स्मार्ट सिटी का कारनामा: अनुपयोगी कामों पर फूंक दिए सैकड़ों अरब रुपए

भूपेन्द्र सिंह

नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेन्द्र सिंह अत्यधिक नाराज

भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। राजधानी में स्मार्ट सिटी बनाने का जिम्मा सम्हाल रहे अफसरों ने इसे अपना चारागाह बना लिया है। हालात यह हैं कि अब तक सैकड़ों अरब रुपए ऐसे कामों पर फूंक दिए गए हैं , जिनका कोई उपयोग ही नहीं है। यही वजह है कि अब तक राजधानी होने के बाद भी न तो स्मार्ट सिटी का ही काम पूरा हो सका है और न ही लोगों को स्मार्ट सिटी के अनुकूल सुविधाओं का अहसास हो पा रहा है।  अब इस मामले में प्रदेश के शहरी विकास मंत्री भूपेन्द्र सिंह ने  बेहद सख्त रुख अपना लिया है।  मंत्री द्वारा अब न केवल स्मार्ट सिटी के कामों की लगातार समीक्षा की जा रही है , बल्कि कई अनुपयोगी योजनाओं तक को बंद करा दिया गया है। वे इसके कामकाज से बेहद खफा भी बने हुए हैं। दरअसल यह अफसर इतने मदमस्त हैं कि कई योजनाओं को लेकर पूर्व में अनेक बार उच्च स्तर से आपत्ति जताने का भी कोई फर्क नहीं पड़ा। हद तो यह हो गई कि यह अफसरान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के पहले नगरीय विकास मंत्री भूपेंद्र सिंह की आपत्ती को भी कोई तबज्जो तक नहीं दे रहे थे। अब इन दोनों ही नेताओं ने सख्ती दिखानी शुरू की तो  हड़कंप की स्थिति बन गई है।  स्मार्ट सिटी के नाम पर खर्च के मामले में प्रदेश भर में पहले स्थान पर चलने वाले भोपाल स्मार्ट सिटी कंपनी ने कई ऐसी योजनाओं को बनाया और उन पर काम किया जिनका आम आदमी से कोई न तो वास्ता है और न ही उनका कोई अन्य उपयोग। कंपनी मे पदस्थ अफसर सिर्फ ऐसी योजनाओं पर काम करते रहे जिससे उनकी जेबें भरती रहें या फिर अपने चहेतों को उपकृत किया जा सके। ऐसे कई काम तो अफसरों को बाद में सरकार की सख्ती के बाद बंद तक करने पड़े। हद तो यह हो गई स्मार्ट सिटी बनाने के नाम पर शहर की पुरानी हरियाली को नष्ट कर आवोहवा तक बिगाड़ दी गई। इसमें वे दो प्रोजेक्ट भी शामिल हैं, जिनका लोकार्पण तत्कालीन सीएम कमलनाथ के हाथों कराया गया था। गौरतलब है कि स्मार्ट सिटी में शामिल हर शहर को केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा दस अरब रुपए मंजूर किए  गए हैं। इसमें से भोपाल को साढ़े नौ अरब रुपए मिल चुके हैं, जिसमें से भोपाल में अब तक 939 करोड़ खर्च किया जा चुका है। यह राशि 75 प्रोजेक्ट पर खर्च की गई है। अब हालात यह हैं कि स्मार्ट सिटी का काम आधा अधूरा पड़ा है और कंपनी के पास पैसा ही नहीं बचा है। अब बचे हुए कामों को कराने के लिए कंपनी स्मार्ट सिटी के एरिया में उपलब्ध जमीनों को बेंच रही है।  

