
- मप्र में प्रभाव नहीं दिखा पाई भारत जोड़ो यात्रा
राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से कांग्रेस को बड़ी उम्मीद है। लेकिन मप्र में यात्रा अपना उतना प्रभाव नहीं दिखा पाई, जितना दक्षिण के राज्यों के साथ महाराष्ट्र में देखने को मिली। दरअसल, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रियता राहुल गांधी की तपस्या पर भारी पड़ी है। राहुल गांधी की यात्रा में भले ही भीड़ उमड़ी, लेकिन वह केवल तमाशाबीन थी। इस बात को कांग्रेसी भी जानते हैं कि चुनाव में इस भीड़ को वोट में तब्दील नहीं किया जा सकता है।
गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम।
भोपाल (डीएनएन)। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा ने 7 सितंबर को तमिलनाडु में कन्याकुमारी से शुरू होकर केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र से होकर मप्र की धरती पर पांव रखा था। प्रदेश में यह यात्रा 12 दिनों तक चली। यात्रा के दौरान राहुल गांधी को देखने भीड़ उमड़ती रही। लेकिन मप्र से यात्रा के राजस्थान में प्रवेश होते ही कांग्रेस शिथिल पड़ गई है। उधर, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सक्रियता पहले से चार गुना बढ़ गई है। वे प्रदेशभर में दौरे कर रहे हैं। मुख्यमंत्री जहां सभाएं कर रहे हैं, वहां रिकार्ड भीड़ उमड़ रही है। यह इस बात का संकेत है कि मप्र में राहुल गांधी की यात्रा कोई विशेष असर नहीं छोड़ पाई है।
कांग्रेस ने पूरी तरह मन बना लिया है कि 2023 और 2024 के चुनावों में वह राहुल गांधी की तपस्या के दम पर लोकसभा चुनाव की इमारत बुलंद करने वाली है। यही नहीं राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से उत्साहित कांग्रेस ने रायपुर में होने वाले तीन दिवसीय पूर्ण अधिवेशन की जो रूपरेखा तैयार की है उसमें भी चुनावों को मजबूती से लड़े जाने को लेकर प्रमुखता से चर्चा किए जाने का खाका तैयार हुआ है। राहुल गांधी की चल रही भारत जोड़ो यात्रा के साथ कांग्रेस समानांतर तौर पर अपनी ऐसी रणनीति बना कर चल रही है जिससे 2023 में होने वाले विधानसभा और 2024 के होने वाले लोकसभा चुनावों में उसको बड़ी सफलता मिल सके। कांग्रेस से जुड़े एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में जिस तरीके से लोगों से जुड़ाव और समर्थन मिल रहा है वह अनुमान से कई गुना ज्यादा है। वह कहते हैं कि यही वजह है कि कांग्रेस जनों में एक नया उत्साह और उमंग बढ़ गई है। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से जुड़े एक वरिष्ठ नेता कहते हैं कि भारत जोड़ो यात्रा की सफलता राहुल गांधी की तपस्या और उनके समर्पण की वजह से मिल रही है। कांग्रेस से जुड़े सूत्रों का कहना है कि राहुल गांधी की इसी तपस्या को कांग्रेस चुनावों में अपना बड़ा हथियार बनाने वाली है। लेकिन सवाल उठ रहा है कि क्या कांग्रेस मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रियता का मुकाबला कर पाएगी।
