शिवराजजी इन भ्रष्टों को जरुरत है आपकी वक्रदृष्टि की

शिवराजजी

भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भ्रष्टाचार करने वालों के खिलाफ कार्यवाही करने के लिए लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू को फ्री हैंड भले ही दे दिया हो, लेकिन पर्याप्त अधिकार और स्टाफ के अभाव में दागियों के गुनाह लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू कार्यालय की शोभा की वस्तु बनकर रह गया है। आलम यह है कि एक दशक पहले दर्ज किए गए मामलों की अभी तक जांच नहीं हो पाई है। ऐसे में हाल ही में दर्ज मामलों की जांच कब हो पाएगी, सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है।
प्रदेश में इन दिनों मुख्यमंत्री भ्रष्टाचार को लेकर सख्त हैं। लेकिन विभाग जांच एजेंसियों को सहयोग नहीं करते। ऐसे में अब इन मामलों में भ्रष्टों पर खुद शिवराज की वक्रदृष्टि का इंतजार किया जा रहा है। ताजा उदाहरण उद्यानिकी विभाग द्वारा नियम विरुद्ध तरीके से खरीदे गए प्याज के बीज की जांच है। प्राथमिकी दर्ज करने के बाद ईओडब्ल्यू की टीम जब खरीदी संबंधी जानकारी लेने उद्यानिकी संचालनालय पहुंची तो आयुक्त मनोज अग्रवाल ने कागज देने से इंकार कर दिया। इसके बाद तत्कालीन प्रमुख सचिव डॉ. कल्पना श्रीवास्तव ने खरीदी संबंधी कागजात ईओडब्ल्यू की टीम को दिए। अगले ही दिन उन्हें विभाग से हटा दिया गया।

70 आईएफएस के खिलाफ जांच लंबित
विधानसभा को दी गई जानकारी के अनुसार अखिल भारतीय सेवा के दागी अफसरों की सूची में अखिल भारतीय वन सेवा के अफसर टॉप पर है। लोकायुक्त संगठन और ईओडब्ल्यू जांच एजेंसियों की सूची के अनुसार 70 आईएफएस अफसरों के खिलाफ जांच लंबित है। इनमें से कुछ अफसर रिटायर भी हो चुके हैं और कुछ निलंबित। अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी दूसरे नंबर पर है। लोकायुक्त संगठन और ईओडब्ल्यू जांच एजेंसियों की सूची में 63 अधिकारियों के नाम दर्ज हैं। लोकायुक्त में 31 आईएफएस, ईओडब्ल्यू में 39 आईएफएस के खिलाफ जांच लंबित है। जबकि 35 आईएएस के खिलाफ लोकायुक्त और 28 के विरुद्ध ईओडब्ल्यू में जांच चल रही है। भ्रष्टाचार के मामले में आईपीएस अधिकारी, आईएएस व आईएफएस से पीछे हैं। करीब 20 आईपीएस के खिलाफ अनियमितताओं की शिकायतें हैं।

