अतिशेष शिक्षकों की नई पदस्थापना से दूर हो सकती है शिक्षकों की कमी

अतिशेष शिक्षकों
  • विभाग को दिखानी होगी सख्ती

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश के सैकड़ों सरकारी स्कूल एक तरफ शिक्षकों की बेहद कमी से जूझ रहे हैं , तो दर्जनों स्कूल ऐसे हैं, जिनमें स्वीकृत पदों की अपेक्षा अधिक शिक्षक पदस्थ हैं। अगर इन अधिक पदस्थ शिक्षकों को कमी वाले स्कूलों में पदस्थ कर दिया जाए , तो बहुत कुछ हद तक स्कूलों में शिक्षकों की कमी की समस्या से निजात पायी जा सकती है। जरूरत है तो बस विभाग द्वारा दृढ़ इच्छा शक्ति दिखाने की।
प्रदेश में इन दिनों सरकारी स्कूलों में अतिशेष शिक्षकों की संख्या लगभग 36 हजार से अधिक है। यही वे शिक्षक हैं, जिनका अपना राजनैतिक व प्रशासनिक रसूख है। यही वजह है कि न तो लंबे समय से कोई उन्हें हटाने की हिम्मत दिखा पाया है और न ही उन्हें मिलने वाले वेतन भत्तों के भुगतान में कोई दिक्कत आ रही है।  स्कूल शिक्षा विभाग के पोर्टल पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में अभी ऐसे 13 जिले हैं जहां पर अतिशेष शिक्षकों की संख्या एक हजार से अधिक हैं।, इनमें भोपाल और इंदौर जैसे शहर भी शामिल हैं। अगर शिक्षा के अधिकार की बात की जाए तो छात्रों और शिक्षकों का अनुपात 351 का होना चाहिए, यानी 35 छात्रों पर एक शिक्षक होना चाहिए। लेकिन प्रदेश में अधिकांश स्कूल इस मापदंड पर ही खरे नहीं उतर रहे हैं। अतिशेष शिक्षकों के मामले में  पहले स्थान पर सतना जिला है। सतना जिले में 2,877 स्कूलों में 14,508 पद शिक्षकों के स्वीकृत हैं, लेकिन जिले में 1513 शिक्षकों को अतिशेष माना गया है। इसके बाद सागर है, जहां 2655 स्कूलों में 1,446 अतिशेष शिक्षक हैं। इस सूची में तीसरे नंबर पर रीवा है, जहां 2983 स्कूलों में 1415 अतिशेष शिक्षक हैं। बालाघाट और इंदौर में भी अतिशेष शिक्षकों की संख्या अधिक है। बालाघाट में अतिशेष शिक्षकों की संख्या 1477 और इंदौर में 1399 है। इसी तरह से भोपाल में यह संख्या 1134 है।
एक शिक्षक के भरोसे
दमोह जिले में जबेरा ब्लॉक के एकीकृत माध्यमिक शाला हरदुआ मानगढ़ में 345 बच्चों की पढ़ाई एक शिक्षक के भरोसे है, वहीं पटी घांघरी प्राइमरी स्कूल में दो शिक्षक मिलकर 4 बच्चों को पढ़ा रहे हैं।
भोपाल में 1134 शिक्षक अतिशेष
भोपाल में 865 स्कूलों में 6,046 पद शिक्षकों के स्वीकृत हैं। जिनमें से 1,134 शिक्षकों को वर्तमान में अतिशेष हैं। इसके बाद भी भोपाल जिले में 41 प्राथमिक विद्यालय ऐसे हैं, जो एकल शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं। इसके उलट 442 स्कूल ऐसे हैं, जहां पर शिक्षकों की संख्या स्वीकृत पदों की अपेक्षा अधिक है। ऐसा ही एक स्कूल शहर के नेहरू नगर इलाके में है, जहां पर शिक्षक भी एक है और स्कूल का भवन भी बेहद खराब हाल में है। खास बात यह है कि इस स्कूल के एक मात्र शिक्षक भी अगले साल सेवानिवृत्त हो जाएंगे। इसी तरह से प्रेमपुरा के एक अन्य सरकारी स्कूल में महज दो ही शिक्षक हैं। अहम बात यह है कि इन शिक्षकों को ही सभी विषय पढ़ाने होते हैं।
क्यों बनी यह स्थिति
इसकी वजह है, शिक्षकों में ग्रामीण इलाकों के स्कूलों में पदस्थ होने को लेकर अरुचि। दरअसल, हर शिक्षक चाहता है कि वह शहरी इलाकों के स्कूलों में पदस्थ हो। इसकी वजह है शिक्षकों में अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा आधुनिक शिक्षण तकनीकों तक पहुंच और समग्र रूप से बेहतर जीवन जीने की स्थितियों जैसे कारणों के प्रति आकर्षित होना। मौजूदा समय में वे ही शिक्षक ग्रामीण इलाकों में अपनी पदस्थापना कराते हैं, जिनके सामने कोई मजबूरी होती है।

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