भीड़ तो जुटी…मैनेजमेंट रहा खराब
कांग्रेस नेता राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा ने मध्यप्रदेश में 12 दिन में 382 किलोमीटर का रास्ता तय किया। अन्य राज्यों की तुलना में भले ही भीड़ जुटाने में कांग्रेस कामयाब रही हो, इंतजामों में प्रदर्शन औसत ही रहा। महाराष्ट्र को टीम राहुल ने ए-प्लस ग्रेड दिया था। जब बात मध्यप्रदेश की आई तो राहुल की टीम ने कोई ग्रेड ही नहीं दी। इसकी वजह यह है कि इंतजाम औसत ही रहे। टीम राहुल के पास जो फीडबैक पहुंचा है, उसके मुताबिक कांग्रेस के उन नेताओं ने ही पैसा खर्च किया, जिन्हें फिर से टिकट चाहिए। बड़े नेताओं ने इंतजामों के लिए जेब में हाथ डालने से परहेज ही रखा। राहुल गांधी की यात्रा का बड़ा हिस्सा मालवा-निमाड़ से गुजरा। यहां पर टेंट और भोजन का इंतजाम दो बड़े विधायकों को दिया गया था। कमलनाथ और दिग्विजय सिंह ने मध्य प्रदेश में यात्रा के इंतजामों पर सिर्फ निगरानी रखी। मध्यप्रदेश में यात्रा में भीड़ तो नेताओं ने जुटाई, लेकिन यात्रा के इंतजाम औसत रहे। यात्रा में कन्याकुमारी से चल रहे पैदल यात्रियों ने कहा कि महाराष्ट्र और अन्य राज्यों में यात्रा दिन में जहां रुकती थी, वहां बड़े डोम लगाए जाते थे। मध्यप्रदेश में ज्यादातर जगहों पर टेंट लगाए गए। उसमें भी पंखे, कूलर के इंतजाम नहीं के बराबर थे। आगर में तो कमलनाथ की पत्रकार वार्ता में ठीक से माइक का इंतजाम तक नहीं था। राहुल गांधी ने 23 नवंबर को जब मध्य प्रदेश की सीमा में प्रवेश किया था तब उन्होंनेे महाराष्ट्र कांग्रेस को यात्रा के इंतजाम के लिए ए-प्लस ग्रेड दिया था। मध्यप्रदेश से राजस्थान में यात्रा ने प्रवेश किया तो मध्यप्रदेश कांग्रेस के इंतजामों को कोई ग्रेड नहीं दिया गया। राजस्थान की पहली सभा में राहुल ने कमलनाथ पर चुटकी भी ली थी कि- कमलनाथ को मैने चैलेंज दिया था महाराष्ट्र से अच्छा स्वागत मध्यप्रदेश में होना चाहिए। तब नाथ ने मुझसे कहा था कि मेेरे पास स्पेशल टेक्निक है, मैं महाराष्ट्र को हरा दूंगा।
मप्र में 12 दिन यात्रा ने 24 जगहों पर विराम लिया। यहां टेंट और भोजन का इंतजाम विधायक संजय शुक्ला और विशाल पटेेल के जिम्मे था। राऊ में विधायक जीतू पटवारी ने स्वागत मार्ग पर पैसा खर्च किया। राजवाड़ा की सभा का इंतजाम शहर कांग्रेस के जिम्मे रहा। महू की सभा का खर्च पूर्व विधायक अंतर सिंह दरबार ने उठाया। उन्होंने भीड़ भी जुटाई। चिमनबाग पर हुए इवेंट का खर्च विवेक तन्खा और पूर्व विधायक सत्यनारायण पटेल ने उठाया। उज्जैन की सभा का जिम्मा सज्जन सिंह वर्मा और उज्जैन के कांग्रेस विधायकों को दिया गया था। सुसनेर की तरफ यात्रा पहुंची तो वहां विधायक जयवर्धन सिंह ने भीड़ जुटाई और अच्छा स्वागत किया। राहुल गांधी राजस्थान की सीमा में प्रवेश कर गए हैं और प्रदेश के सभी कांग्रेस नेता वापस लौट आए हैं। बताया जा रहा है कि