सबक लेकर निकाय चुनाव में उतरेगी शिव-वीडी की जोड़ी

निकाय चुनाव

भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। हाल ही में जिस तरह का चुनाव परिणाम दमोह विधानसभा सीट का रहा है उससे यह तो तय है कि अब प्रदेश में संभावित निकाय व पंचायत चुनाव दोनों ही भाजपा के लिए बड़ी चुनौती बनेंगे। इसकी बानगी दमोह चुनाव परिणाम के रुप में सामने आ चुकी है। इस सीट पर भाजपा को केवल शहरी ही नहीं ग्रामीण इलाकों में भी हार का सामना करना पड़ा है। यही वजह है कि अब इससे सबक लेकर शिव-वीडी की जोड़ी इन चुनावों उतरेगी। इसके लिए अभी से तैयारियां शुरू कर दी गई हैं। निकाय व पंचयात चुनाव से पहले भाजपा अपनी तैयारियों को  झाबुआ, पृथ्वीपुर विधानसभा और खंडवा लोकसभा उपचुनाव में परखेगी।
 यह बात अलग है कि इसे अब भाजपा के लिए राजनीतिक भविष्य की एक आहट के रुप में देखा जा रहा है। दमोह सीट भाजपा तब हारी है जबकि प्रदेश में न केवल उसकी सरकार है, बल्कि पूरा संगठन और डेढ़ दर्जन से अधिक मंत्री और तमाम विधायकों को प्रचार के लिए तैनात किया गया था। प्राय: माना जाता है कि उपचुनाव में उस दल की जीत की संभावना अधिक रहती है जिसकी प्रदेश में सरकार हो। इस उपचुनाव के बाद अब पार्टी के सामने जोबट, पृथ्वीपुर विधानसभा और खंडवा लोकसभा उपचुनाव की बड़ी चुनौती तो खड़ी ही है साथ ही इसी साल कुछ  माह बाद स्थानीय निकाय व पंचायत चुनाव भी होने हैं। इनमें नगर निगम, नगर पालिकाओं, जिला पंचायत और फिर जनपद पंचायतों के अलावा मंडी के चुनाव भी शामिल हैं। इन चुनावों में वैसे तो स्थानीय मुद्दे ही असरकारक रहते हैं , लेकिन कोरोना को लेकर सरकार द्वारा उठाए गए कदमों पर भी आमजन की मंशा का पता चल सकेगा। प्रदेश में अगर बीते 2014 के निकाय चुनावों को देंखे तो शहरी इलाकों में पूरी तरह से भाजपा का एकाधिकार दिखा था। उस समय चुनाव में भाजपा ने प्रदेश के सभी 16 नगर निगमों में जीत दर्ज की थी। इसी तरह 381 नगर पालिका और नगर परिषदों में से भाजपा ने 291 पर अपना परचम फहराया था। तब कांग्रेस सिर्फ 90 स्थानों पर ही जीत दर्ज कर सकी थी। वैसे भाजपा के बारे में माना जाता है कि उसका प्रभाव परंपरागत रूप से प्रदेश का शहरी इलाकों में अधिक रहता है, लेकिन, इस बार कोरोना के चलते सरकारी अव्यवस्थाओं की वजह से भाजपा को नुकसान उठाना पड़ा है। इसका सर्वाधिक असर शहरी क्षेत्रों में पड़ा है। इसके अलावा इस समय  मध्यमवर्गीय लोग उपेक्षित  रहने से नाराज है। इस वजह से माना जा रहा है कि इस बार भाजपा के सामने इन स्थानीय चुनावों में बड़ी चुनौती मिलने वाली है। इसकी बानगी के रूप में दमोह उपचुनाव के परिणाम को देखा जा रहा है। इस उपचुनाव में भाजपा उम्मीदवार को शहरी और ग्रामीण दोनों ही इलाकों में करारी हार का सामना करना पड़ा है। 17 हजार का वोट का बड़ा अंतर है , जिसके लिए पार्टी के आंतरिक गुटबाजी को भी दोषी नहीं माना जा सकता है। गौरतलब है कि भाजपा के उम्मीदवार राहुल लोधी 2019 के चुनाव में बतौर कांग्रेस उम्मीदवार महज साढ़े सात सौ वोटों से जीते थे, उन्हें इस बार उससे कई गुना बड़ी हार का सामना करना पड़ा है। यही वजह है कि इस हार से सबक लेते हुए सत्ता व संगठन ने अभी से खामियों को ठीक कर एक साथ नई रणनीति तैयार कर चुनावी मैदान में उतरने की अभी से तैयारी शुरू कर दी है।  

कोरोना का भी दिखेगा असर
माना जा रहा है कि इन चुनावों में कोरोना का भी असर साफ-साफ देखने को मिलेगा। बढ़ते कोरोना के बीच लोगों को हर इलाके में बेहद परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। स्वास्थ्य सेवाओं से लेकर दवाओं तक के लिए लोगों को भटकना पड़ रहा है। हालत यह है कि मुनाफाखोर जमकर चांदी काट रहे हैं और लोग परेशान हो रहे हैं। सरकार के तमाम निर्देशों के बाद भी अधिकांश इलाकों में उसके जनप्रतिनिधि तक नजर नहीं आ रहे हैं। इसकी वजह से भी लोगों में  बेहद नाराजगी बताई जा रही है। यही वजह है कि अब सरकार ऐसे कदम उठा रही है जिससे की आम आदमी को राहत मिल सके।

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