
– मंडी और निराश्रित टैक्स की मार
– मंडी और निराश्रित टैक्स की मार
भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में मंडी और निराश्रित टैक्स की मार से प्रदेश की दाल मिलों पर खतरा मंडराने लगा है। इसकी वजह यह है प्रदेश में दालें महंगी होने के कारण व्यापारी छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र का रूख कर रहे हैं। प्रदेश की मिलों में दाल बनाने दूसरे राज्यों से मंगवाए जाने वाले कच्चे माल पर लगने वाले मंडी टैक्स ने प्रदेश के मिल मालिकों को बाजार की प्रतिस्पर्धा में टिकना मुश्किल कर दिया है। ऐसे में प्रदेश की दाल मिलें बंद होने की कगार पर पहुंच गई है। अगर सरकार ने मंडी टैक्स में कमी नहीं की तो प्रदेश में दाल का व्यापार भी प्रभावित हो रहा है। जानकारी के अनुसार मप्र में कच्चा माल मंगवाने पर मंडी और निराश्रित टैक्स 1.70 प्रतिशत देना पड़ रहा है। छत्तीसगढ़ में यह 0.5 प्रतिशत है। महाराष्ट्र में तो बिल्कुल नहीं है। इस टैक्स से दाल की कीमत बढ़ी तो थोक व्यापारियों ने छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र का रुख किया। असर यह हुआ कि प्रदेश की दाल मिलें बंद होने के कगार पर पहुंच गई हैं। दरअसल प्रदेश में दाल के लिए कच्चा माल मंगवाने पर तो टैक्स लगता है, लेकिन दूसरे राज्यों से दाल मंगवाने पर कोई टैक्स नहीं है। नतीजतन दाल बिक्री के डीलर बढ़ गए और मिल बंद होने के कगार पर पहुंचने से कुशल श्रमिक और मजदूर बेरोजगारी के कगार पहुंच गए।
2018 में टैक्स में दी गई थी छूट
दाल मिल एसोसिएशन के पदाधिकारियों के अनुसार 2018 में मप्र विधानसभा चुनाव से पहले टैक्स में छूट दी गई थी। अवधि अगस्त 2019 में समाप्त होने के बाद से दोबारा नहीं बढ़ाई गई। दाल मिल मालिक इसके लिए 30 माह से मांग कर रहे हैं, लेकिन जिम्मेदारों ने सुध नहीं ली। 1994 से अब तक मंडी टैक्स में छूट के लिए 11 बार आदेश जारी हुआ। कई बार पांच साल के लिए तो कई बार तीन साल और तीन महीने के लिए। जनवरी 2017 में छूट की अवधि समाप्त होने के बाद 20 माह तक छूट नहीं मिली। विधानसभा चुनाव से पहले दी गई छूट के अगस्त 2019 में समाप्त होने के बाद से फिर अब तक नहीं मिली।
दाल मिलर कर रहे पलायन
राजधानी भोपाल और आसपास के क्षेत्रों में भी दाल मिलों की स्थिति काफी खराब है। एक दशक पहले 30 से ज्यादा मिलें थीं जो मुश्किल से पांच बची हैं, वे भी आर्थिक संकट का सामना कर रही हैं। भोपाल आॅयल सीड्स ग्रेन मर्चेन्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष हरीश ज्ञानचंदानी के अनुसार सरकार की उपेक्षा के चलते दाल मिलर पलायन कर रहे हैं। बाहर से खड़े अनाज के बजाय दाल भेजी जा रही है। दाल मिल एसोसिएशन के पदाधिकारियों के अनुसार कटनी में मिलें इसलिए बंद हो गई हैं कि मंडी टैक्स से दाल की कीमत बढ़ने के कारण बाजार में टिक नहीं पा रहे। जो मिल चल रहीं हैं तो मजबूरी में, क्योंकि बंद होने पर बैंक लोन कैसे चुकेगा। मंडी टैक्स में छूट की कई बार मांग कर चुके हैं।
प्रदेश में दाल मिल उद्योग संकट में
एक क्विंटल दाल के कच्चे माल में शुद्ध दाल लगभग 70 किलो निकलती है। मंडी टैक्स के कारण मप्र की दाल प्रति क्विंटल 190 से 200 रुपए तक महंगी हो जाती है। इस कारण व्यापारी दूसरे राज्यों का रुख कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ के भाटापारा व बिलासपुर सहित अन्य स्थानों पर नई दाल मिल स्थापित हो रही हैं। महाराष्ट्र के ज्यादा दाल मिल वाले हिंगनघाट में भी यही स्थिति है। मध्यप्रदेश के इंदौर और कटनी में दाल मिल उद्योग संकट में है। दाल के बड़े उपभोक्ता राज्य उत्तरप्रदेश, झारखंड व पश्चिम बंगाल के थोक व्यापारी छत्तीसगढ़ का रुख कर रहे हैं। ये कभी मप्र से दाल लेते थे। कटनी के पड़ोसी जिले उमरिया तक छत्तीसगढ़ से दाल आ रही है।