अब यात्रा की समीक्षा और आगामी योजना के लिए कमलनाथ जल्द ही भोपाल में प्रमुख पदाधिकारियों की एक बैठक आयोजित करने जा रहे हैं। कांग्रेसी उत्साहित है कि राहुल गांधी की यात्रा प्रदेश में सफल रही, विशेषकर पूरे मालवा क्षेत्र में। हालांकि निमाड़ से मालवा में प्रवेश के बाद माना जा रहा था कि भाजपा अपने गढ़ में कोई बड़ा हमला कर सकती है, लेकिन भाजपा ने भी यात्रा को ज्यादा महत्व नहीं दिया।
सीएम मैदान में जाकर ले रहे एक्शन
मध्यप्रदेश की सरकार के मुखिया शिवराज सिंह चौहान बदले-बदले से नजर आ रहे हैं। सीधे, सरल और सहज दिखने वाले मुख्यमंत्री इन दिनों सख्त रुख अपनाए हुए हैं। बिना प्रोग्राम अचानक किसी भी जिले के किसी गांव में अचानक इंस्पेक्शन करने पहुंच रहे हैं। खामियां मिलने पर कभी मंच से तो कभी फील्ड इंस्पेक्शन के दौरान सीधे जिम्मेदारों पर एक्शन ले रहे हैं। सीएम के भाषण का अंदाज भी बदल गया है। मंच पर अब वह एक जगह ठहर कर नहीं, किसी मैनेजमेंट गुरु की तरह स्पीच दे रहे हैं। सीएम आजकल उनकी स्टाइल चेंज हो गई है। उन्होंने कहा, दो साल कोविड में निकल गए, तो ज्यादा जा नहीं पाए। अब मैदान में जाकर देख रहे हैं। बेहतर काम हो रहा है, उसके लिए पुरस्कृत कर रहे हैं। गड़बड़ अगर होती है, तो कार्रवाई होती है, अब ये भी तो जरूरी है। कांग्रेस के सीनियर लीडर और विधायक पीसी शर्मा ने सीएम के इस बदले अंदाज पर कहा, यही अच्छी बात है जो काम नहीं करें, उनको सबक सिखाना चाहिए। लेकिन, सीएम लेट हो गए, ये उन्हें पहले करना चाहिए था। अब चुनाव करीब आ गए। निश्चित तौर पर वे चुनाव की वजह से ऐसा कर रहे हैं। जब काम नहीं होते तो एक डर पैदा होता है …और जब डर पैदा होता है तो इस तरह के एक्शन होते हैं। सीएम के आदिवासी क्षेत्रों में दौरों पर शर्मा ने कहा, राहुल गांधी ने टंट्या मामा की समाधि पर जाकर मध्यप्रदेश के आदिवासी अंचल के सभी समीकरण बदल दिए हैं। प्रदेश ही नहीं पूरे देश में आदिवासियों का हक पहला है, कांग्रेस का हमेशा से स्टैंड यही रहा है। अब ग्रामीण जिन योजनाओं की शिकायत करते, सीएम उस योजना के जिम्मेदार अफसरों से सीधे सवाल पूछ लेते हैं। यहीं से सीएम ने कार्यक्रमों के दौरान लंबा चौड़ा भाषण देने के बजाए टू वे कम्युनिकेशन शुरू कर दिया। अब ग्रामीण जिन योजनाओं की शिकायत करते, सीएम उस योजना के जिम्मेदार अफसरों से सीधे सवाल पूछ लेते हैं। यहीं से सीएम ने कार्यक्रमों के दौरान लंबा चौड़ा भाषण देने के बजाए टू वे कम्युनिकेशन शुरू कर दिया।