इन नौकरशाहों की जांच सालों बाद भी लंबित
प्रदेश में नौकरशाहों के खिलाफ चल रही जांच की गति का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि सालों बाद भी अधिकांश की जांच लंबित है। लोकायुक्त में जिन आईएएस अधिकारियों के खिलाफ जांच लंबित है, उनमें ललित दाहिमा, जेड यू शेख, वीरेंद्र कुमार, अशोक कुमार चौहान शामिल हैं। राप्रसे के विवेक सिंह, मनीषा सेतिया, पवन कुमार जैन, निलय सतभैया, एनपी नामदेव, पंकज शर्मा। इसी तरह रापुसे के अधिकारी अनिल कुमार मिश्रा, सुशील रंजन सिंह, देवेंद्र सिरोलिया के खिलाफ भी शिकायतें दर्ज हैं। जिन रिटायर आईएफएस के विरुद्ध जांच पेंडिंग है, उनमें एपीसीसीएफ रामदास महला, एपीसीसीएफ मनोज अग्रवाल, एपीसीसीएफ एलएस रावत, एपीएस सेंगर, बीएस अन्नागिरी, अजय यादव, प्रशांत कुमार सिंह, गौरव चौधरी, यूके सुबुद्धि, पीके वर्मा, एम कालीदुरई, अजीत श्रीवास्तव, पीके सिंह, डॉ. दिलीप कुमार, राजीव कुमार मिश्रा, बृजेंद्र कुमसा श्रीवास्तव, वासु कनोजिया, मीना मिश्रा, चंद्रशेखर सिंह और पंकज श्रीवास्तव प्रमुख हैं। एनएस डुगरियाल, विनय वर्मन, पीसी दुबे, बीबी सिंह, ओपी उचाडिय़ा, आरसी शर्मा, कैलाश प्रसाद बांगर, विजय कुमार नीमा, आरके गुप्ता, आरवी शर्मा, अनिल कुमार श्रीवास्तव तथा आरएस सिकरवार रिटायर्ड हो चुके हैं, लेकिन शिकायतों की जांच चल रही है। इससे अधिकारियों को भी परेशानी होती है।

विभाग नहीं करते जांच एजेंसियों का सहयोग
प्रदेश में दो जांच एजेंसियां लोकायुक्त एवं ईओडब्ल्यू हैं। दोनों एजेंसियों के पास स्टाफ की कमी तो है ही। इसी के साथ यहां अधिकारों में भी कटौती कर दी गई है। इससे भ्रष्टाचार में शामिल अधिकारियों में एजेंसियों का खौफ कम होने के साथ ही उन्हें गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है। विभागों का सहयोग न मिलने से जांच भी सुस्त गति से होती है। इसके चलते दागी अफसरों की फेहरिस्त लंबी होती जा रही है। इससे जांच एजेंसियों की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठ रहे हैं।  

छोटों पर कार्यवाही…बड़ों पर मेहरबानी
प्रदेश की जांच एजेंसियां भी औकात देखकर कार्यवाही करती हैं। जहां जांच के दौरान भी अखिल भारतीय सेवा के अफसर प्रमोशन और प्राइम पोस्टिंग लेते रहे और शान से रिटायर भी हो गए। उनके खिलाफ अभी तक कोई कार्यवाही नहीं की गई। वहीं छोटी-मोटे कर्मचारियों और अफसरों पर तो उनकी जांच तेजी से चलती पर आला अफसरों का नाम आते ही उनकी कार्यवाही कछुआ गति से चलने लगती है। संकेत साफ हैं कि जांच की गति को मंद कराने में प्रशासनिक और राजनीतिक हस्पक्षेप सीधे-सीधे होता है।  अखिल भारतीय वन सेवा के अफसर यूके सुबुद्धि और मनोज अग्रवाल के खिलाफ एक दशक पहले मामला दर्ज हुआ था, जिसकी आज तक लोकायुक्त संगठन जांच पूरी नहीं कर सका है। इस बीच दोनों ही अफसर अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक के पद तक प्रमोट हो चुके हैं। वहीं आयुक्त उद्यानिकी के पद से हटाए गए मनोज अग्रवाल के खिलाफ पिछले दिनों ईओडब्ल्यू में नई शिकायत दर्ज की गई है। अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी ललित दाहिमा के खिलाफ भी एक दशक से अधिक समय से लोकायुक्त संगठन में मामला दर्ज है, जिसका आज तक निराकरण नहीं हुआ। जांच के दौरान ही ललित दाहिमा डिप्टी कलेक्टर से आईएएस बन गए हैं। आईएएस दाहिमा की जांच फाइलों में कैद है। लोकायुक्त संगठन और ईओडब्ल्यू में दर्ज मामले की जांच कछुआ चाल से होने की वजह से अखिल भारतीय सेवा के अवसर दोहरी मानसिकता में काम कर रहे हैं।

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