इस तरह के कामों पर की पैसों की बबार्दी
हद तो यह हो गई जब देश के साथ ही प्रदेश को डस्टबिन मुक्त बनाया जा रहा  था  , ऐसे में स्मार्ट सिटी के नाम पर भोपाल में ही करोड़ों रुपयों के 70 स्थानों पर 130 बिन लगा दिए गए थे। यही नहीं इनका दो साल पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ से लोकापर्ण तक करा दिया था। इनमें सेंसर लगे थे। बिन 80 फीसदी भरते ही सेंसर से एक मैसेज कमांड एंड कंट्रोल सेंटर भेज देता था। इसके बाद आकर सफाई अमला इनको साफ कर देता था। यह तब लगाए गए जब नगरीय विकास विभाग के वरिष्ठ अधिकारी आपत्ति जता चुके थे। उनका कहना था कि जब स्वच्छ भारत मिशन में शहरों को डस्टबिन मुक्त किया जा रहा है तो अंडरग्राउंड  स्माटर बिन लगाने का क्या औचित्य है। इस मामले में संचानालय स्तर से नए स्थानों पर बिन न लगाने के निर्देश तक देने पड़े, तब कहीं जाकर इस पर काम बंद किया गया। इसी तरह से सड़कों की सफाई के नाम पर तीन साल में दस करोड़ रुपए बर्बाद कर दिए गए। इसके तहत स्मार्ट स्वीपिंग मशीनों को किराए पर लिया गया था। इन किराए की मशीनों का भी तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ से  22 फरवरी, 2019 को लोकार्पण तक करा दिया गया था। स्मार्ट सिटी ने यह ठेका छह साल के लिए करीब 29 करोड़ रुपए में दिया था। खास बात यह है कि लाखों रुपए की मशीनों का किराया ही करोड़ों रुपयों में चुकाया गया। इनके किराए पर लेने की शुरूआत से ही सवाल खड़े हो रहे थे। इन मशीनों से रोजाना 200 किमी लंबी सड़कों की सफाई कर हर रोज चार टन धूल-मिट्टी उठाने का दावा किया गया था, जो हवा हवाई ही रहा।  

दो मंजिल बना कर छोड़ दिया टॉवर
स्मार्ट सिटी के नाम पर टीटी नगर के मॉडल स्कूल के पास आठ मंजिला टॉवर का निर्माण शुरू करने के बाद इसे आधा अधूरा छोड़ दिया गया है। इसका निर्माण 42 करोड़ रुपए की लागत से किया जा रहा था। इसमें 418 दुकानें और अन्य निर्माण किए जाने थे। मंत्री भूपेन्द्र सिंह की आपत्ती के बाद अब टॉवर का निर्माण रोक दिया गया। अब मौजूदा निर्माण के साथ ही प्लॉट बेचने के लिए स्मार्ट सिटी ने आॅफर बुलाए हैं।

बेकाम साइकिल ट्रेक पर कर दिए 5 करोड़ खर्च
हद तो यह हो गई की शहर से बाहर होशंगाबाद रोड पर 6 किमी लंबाई के एक साइकिल ट्रेक बनाने के नाम पर ही पांच करोड़ रुपए खर्च कर डाले गए। इसको लेकर दावा किया गया था कि इससे साइकिलिंग को बढ़ावा मिलेगा। इस ट्रेक का उपयोग लोगों द्वारा वाहनों की पार्किंग और कपड़ों को सुखाने के लिए किया जा रहा है। इसके अलावा उस पर आवारा मवेशी भी कब्जा किए रहते हैं। हद तो यह हो गई कि इस अनुपयोगी ट्रेक के रखरखाव पर हर साल लाखों रुपए खर्च किए जा रहे हैं। इसके बाद भी एक और नया साइकिल ट्रैक का निर्माण करवा लिया गया। इसी तरह से शहर में लोक निर्माण विभाग और नगर निगम द्वारा साइनेज बोर्ड लगाए जाने के बाद भी स्मार्ट सिटी की ओर से साइनेज बोर्ड लगाने की योजना शुरू कर दी गई। अब इस मामले में मुख्यमंत्री द्वारा यह कहते हुए संबंधित अफसरों को फटकार लगाई गई कि जब पहले से ही अन्य विभाग यह काम करते आ रहे हैं तो फिर स्मार्ट सिटी इसे क्यों कर रही है। दरअसल कांग्रेस सरकार के समय प्रदेश भर में साइनेज बोर्ड लगाने का काम एक निजी कंपनी को दिया गया था। भाजपा की सरकार बनने के बाद इस पर रोक लगा दी गई है।

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