चार महीने पहले सीएम शिवराज सिंह चौहान ने भोपाल से ही प्रदेशभर के जिलों में केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं की समीक्षा करने के लिए मॉर्निंग मीटिंग की शुरुआत की है। सुबह 6 से 7 बजे के बीच सीएम किसी एक जिले के कलेक्टर, एसपी सहित विभागों के प्रमुख अधिकारियों, प्रभारी मंत्रियों को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए जोडक़र समीक्षा करते हैं। सीएम योजनावार कलेक्टर्स से वन टू वन स्थिति पूछते हैं। समीक्षा के पहले सीएम उस जिले की जानकारी भी अपने पास बुला लेते हैं। बैठक में गलत जानकारी देने वाले और लापरवाह अफसरों पर तुरंत एक्शन भी ले रहे हैं। कई बार सार्वजनिक तौर पर सीएम इस बात को कह चुके हैं कि मेरी जिलों की समीक्षा बैठक का समय सुबह जल्दी होने से कई लोग परेशान होते हैं, इसलिए मैंने टाइम थोड़ा आगे बढ़ाया है। पीएम नरेंद्र मोदी के जन्मदिन 17 सितंबर से प्रदेश में मुख्यमंत्री जनसेवा अभियान की शुरुआत की गई। इस अभियान में सरकारी योजनाओं से छूटे हुए पात्र हितग्राहियों को खोज-खोजकर जोडऩे का अभियान चलाया गया। इसी अभियान के दौरान सीएम के भाषण देने का अंदाज बदल गया। आमतौर पर मंच पर एक जगह खड़े होकर भाषण देने वाले सीएम ने शहडोल जिले के कोटमा गांव में जब मुख्यमंत्री जनसेवा अभियान के कार्यक्रम में शिरकत की, तो यहां भाषण देने के बजाए सीएम ने योजनाओं को लेकर पब्लिक से फीडबैक लेना शुरू कर दिया। ग्रामीण जिन योजनाओं की शिकायत करते सीएम उस योजना के जिम्मेदार अफसरों से सीधे सवाल पूछ लेते। यहीं से सीएम ने कार्यक्रमों के दौरान लंबा चौड़ा भाषण देने के बजाए टू वे कम्युनिकेशन शुरू कर दिया।
जमीन पर बैठकर कर रहे चर्चा
मप्र में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में आदिवासियों को अपने पाले में करने के लिए सीएम ने पूरा फोकस ट्रायबल बेल्ट पर कर रखा है। 15 नवंबर को पेसा एक्ट लागू होने के बाद से ही सीएम लगातार आदिवासी बहुल जिलों में दौरे कर रहे हैं। सीएम ने आदिवासी बहुल जिलों में अब संवाद के लिए चौपालों को जरिया बनाया है। गांवों में पेड़ की छांव में सीएम फर्श पर बैठकर ग्रामीणों से चर्चा कर उनकी बात सुन रहे हैं। ग्रामीणों की शिकायतों पर अफसरों के खिलाफ ऑन स्पॉट एक्शन भी ले रहे हैं। सीएम शिवराज प्रदेश में अचानक दौरे कर रहे हैं। निरीक्षण की जानकारी संबंधित जिले के कलेक्टर को तब मिलती है, जब सीएम वहां पहुंच जाते हैं। मप्र में अगले साल होने वाले चुनाव को देखते हुए आदिवासी वर्ग पर सरकार की पूरी नजर है। प्रदेश के 20 जिलों के 89 ब्लॉक आदिवासी बहुल हैं। सीएम इन सभी आदिवासी बहुल ब्लॉकों में लगातार दौरे कर रहे हैं। अब सीएम बिना सूचना दिए किसी भी जिले के दौरे पर पहुंच जाते हैं। खासकर आदिवासी जिलों में राज्य और केन्द्र सरकार की हितग्राही मूलक योजनाओं और बड़े प्रोजेक्ट्स को सीएम खुद मौके पर जाकर देख रहे हैं। ऐसे में जहां खामियां मिल रहीं हैं। छोटे कर्मचारियों के बजाए बड़े अफसर नप रहे हैं। साल 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 47 सीटों में से 31 पर कामयाबी मिल गई थी। आदिवासी अंचल में सीटें बढऩे से भाजपा सत्ता से चूक गई और कांग्रेस की सरकार बन गई। अब भाजपा ने खासकर सीएम शिवराज सिंह चौहान ने ट्राइबल बेल्ट पर पूरा फोकस कर रखा है।
