोपियों पर तो जांच एजेंसी हाथ नहीं डाल रही है। एसटीएफ ने 11 फरवरी 2022 को आखिरी बार इस मामले में अदालत में चालान पेश किया था। उसके बाद से अब तक एक भी आरोपी के खिलाफ चालान पेश नहीं किया गया है।

Related Articles