
भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। पहले प्रदेश में हो रहे चारों उपचुनावों को भाजपा के लिए बेहद कठिन माना जा रहा था, लेकिन एक साथ भाजपा के दिग्गज नेताओं ने ऐसा कदमताल किया कि वे अब इन बेहद कठिन माने जाने वाले उपचुनावों में जीत के शिल्पकार के रुप में खड़े हो गए हैं। यह जीत किसी एक नेता की न होकर सामूहिकता की मानी जा रही है। वैसे भी कहावत है कि दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंक कर पीता है। यही हाल इस बार उपचुनावों में रहा है। दमोह में मिली हार से सबक लेकर भाजपा के प्रदेश नेतृत्व ने अपनी न केवल गल्तियों को सुधारा बल्कि अपनी कमजोर कड़ियों को भी मजबूत किया और उसका प्रतिफल अब सामने है। इस चमत्कारिक जीत की वजह है शिव का विकास और विष्णु की सांगठनिक पकड़। जिस तरह से दमोह में मिली जीत से कांग्रेस उत्साहित थी ठीक उसी तरह से भाजपा भी जोबट में मिली जीत से उत्साहित है।
इस जीत में खासतौर पर आदिवासी वोट बैंक पर बढ़ती पकड़ भी साफ जाहिर हाने लगी है। आदिवासी समाज पर मजबूत पकड़ के लिए भाजपा में केन्द्रीय स्तर से लेकर राज्यस्तर पर तमाम तरह की रणनीति बनाकर काम किया जा रहा है। इसका असर भी इन चुनावों में परिलक्षित हुआ है। जोबट में मिली जीत को अब प्रदेश की राजनीति में दूरगामी परिणाम होंगे। इस जीत के लिए शिवराज सिंह चौहान ने पूरा फोकस चुनाव प्रचार व चुनाव प्रबंधन पर रखते हुए 39 सभाएं, 25 नुक्कड़ सभाएं और पांच रात्रि का विश्राम तक किया। उनकी आक्रामक प्रचार शैली और जनता के बीच सहज भाव से पूरे समय रहना जीत की वजह बनी। तीन एक से जीत मिलने से यह तो तय हो गया है कि प्रदेश में अब भी भाजपा के अलाव शिव की पकड़ मजबूत बनी हुई है।
इस पकड़ की बड़ी वजह है उनका विकास का एजेन्डा। खास बात यह है कि यह चुनाव भी ऐसे समय हुआ है, जब डीजल-पैट्रोल सहित खाद्य सामग्री के लगातार दामों में वृद्धि हो रही है और खाद संकट जैसे बड़े मुद्दे थे पर कांग्रेस इन्हें भुनाने में नाकाम रही है। यही वज है कि कांग्रेस को एक सीट पर ही संतोष करना पड़ा। खास बात यह है कि इस बार कांग्रेस के प्रभाव वाली जोबट और पृथ्वीपुर की सीट भी भाजपा ने छीन ली। इन चुनावों में भाजपा के रणनीतिकारों ने महंगाई जैसे विपक्ष के बडु़े हमले को को भोथरा करने के लिए शुरू से ही आक्रमक प्रचार में कांग्रेस राज की तुलना अपने राज से करते हुए विकास कार्यो और योजनाओं को जनता के बीच रखना शुरू कर दिया था। इस दौरान विकास योजनाओं का इतना प्रचार किया गया कि इनके बीच कांग्रेस का महंगाई का मुद्दा दब कर रह गया।
शिव, बीडी, भूपेन्द्र की रणनीति हुई सफल
उपचुनावों में मिली सफलता से एक बार फिर तय हो गया है कि सीएम शिवराज सिंह चौहान की जनता में पकड़ बनी हुई है। उधर संगठन के मुखिया वीडी ने भी बता दिया कि उनका माइक्रो मैनेजमेंट बेजोड़ है। इन दोनों ही नेताओं ने एक साथ मिलकर चुनावी इलाकों को रौंद सा दिया। यह दोनों ही नेता उपचुनावों से करीब दो माह पहले ही इन इलाकों में अपनी सक्रियता शुरू कर चुके थे। शर्मा ने संगठन को तेजी से सक्रिय करने के लिए खुद ही हर बूथ की मीटिंग ली और खुद ही भितरघात पर भी कड़ी नजर रखी। इधर, वरिष्ठ मंत्री भूपेन्द्र सिंह ने प्रदेश कार्यालय में मैनेजमेंट का काम पूरी बाखूबी से संभाल रखा था। भूपेन्द्र सिंह हर दिन उपचुनावी वाले इलाकों की रिपोर्ट लेकर कमी को दूर करने में लगे रहे। उनका पूरा फोकस अधिक से अधिक मतदान कराने और खासतौर पर अपने समर्थक मतदाताओं को मतदान स्थल तक पहुंचाने पर बना रहा।
फ्रंट से बैकफुट पर पहुंचा दी कांग्रेस
इन उपचुनावों में भाजपा की रणनीति की वजह से शुरूआती दौर में फ्रंट फुट पर दिख रही कांग्रेस अचानक ही बैकफुट पर जाने को मजबूर हो गई। कांग्रेस के पास पूरे प्रचार के दौरान रणनीति का अभाव तो दिखा ही साथ ही उसके बड़े नेताओं का भी प्रचार से मोह भंग सा नजर आया। पार्टी के बड़े चेहरों में शुमार दिग्विजय सिंह भी दिखावे के लिए अंतिम दिनों में कुछ हलचल करते जरुर नजर आए तो वहीं कमलनाथ भी प्रचार में शिव व वीडी के मुकाबले में कहीं भी ठहरते नहीं दिखे। यही नहीं नाथ की 15 माह की सरकार में जो पार्टी नेता पावर का केन्द्र बनकर मलाई खाते रहे वे भी मुह दिखाई तक की रस्म करने से परहेज करते रहे। इसकी वजह से कांग्रेस प्रत्याशियों को प्रचार के लिए नेताओं के अभाव से लगातार जूझना पड़ा।
इस रणनीति पर किया काम
भाजपा ने पहली बार संगठन और सरकार में बैठे लोगों को सामूहिकता के साथ हर विधानसभा में उतारा। इसके तहत एक -एक विधानसभा में दो से चार मंत्रियों को लगाया गया। इनकी टीम को विधानसभा क्षेत्र के एक हिस्से का ही दायित्व दिया गा। जिसकी वजह से हर टीम के पास करीब 25 से तीस हजार मतदाताओं का क्षेत्र आया। इनको चौपालों पर बैठक और सामाजिक संगठनों से मेलजोल कर पार्टी के पक्ष में माहौल बनाने और नाराज लोगों को साधने के साथ ही उन्हें प्रचार में उतारने का काम दिया गया था। भाजपा ने इन चुनावों को इतनी गंभीरता से लिया कि प्रभार वाले क्षेत्रों से पदाधिकारियों व मंत्रियों को लगभग पूरे समय अपने इलाकों से बाहर ही नहीं आने दिया गया।