अगर मुख्यमंत्री के पिछले कुछ महीनों के दौरों और बैठकों को आकलन करें तो वे पूरी तरह सख्त नजर आ रहे हैं। 18 सितंबर में झाबुआ जिले के एसपी अरविंद तिवारी का छात्रों से फोन पर अभद्रता करने वाला ऑडियो वायरल हुआ था। ये ऑडियो जैसे ही सीएम तक पहुंचा उन्होंने अगली सुबह यानी 19 सितंबर को ही बैठक बुलाई और एसपी अरविंद दुबे को हटाने के निर्देश दिए, कुछ ही देर बाद एसपी को सस्पेंड भी कर दिया गया। अगले ही दिन सीएम ने झाबुआ कलेक्टर को भी बदल दिया। 23 सितंबर को सागर जिले की समीक्षा करते हुए पीएम आवास योजना में पैसे लेने वाले रोजगार सहायकों के खिलाफ कार्रवाई करते हुए सेवा से पृथक करने के निर्देश दिए। 25 सितंबर को झाबुआ के जिला खाद्य अधिकारी एमके त्यागी को सीएम ने हटाने के निर्देश दिए। अनूपपुर जिले की समीक्षा के दौरान पीएचई के ईई को गलत जानकारी देने पर सीएम ने माफी मंगवाई। श्योपुर जिले की समीक्षा के दौरान राशन वितरण की गलत जानकारी देने पर डीएसओ को सस्पेंड कर दिया। इसके साथ ही पीएम आवास योजना में रिश्वत मांगने वालों को सेवा से समाप्त करने के निर्देश दिए। बड़वानी जिले में सेंधवा के जनपद पंचायत सीईओ को सीएम ने मंच से ही सस्पेंड कर दिया। 13 अक्टूबर को रीवा जिले की समीक्षा बैठक में सीएम ने हनुमना में बिजली वितरण की लापरवाही की शिकायतों पर सब इंजीनियर को सस्पेंड करने के साथ ही कामों की जांच कराने के निर्देश दिए।
कांग्रेस को यात्रा से उम्मीद
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के रूट में उन विधानसभा क्षेत्रों को शामिल किया गया था, जहां 2018 के चुनाव में कांग्रेस कमजोर थी। यात्रा बुरहानपुर और नेपानगर विधानसभा सीट से शुरू हुई। नेपानगर विधानसभा सीट पर पिछली बार कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी, लेकिन सुमित्रा कास्डेकर कांग्रेस छोडक़र भाजपा में आई थीं और अब भाजपा से विधायक हैं। जानकारों का कहना है कि कांग्रेस भले ही राहुल गांधी की इस यात्रा को राजनीति से अलग कर रही है। फिर भी इसका असर मप्र के विधानसभा चुनावों में देखने को जरूर मिलेगा। उनका कहना है कि जब सेंट्रल लेवल का एक बड़ा नेता सीधे जनता से मिलता है, तो इसका असर पड़ता है। इतिहास बताता है कि अभी तक देश में नेताओं ने जितनी भी यात्राएं की हैं, उनका फायदा जरूर हुआ है। मालवा-निमाड़ भाजपा का गढ़ कहा जाता है। यहां कुल 66 विधानसभा सीटें हैं। साल 2013 में भाजपा ने यहां 56 और कांग्रेस ने 9 सीटें जीती थीं। साल 2018 में भाजपा 29 सीटों पर सिमट गई थी। कांग्रेस ने 34 सीटें जीती थीं। निश्चित तौर पर मप्र विधानसभा चुनाव में पिछली बार की ही तरह दिग्विजय सिंह की भी महत्वपूर्ण भूमिका होगी, लेकिन दारोमदार तो कमलनाथ पर ही होगा। ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस से चले जाने और दिग्विजय सिंह के लगभग दिल्ली अटैच हो जाने के बाद कमलनाथ को तो खुला मैदान ही मिल गया है। 