
- आदिवासी वोट बैंक में उलझी रणनीति
- विनोद उपाध्याय
जनजातीय कार्य मंत्री विजय शाह द्वारा कर्नल सोफिया कुरैशी को लेकर की गई अमर्यादित टिप्पणी पर विपक्ष भले ही हमलावर है, लेकिन भाजपा संगठन वेट एंड वाच की स्थिति में। यानी भाजपा संगठन कोई जल्दबाजी करने की जगह फूंक-फूंककर कदम रख रहा है। पार्टी की निगाहें सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर टिकी हैं। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के साथ ही विजय शाह का राजनीतिक भविष्य तय होगा कि वह मंत्री रहेंगे या नहीं। गौरतलब है कि कल इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई है। दरअसल, भाजपा भी कोर्ट के निर्णय का इंतजार कर रही है। उल्लेखनीय है कि भाजपा, विजय शाह को उनके बयान को लेकर नसीहत दे चुकी है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी पूरे मामले में प्रदेश संगठन से रिपोर्ट मांगी थी। एफआईआर दर्ज होने के बाद शाह चुपचाप हैं। सार्वजनिक कार्यक्रमों में भी नहीं जा रहे हैं। मामले में कांग्रेस हमलावर हो गई है। कर्नल सोफिया कुरैशी को लेकर की गई टिप्पणी के बाद मंत्री के इस्तीफे की मांग लगातार हो रही है, लेकिन पार्टी फिलहाल स्पष्ट रुख अपनाने से बच रही है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने बयान देते हुए कहा है कि इस मामले में अदालत का जो भी निर्णय होगा, उसी के अनुसार सरकार आगे कदम उठाएगी। इसका सीधा संकेत है कि इस्तीफा फिलहाल टाल दिया गया है, लेकिन न्यायिक आदेश के अनुसार स्थिति बदल सकती है। शाह का राजनीतिक भविष्य अब न्यायालय के निर्णय और पार्टी की रणनीति पर निर्भर करता है। सूत्रों के अनुसार विजय शाह ने इस्तीफा देने से इंकार कर दिया है। अब इस पूरे प्रकरण ने आदिवासी समीकरण और सार्वजनिक छवि के बीच पार्टी को मुश्किल दोराहे पर खड़ी है। वहीं, इस मुसीबत को उप मुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा के बयान ने भी बढ़ा दिया है।
कांग्रेस आक्रामक, सुप्रीम कोर्ट में कैविएट लगाई
कांग्रेस इस मुद्दे को छोडऩा नहीं चाह रही है। इसलिए पार्टी की तरफ हर दिन विरोध प्रदर्शन जारी है। वहीं, पार्टी की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में एक कैविएट दाखिल की गई है, जिसमें मांग की गई है कि इस मामले में कांग्रेस की बात सुने बिना कोई आदेश पारित न किया जाए। सुप्रीम कोर्ट में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की ओर से अधिवक्ता जया ठाकुर ने कैविएट दायर कर बिना उनका पक्ष सुने निर्णय नहीं देने का अनुरोध किया है। बता दें कि मंत्री विजय शाह के विरुद्ध हाई कोर्ट के आदेश पर जिन धाराओं में प्रकरण दर्ज हुआ है, उनमें उम्रकैद तक का प्रविधान है। सुप्रीम कोर्ट ने मंत्री शाह की ओर से हाई कोर्ट के आदेश पर दर्ज एफआइआर रद्द करने की मांग वाली याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई को सुनवाई नहीं करते हुए सोमवार को यह मामला सुने जाने की व्यवस्था दी थी। वहीं मप्र हाई कोर्ट में न्यायमूर्ति अतुल श्रीधरन की अध्यक्षता वाली युगलपीठ के अभाव में सुनवाई टल गई थी। दूसरी ओर, डेमोक्रेटिक लायर्स फोरम, जबलपुर के सचिव अधिवक्ता रवींद्र गुप्ता व अध्यक्ष ओपी यादव की ओर से सुप्रीम कोर्ट में हस्तक्षेप अर्जी फाइल कर दी गई है। दोनों की ओर से पहले पक्ष सुने जाने पर बल दिया गया है। इसके साथ ही इस बात पर बल दिया गया है कि इतने गंभीर प्रकरण में मंत्री शाह को सुप्रीम कोर्ट किसी तरह की राहत प्रदान न करे। अधिवक्ता रवींद्र गुप्ता व ओपी यादव की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, विवेक कृष्ण तन्खा, केटीएस तुलसी व इंदिरा साहनी के साथ समीर सोढ़ी, वरुण तन्खा, इंद्रदेव मंत्री विजय शाह की विशेष अनुमति याचिका का सोमवार को विरोध करेंगे।
दो खेमे में बंटा भाजपा संगठन
पार्टी के भीतर इस मुद्दे को लेकर दो राय बन गई है। एक वर्ग जहां शाह से तत्काल पद छोडऩे की मांग कर रहा है, वहीं, दूसरा खेमा सियासी नुकसान को देखते हुए डैमेज कंट्रोल की रणनीति पर काम कर रहा है। पार्टी नेतृत्व इस बात को लेकर असमंजस में है कि कड़ा फैसला लेना नुकसानदेह हो सकता है। पार्टी की एक राज्यमंत्री समेत कई नेता शाह के समर्थन में खड़े हैं। वहीं, दूसरी तरफ पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती कह चुकी हैं कि इस्तीफा नहीं तो बर्खास्त करने का निर्णय लें। दरअसल, मंत्री शाह आदिवासी समुदाय से आते हैं और चार दशक से अधिक समय से विधायक हैं। आदिवासी वर्ग मध्य प्रदेश की राजनीति में निर्णायक भूमिका निभाता है। राज्य में 47 विधानसभा और 6 लोकसभा सीटें इस वर्ग के लिए आरक्षित हैं। ऐसे में पार्टी को आशंका है कि अगर शाह से इस्तीफा लिया गया, तो आदिवासी समाज में गलत संदेश जा सकता है। प्रदेश में आदिवासी वोट बैंक कुल वोट का करीब 22 प्रतिशत है।