बुआ सहित चार दिग्गज… भाजपा नेताओं पर भारी पड़ रहे श्रीमंत

भाजपा नेताओं

भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। ग्वालियर-चंबल अंचल में दो साल पहले तक जो भाजपा के नेता श्रीमंत से लेकर पार्टी के ही नेताओं पर हर मामले में भारी पड़ते थे, वे अब खुद अप्रभावी नजर आना शुरू हो गए हैं। इसकी वजह है कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आने वाले श्रीमंत का सत्ता के साकेत से लेकर संगठन तक में बढ़ता प्रभाव। इसकी वजह से ही वे अब अपनी बुआ से लेकर साथी केन्द्रीय मंत्री और ग्वालियर के सासंद तक पर भारी पड़ रहे हैं। अब इस अंचल में शासन व प्रशासन से लेकर कार्यकर्ता तक मुखर्जी भवन की जगह महल को तबज्जो देते दिखना शुरू हो गए हैं। हालात यह हो गए हैं कि जिन ग्वालियर के सांसद विवेक शेजवलकर के बगैर शहर में पत्ता भी नहीं खड़कता था, उन्हें भी अब खुद के महत्व के लिए अप्रत्यक्ष लड़ाई लड़नी पड़ रही है।
स्थानीय सांसद होने के बाद भी उन्हें अब स्थानीय प्रशासन ने महत्व देना बेहद कम कर दिया है। लगभग यही स्थिति पार्टी के गुना सांसद केपी सिंह की भी है। यह दोनों वे नेता हैं, जिनकी श्रीमंत के पार्टी में आने से पहले सत्ता से लेकर संगठन तक में जय जयकार हुआ करती थी। दरअसल प्रशासन व कार्यकर्ता भी आभा मंडल देखकर ही काम करते हैं, सो इन नेताओं के मामले में भी ऐसा ही हो रहा है। दो दशक तक जिस गुना संसदीय सीट पर अपराजेय रहे श्रीमंत को उनके ही गढ़ में उनके ही एक समर्थक केपी सिंह ने बीते लोकसभा चुनाव में बेहद सलीके से हार के रुप में जो पटकनी दी थी, उसे अब तक वे भूल नही सके है। इसके बाद से ही सिंह भाजपा संगठन में और अपनी ही सरकार में प्रभावशली बनकर तेजी से उभरे थे, लेकिन समय का पहिया ऐसा घूमा की श्रीमंत अब भाजपाई हो चुके हैं और उन पर भाजपा सरकार से लेकर संगठन तक मेहरबान बना हुआ है। यही वजह है कि उनका आभा मंडल एक बार फिर से पुराने शबाब पर है।
भाजपा संगठन ने पहले उन्हें  राज्य सभा सांसद बनाया और फिर केंद्रीय मंत्रिमंडल में नागरिक उड्डयन विभाग की कमान सौंप दी। इसके बाद तो श्रीमंत ने अचंल की अपने प्रभाव वाली दोनों लोकसभा सीट ग्वालियर और गुना में एक साथ सक्रियता दिखानी शुरू कर दी। उनकी सक्रियता ऐसी बनी हुई है कि अब तो स्थानीय सांसद विवेक शेजवलकर और गुना सांसद केपी सिंह का प्रभाव अस्ताचंल की ओर जाता दिखना शुरू हो गया है। यही नहीं इस अंचल में श्रीमंत के भाजपाई बनने से पहले केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की तूती बोला करती थी वे भी अब यहां से लगभग दूरी बनाने के लिए मजबूर होते दिखने लगे हैं। अब हालात यह हैं कि वे कभी कभार ही ग्वालियर की राजनीति में सक्रिय दिखते हैं।  अब इस अंचल में हालात यह हैं कि ग्वालियर व गुना संसदीय सीट के इलाकों में तमाम विकास की योजनाएं हों या फिर उनके क्रियान्वयन और उनसे जुड़ा श्रेय सभी पर श्रीमंत का कब्जा होता जा रहा है।
इस बीच दूसरे मंत्री और सांसद या तो किनारे कर दिए गए हैं या फिर वे खुद ही दूर हो गए हैं। इसकी वजह से श्रीमंत का अभामंडल स्वत: ही बढ़ता जा रहा है। कहा तो यह भी जा रहा है कि उनके आभामंडल के विस्तार में पार्टी हाईकमान और राज्य सरकार की भी बड़ी भूमिका है। दरअसल भाजपाई बनने के बाद श्रीमंत ने अपनी कार्यशैली के साथ ही व्यवहार में बेहद बड़ा परिवर्तन कर लिया है। इसकी झलक अब उनके दौरों में दिखनी शुरू हो गई है। इसका असर यह है कि अब इन नेताओं को उन अफसरों को जो कभी उनके पीछे हाथ जोड़कर खड़े रहते थे , उन्हें भी अपने कामों के लिए गुस्सा तक दिखाना पड़ रहा है। इनमें स्थानीय सांसद विवेक शेजवलकर से लेकर गुना सांसद सिंह तक शामिल हैं। बात यहीं समाप्त नहीं होती है, बल्कि इस मामले में उनकी बुआ और शिव कबीना की सदस्य यशोधरा राजे सिंधिया भी अब इससे अछूती नहीं हैं। उनके विधानसभा क्षेत्र शिवपुरी में भी प्रशासन श्रीमंत के ही इशारे पर चलता और रुकता दिखाई देने लगा है।