2020 में मप्र के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देते वक्त कमलनाथ के एक बयान ने सत्ता के गलियारों में सबका ध्यान खींचा था, आज के बाद कल, और कल के बाद परसों भी आता है… कल तो कब का बीत चुका है, राहुल गांधी की नजर अब परसों पर ही टिकी लगती है। कांग्रेस नेताओं की पूरी कोशिश लगती है कि राहुल गांधी एक बार फिर 2018 जैसा ही चमत्कार दिखा दें, तभी तो दक्षिण भारत के बाद भारत जोड़ो यात्रा में सबसे ज्यादा तामझाम मप्र की सडक़ों पर भी नजर आया। मप्र में राहुल गांधी यात्रा के आधे रास्ते तय कर लेने के बाद दाखिल हुए थे। ये यात्रा 7 सितंबर को तमिलनाडु के कन्याकुमारी से शुरू हुई थी और 150 दिन बाद कश्मीर जाकर समाप्त होगी। भारत जोड़ो यात्रा मप्र के मालवा-निमाड़ क्षेत्र के 6 जिलों में आने वाली 17 विधानसभाओं से गुजरी। यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने ओंकारेश्वर और महाकालेश्वर का दर्शन भी किया और अंबेडकर की जन्मस्थली महू में रैली भी की। ये इलाका कांग्रेस के लिए खास मायने रखता है क्योंकि यहीं पर मप्र की 66 विधानसभा सीटें हैं और खास बात ये है कि 2018 में कांग्रेस ने आधे से भी ज्यादा 34 सीटों पर जीत हासिल की थी। पिछले चुनाव में भाजपा इलाके की 29 विधानसभा सीटें ही जीत पाई थी।
पदयात्रा के जरिए राहुल गांधी ने सिर्फ कांग्रेस कार्यकर्ताओं के अंदर ही नया जोश नहीं फूंका हैं बल्कि सियासी समीकरण को भी साधने की कवायद की है। युवाओं, कर्मचारियों, किसानों और कामगारों के साथ संवाद करने के बाद अब राहुल की नजर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साइलेंट वोटर पर है। साइलेंट वोटर की सियासी ताकत को देखते हुए कांग्रेस भी महिलाओं को साधे रखने की कवायद में है। 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान देश में 43.8 करोड़ महिला मतदाताएं थीं, जो अब बढक़र 46.1 करोड़ हो गई हैं। महिला मतदाताओं की भूमिका चुनावों में हमेशा खास रही है। इसलिए भाजपा भी इन तक पहुंचने का प्रयास कर रही है। इसी कड़ी में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की जयंती पर राहुल गांधी महिलाओं को साथ पदयात्रा कर आधी आबादी के बीच अपनी पैठ को मजबूत करना चाहते हैं। कांग्रेस महिलाओं के बीच अपनी पैठ इसीलिए भी गहरी करना चाहती हैं, क्योंकि देश में अब महिलाएं अपने मत का प्रयोग चुनावों के दौरान बढ़-चढक़र कर रही हैं। उदाहरण के तौर पर अगर हम बंगाल, बिहार, गोवा, मणिपुर, मेघालय, केरल और अरुणाचल प्रदेश के चुनावों पर ध्यान दें, तो पाएंगे कि यहां महिला मतदाताओं की संख्या, पुरुष मतदाताओं से अधिक रहती है। हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भी यही ट्रेंड देखने को मिला है और 68 में से 42 सीटों पर महिलाओं ने पुरुष के ज्यादा वोटिंग की है। लेकिन क्या कांग्रेस इस बड़े लक्ष्य वाली बड़ी यात्रा में जुटने वाली भीड़ को वोट में बदल पाएगी?
