- जल संसाधन विभाग ने तैयार किया प्रस्ताव
- विनोद उपाध्याय
सिंहस्थ से पहले उज्जैन को पूरी तरह विकसित किया जाएगा। इसके तहत जहां शिप्रा नदी को स्वच्छ और अविरल बनाया जाएगा, वहीं शहर को भी संवारा जाएगा। अस्तित्व के संकट से जूझ रही सनातन धर्म की पवित्र नदियों में से एक शिप्रा को बचाने के लिए राज्य सरकार जल्द ही शिप्रा नदी कछार प्राधिकरण (केआरबीए) का गठन करने जा रही है। जल संसाधन विभाग ने प्रस्ताव तैयार कर शासन को भेज दिया है।
मुख्यमंत्री कार्यालय से मंजूरी मिलने के बाद इसका नोटिफिकेशन जल्द हो सकता है। प्राधिकरण सिंहस्थ 2028 से पहले शिप्रा नदी को 1996 से पहले जैसी प्रवाहमान और स्वच्छ बनाने के उद्देश्य से काम करेगा। प्रदेश में 4 साल बाद वर्ष 2028 में सिंहस्थ होने जा रहा है। राज्य शासन ने इसकी तैयारी अभी से शुरू कर दी हैं। मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में गठित होने वाले इस प्राधिकरण का उपाध्यक्ष जल संसाधन मंत्री और कन्वीनर जल संसाधन विभाग के चीफ इंजीनियर को बनाने की तैयारी है। प्राधिकरण में लगभग 12 सदस्य होंगे, जिनमें नगरीय प्रशासन, एनवीडीए, ग्रामीण विकास, राजस्व, वन, कृषि, पीएचई विभाग के मंत्रियों समेत इंदौर, उज्जैन, धार, देवास और रतलाम जिलों के नगरीय निकायों के प्रमुख शामिल होंगे। शिप्रा नदी कछार प्राधिकरण के अधीन एक एक्जीक्यूटिव कमेटी का भी गठन होगा, जिसके अध्यक्ष मुख्य सचिव होंगे, और कन्वीनर बोधी (ब्यूरो ऑफ डिजाइन, हाइडल एंड इरिगेशन) के पदेन चीफ इंजीनियर को बनाया जाएगा। जिन विभागों को नदी पुर्नजीवन से जुड़े काम दिए जाएंगे, उनके प्रमुख अधिकारी समिति का हिस्सा होंगे।
विकास की भेंट चढ़ी शिप्रा
जल संसाधन विभाग के रिकार्ड के मुताबिक वर्ष 1996 तक शिप्रा नदी में अविरल धारा होने की जानकारी मिलती है। तब तक नदी प्रदूषण से लगभग मुक्त थी। नदी का उद्ग्म और सबसे बड़ा वाटरशेड (जल ग्रहण क्षेत्र) एरिया इंदौर जिले में आता है। पिछले 30 साल में जिस तेजी से इंदौर शहर और उसके आसपास शहरीकरण और औद्योगिक विकास हुआ है, उसी गति से शिप्रा की धार टूटती चली गई और नदी प्रदूषण का शिकार होती चली गई।
नमामि गंगे प्रोजेक्ट से जुड़े रहे पर्यावरण और नदी पुर्नजीवन विशेषज्ञ डॉ. सीताराम टैगोर का कहना है कि शिप्रा नदी पर पैदा हुए संकट के पीछे पांच प्रमुख कारण माने गए हैं, जिसमें वाटरशेड एरिया में वन-आवरण घटना, शहरीकरण और औद्योगीकरण के कारण बड़े हिस्से में लैंडयूज में आया बदलाव, भू-जल के अनियोजित दोहन से वाटर टेबल में गिरावट, जलवायु परिवर्तन और वर्षा चक्र में बदलाव शामिल हैं। यदि नदी को पुर्नजीवित करना है , तो पूरे कैचमेंट एरिया में काम करना होगा।
जल संसाधन विभाग को दायित्व
जानकारी के अनुसार क्षिप्रा नदी कछार प्राधिकरण गंगा और मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण की तर्ज पर उज्जैन में सिंहस्थ तीर्थ क्षेत्र एवं आसपास के नगरों में विकास कार्यों को अंजाम देगा। प्राधिकरण में मुख्यमंत्री समेत 6 विभागों के मंत्री एवं एक दर्जन विभागों के अपर मुख्य सचिव एवं प्रमुख सचिव सदस्य हैं। प्राधिकरण का मूल ढांचा नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण से लिया गया है। जल्द ही कैबिनेट से क्षिप्रा नदी कछार प्राधिकरण पर मुहर लग जाएगी। प्राधिकरण का गठन करने का दायित्व जल संसाधन विभाग को सौंपा गया है। नए प्राधिकरण की रूपरेखा तैयार हो चुकी है। जल्द ही मुख्यमंत्री के समक्ष इसे रखा जाएगा। इसमें शामिल विभाग मिलकर कार्यों को करेंगे। यानी एक विभाग दूसरे विभाग के काम में अड़ंगा नहीं लगाएगा।
काशी, मथुरा-वृंदावन का दौरा करेंगा दल
क्षिप्रा के शुद्धिकरण से लेकर नालों, सड़क, पुल, सीवेज, भवन, जल वितरण आदि कार्य प्राधिकरण के जरिए ही होंगे। ये विभाग शामिल प्राधिकरण में वित्त, वन, पंचायत, पीएचई, नर्मदा घाटी विकास विभाग, जल संसाधन, राजस्व, नगरीय प्रशासन, पर्यावरण, संस्कृति एवं पर्यटन विभाग, धर्मस्य विभाग के मंत्री, प्रमुख सचिव और इंदौर, उज्जैन संभाग के आयुक्त शामिल हैं। उज्जैन प्रदेश में उज्जैन घोषित धार्मिक नगरी है। सिंहस्थ से पहले इसे धार्मिक दृष्टि से विकसित किया जाएगा। अवंतिका के इतिहास को उखेरा जाएगा। इसके लिए पूरी रूपरेखा बनेगी। प्राधिकरण गठित होने के बाद मप्र का दल काशी, मथुरा-वृंदावन एवं अन्य धार्मिक नगरों का दौरा कर वहां प्राधिकरण के जरिए किए गए विकास कार्य देखेगा। क्षिप्रा नदी कछार के कार्य क्षिप्रा को निर्मल एवं अविरल बनाने कछार क्षेत्र के नदी नालों के दूषित पानी को क्षिप्रा में छोड़ने से पहले साफ करना। प्राधिकरण के कार्यों के लिए वित्तीय सहायता एवं अतिरिक्त संसाधन जुटाना। अपर मुख्य सचिव, जल संसाधन एवं नर्मदा घाटी विकास विभाग राजेश राजौरा का कहना है कि राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं की मदद से नदी संरक्षण के लिए प्रशिक्षण एवं शोध की व्यवस्था करना। कछार क्षेत्र में निर्माण कार्यों की समन्वित कार्य योजना बनाना। इनका कहना है क्षिप्रा नदी कछार प्राधिकरण का गठन प्रक्रिया में है। इसको लेकर विचार-विमर्श अंतिम दौर में है।