‘अपनों’ को महत्व नहीं देता प्रदेश का संस्कृति विभाग

संस्कृति विभाग

प्रदेश में दूसरे राज्यों के कलाकारों-साहित्यकारों पर दिल खोलकर बरसाई जाती है मेहरबानी…

भोपाल/विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र की भूमि भारत भू की वह भूमि है, जिसने कभी अपनी जमीन पर कालीदास, भवभूति,  तानसेन जैसे महान साहित्यकार-कलाकारों को बनाया तो कभी इस भूमि से उस्ताद अलाउद्दीन खां, कृष्ण राव पंडित, उस्ताद आमिर खां, डी. जे. जोशी, डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर, कुमार गंधर्व और अब्दुल लतीफ खान, सैयद हैदर रजा जैसे तमाम गायक एवं कला संस्कृति के विद्वान जन्में। इन्होंने न केवल देशभर में बल्कि भारतीय कला-संस्कृति का लोहा पूरी दुनिया से मनवाने में सफलता प्राप्त की, इनके इस प्रयासों से मप्र की कला-संस्कृति की समृद्ध परंपरा के मामले में जो छवि बनी, आज भी उसे राज्य यहां के कलाकारों और साहित्यकारों ने कायम रखा है। लेकिन विडंबना यह है कि मप्र का संस्कृति विभाग प्रदेश में अपने कलाकारों और साहित्यकारों को दरकिनार कर दूसरे राज्यों के कलाकारों-साहित्यकारों पर दिल खोलकर मेहरबानी बरसा रहा है। गौरतलब है कि प्रदेश में राजधानी से लेकर जिला स्तर तक सरकारी आयोजन-समारोह खूब होते हैं, लेकिन इनमें स्थानीय कलाकारों को साल में एक बार प्रस्तुति का अवसर मिल जाए तो बड़ी बात है। कलाकारों और साहित्यकारों का आरोप है कि संस्कृति विभाग के कार्यक्रमों में प्रस्तुति पर उन्हें औनी-पौनी सम्मान निधि मिलती है, जबकि दूसरे राज्यों से बुलाए गए आर्टिस्ट पर दिल खोलकर मेहरबानी बरसाई जाती है। जैसे, खजुराहो व तानसेन समारोह में दीगर कलाकारों में से प्रत्येक को 2 से 4 लाख रुपए तक मानदेय मिलता है, लेकिन प्रांतीय कलाकारों को 30 से 40 हजार रुपए देकर इतिश्री कर ली जाती है।
भेदभाव को लेकर आहत हैं कलाकार
अपने ही प्रदेश में संस्कृति विभाग द्वारा किए गए भेदभाव से कलाकार आहत हैं।  ग्वालियर घराना के गायक विजय सप्रे धुपद व ख्याल विधा पर अधिकार रखते हैं। उन्होंने 8 वर्ष की उम्र में सीखना शुरू किया। ग्वालियर के मशहूर पं. राम मराठे के शिष्य बने। भोपाल में उस्ताद जिया फरीदुद्दीन डागर से धुपद की बारीकियां सीखीं। डीडी भारती के लिए में काम किया। सप्रे का कहना है कि संस्कृति विभाग की ओर से एक अक्टूबर को हुए शक्ति पर्व समारोह में मुझे 25 हजार की निधि दी गई, जबकि उसी आयोजन में आए मेरे समतुल्य गायकों को अधिक राशि मिली। वर्ष 2017 में हुए तानसेन समारोह में मुझे 29 हजार की सम्मान निधि दी, जबकि पुणे से बुलाए गए धुपद गायक को पांच गुना राशि दी थी। वहीं रायसेन के बरेली निवासी मो. साजिद अंसारी वरिष्ठ शायर हैं। इनकी 40 रचनाएं पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई, लेकिन उनका संकलन कर किताब की शक्ल नहीं दे पाए।       कई सालों से आकाशवाणी दूरदर्शन के धारावाहिकों जागरूकता संबंधी श्रृंखलाओं के लिए गीत लिखते आ रहे हैं। बीमारियों से परेशान अंसारी बताते हैं, जीवन संघर्ष में गुजरा है। 1975 से 1983 तक ऑटो चलाया। 2008 में पत्नी चल बसीं।  वर्ष 2010 में दूसरी शादी की, पर सात वर्ष बाद तलाक हो गया। अब समस्या यह है कि सरकारी पेंशन के 1500 रुपए में जीवन की गाड़ी खींचनी पड़ रही है। दवाइयां लें या पेट भरें। अवसर भी नहीं मिलते हैं।
संस्कृति विभाग में भर्राशाही
आरोप है कि संस्कृति विभाग अपने कर्तव्य का ठीक से पालन नहीं कर पा रहा है। संस्कृति विभाग में हर तीन महीने में एक बार वृद्ध कलाकार पेंशन कमेटी की मीटिंग होनी चाहिए, लेकिन एक वर्ष से मीटिंग नहीं हुई। उसके पहले कोरोना काल के दरमियान भी मीटिंग नहीं हो पाई। इस तरह तीन साल के दरमियान महज एक बार पिछले साल नवंबर 2021 में बैठक हो पाई। कलाकार- साहित्यकर्मी और उनके परिजनों के लिए चिकित्सा सहायता का प्रावधान भी है। पंजीबद्ध कलाकारों को सालभर में एक बार कुल 5000 रुपए मिलते हैं, जिसे बढ़ाने की मांग लंबे समय से उठती आ रही है, लेकिन इस मामले में अब तक कुछ भी नहीं हो सका है। संस्कृति विभाग के पास 300 से अधिक पेंशनधारी कलाकारों और साहित्यकारों की जो सूचियां हैं, उनका प्रमाणीकरण वर्षों से नहीं हुआ।  पिछले वर्ष वृद्ध कलाकार पेंशन कमेटी की बैठक में मांग उठी थी कि पेंशनर्स की सूची को अद्यतन करने का सिस्टम बनाया जाए।
 शिखर सम्मान भी सवालों में
अक्सर चर्चा में बने रहने वाले चर्चित शायर मंजर भोपाली ने अब सरकार के शिखर सम्मान पर सवाल उठाए हैं। मामले की शिकायत राज्यपाल और मुख्यमंत्री तक की गई है। मंजर भोपाली ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखकर संस्कृति विभाग के शिखर सम्मेलन वितरण में अनियमितता की जांच कराने की मांग की है। उन्होंने पत्र में लिखा कि वर्तमान में संस्कृति विभाग ने शिखर सम्मान दिए जाने की घोषणा की है। इसके अंतर्गत सम्मान प्राप्त करने वालों का चयन कर लिया गया है। उन्होंने आगे लिखा कि विश्वस्त सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि उक्त नामों के चयन में गंभीर अनियमितताएं बरती गई हैं। वास्तविक शिखर सम्मान प्राप्त करने वाले को सम्मान प्रदान न करते हुए मात्र अपने चहेते को शिखर सम्मान के नाम पर सूची में शामिल किया गया।

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