साफ्ट हिंदुत्व पर फोकस
राहुल गांधी ने मध्यप्रदेश में यात्रा के दौरान कोई बड़ा राजनीतिक हमला भाजपा पर नहीं किया। उन्होंने जिस हिसाब से साफ्ट हिन्दुत्व पर फोकस कर भाजपा की धर्म की राजनीति पर हमला किया तो सबसे ज्यादा उन्होंने खुद की ही कांग्रेस की गुटबाजी को लेकर नेताओं से लगातार बातें की और प्रदेश की राजनीति के दो ध्रुव को एकसाथ रखकर बता दिया कि 2023 और 2024 में कांग्रेस किसी प्रकार का कोई जोखिम अंदरूनी राजनीति में नहीं लेना चाहती है। राहुल के प्रतिपल प्रदेश में बढ़ते कदम पर निगाह रख रही भाजपा की टीम भी अब आगामी चुनाव को लेकर अपनी रणनीति में परिवर्तन कर सकती है। भले ही बाहरी तौर पर कहा जा रहा है कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से भाजपा में फर्क नहीं पडऩे वाला है, लेकिन बड़े नेता दबी जुबान में मान रहे हैं कि अभी तक विधानसभा के लिए प्रदेश को खाली मैदान मान रहे नेताओं को अपनी योजना में तो परिवर्तन करना ही पड़ेगा। राहुल की गलतियों को पकडऩे के लिए भाजपा की आईटी सेल भी पीछे लगी थी, लेकिन वह भी कुछ खास नहीं कर पाए। ये कहे कि छिटपुट बयानों के हमलों के बीच से राहुल अपने आपको मध्यप्रदेश जैसे राज्य से बचा ले गए और किसी विवाद में नहीं पड़े। राहुल गांधी के गैरहिन्दू होने पर भाजपा लगातार हमलावर रही है, लेकिन भारत जोड़ो यात्रा के माध्यम से राहुल गांधी ने जिस तरह से साफ्ट हिन्दुत्व का संदेश दिया है, उससे भाजपा की हिन्दूवादी छवि पर जरूर झटका तो लगेगा। राहुल गांधी के आसपास युवाओं का लवाजमा बता रहा है कि वे युवाओं की पसंद बनते जा रहे हैं। उनकी यात्रा में भारत पदयात्री के रूप में भी अधिकांश युवाओं ने ही रजिस्ट्रेशन करवाया। वे युवाओं के बीच अपनी बात कहने में भी कामयाब रहे।
कांग्रेस की बनाई जाने वाली रणनीति पर सियासी जानकारों का मानना है कि पार्टी ने अब खुद को 2023 और 2024 में होने वाले चुनावों के लिए तैयार करना शुरू कर दिया है। बीते दो चुनावों गुजरात और हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की रणनीति तो यही इशारा कर रही है कि कांग्रेस का मकसद अब मिशन 2023 और 2024 हैं। अगले साल भी 6 राज्यों में चुनाव होने हैं। जिसको लेकर कांग्रेस अपनी रणनीति तो बना रही है लेकिन इन तमाम रणनीतियों के आगे कांग्रेस 2024 के लिए खुद को तैयार भी कर रही है। पार्टी ने लोकसभा चुनावों की रणनीति की नींव में राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को भी जोडऩा शुरु किया है। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा की सफलता का आकलन तो 2024 में होने वाले चुनावों से किया ही जाएगा। लेकिन जिस तरीके से केरल से शुरू होने वाली यात्रा राजस्थान पहुंच गई है उससे राहुल गांधी के भीतर दृढ़ प्रतिज्ञ नेता की छवि उभर कर सामने आ ही गई है। कांग्रेस राहुल गांधी की इस छवि को 2024 के लोकसभा चुनावों में हर हाल में भुनाएगी। भारत जोड़ो यात्रा से राहुल गांधी को कांग्रेस की फिर से जीवित होने के आसार नजर आने लगे हैं। वे बार-बार यह भी बता रहे हैं कि आज देश में विपक्ष के पास अपनी बात कहने की कोई जगह नहीं बची है। मीडिया में आपकी बात आ नहीं सकती। संसद में आप सवाल करना चाहोगे तो बाहर फेंक दिए जाओगे। संवैधानिक संस्थाओं में आपकी बात सुनी नहीं जाएगी तो अपनी बात पहुंचाने का सडक़ ही एक जरिया बचता है। और सडक़ पर भी लंबी पैदल यात्रा से बढक़र कोई असरकारी उपाय नहीं है, जो लोगों को सीधे छुए, उनसे संवाद स्थापित करे, उनकी भावनाओं, उनके दुख-सुख को समझे और उसके अनुसार अपनी राजनीति में तब्दीली करे, बशर्ते ऐसी मंशा हो।