अब बदल चुके हैं शेजवलकर के लिए हालात
सांसद शेजवलकर को प्रदेश की राजनीति में एक सौम्य जन प्रतिनिधि के रूप में देख जाता है। उनकी किस्मत है कि वे नगर निगम से सीधे लोकसभा पहुंच गए। उनके पिता भी इसी सीट से सांसद रह चुके हैं। उन्हें महल यानि सिंधिया परिवार का बेहद करीबी माना जाता था। उनकी वजह से ही एक बार ज्योतिरादित्य सिंधिया के स्वर्गवासी पिता माधवराव सिंधिया को भाजपा ने ग्वालियर सीट पर वाकओव्हर तक भी दिया था। इसके बाद भी अब इस अगली पीढ़ी के इन दोनों ही नेताओं की पटरी जुदा होती क्यों दिख रही है, कोई नहीं समझ पा रहा है। पूरी तरह से संघ विचारधारा में बड़े हुए शेजवलकर के बारे में माना जाता है कि वे भले ही बाहर मुखर नहीं हों लेकिन वे बहुत चुप रहने वाले नेता भी नहीं हैं। वे सदन में कार्यवाही के समय शून्यकाल में अक्सर बोलते दिख जाते हैं। इसके बाद भी माना जा रहा है कि संगठन व उसके शीर्ष पर पहुंच के मामले में वे श्रीमंत से कमजोर हैं, यही वजह है कि वे उनके सामने ठहर नहीं पा रहे।
श्रीमंत ही करेंगे अब प्रतिनिधित्व  
श्रीमंत की सक्रियता से यह संकेत भी साफतौर पर मिलने लगे हैं कि अब ग्वालियर संसदीय सीट का प्रतिनिधित्व विवेक शेजवलकर की जगह महल द्वारा ही किया जाएगा। इसकी वजह से माना जा रहा है कि शैजवलकर की यह अंतिम पारी है। फिलहाल इसको लेकर कयास जरुर लगाए जा रहे हैं कि ग्वालियर से अब श्रीमंत खुद या फिर उनका बेटा में से कौन चुनाव लड़ेगा। इस तरह के कयासों की वजह है श्रीमंत के बेटे द्वारा बीते दिनों अचानक अपनी जन्मदिन का वृहद रुप से किया गया पहला आयोजन। फिलहाल श्रीमंत इन दिनों एक साथ दो संसदीय क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। दोनों ही संसदीय क्षेत्रों को इसका लाभ भी मिल रहा है , लेकिन स्थानीय सांसद और स्थानीय प्रशासन के बीच जरुर इससे टकराव की नौबत बनती दिखने लगी है। इसकी एक वजह यह भी है कि अब स्थानीय सांसद के हिस्से में सरकारी बैठकों की अध्यक्षता भी नहीं आ पा रही है।
मुखर्जी भवन से हो रही रौनक गायब
श्रीमंत के भापाई बनने के बाद अब ग्वालियर -चंबल अंचल की भाजपा की राजनीति मुखर्जी भवन की जगह महल के आसपास सिमटनी शुरू हो गई। मूल भाजपा कार्यकर्ता भी मानने लगे हैं कि पार्टी धीरे -धीरे मुखर्जी भवन से हटकर महल तक सिमटती जा रही है। इसकी वजह से अब भाजपा का संभागीय कार्यालय मुखर्जी भवन में इन दिनों वीरानी छाती जा रही है, जबकि पार्टी के सारे मेले महल के दरवाजे पर लगने शुरू हो चुके हैं। महल की अगवानी और विदाई के लिए जिले का ही नहीं बल्कि संभाग का पूरा प्रशासन चकरघिन्नी बना रहता है। इन हालातों की वजह से ही अब लोग धीरे-धीरे स्थानीय सांसदों को विस्मृत करने लगे हैं। लगभग यही हालात कमोवेश श्रीमंत के पिता माधवराव सिंधिया के समय भी रह चुके हैं। उस सयम वे कांग्रेस ‘एम’ में हुआ करते थे, जबकि अब भाजपा अघोषित रूप से भाजपा ‘जे’ नजर आने लगी है। खास बात यह है कि एक समय जब विवेक शेजवलकर महापौर थे , तब वे श्रीमंत का न केवल सम्मान करते थे , बल्कि उन्हें सहारा देते भी नजर आते थे।

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